अजातशत्रु

अजातशत्रु

अजातशत्रु

(कुणिक)

जन्म: 509ई०पू०
मृत्यु: 461 ई०पू०
पिता: बिम्बसार
जीवनसंगी: राजकुमारी वजिरा
बच्चे: उदयभद्र
राष्ट्रीयता: भारतीय
धर्म : जैन, बौद्ध

अजातशत्रु  का जीवन परिचय :--

अजातशत्रु (लगभग 493 ई. पू.) मगध का एक प्रतापी सम्राट और बिंबिसार का पुत्र जिसने पिता को मारकर राज्य प्राप्त किया। उसने अंग, लिच्छवि, वज्जी, कोसल तथा काशी जनपदों को अपने राज्य में मिलाकर एक विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की। अजातशत्रु के समय की सबसे महान घटना बुद्ध का महापरिनिर्वाण थी (483 ई. पू.)। उस घटना के अवसर पर बुद्ध की अस्थि प्राप्त करने के लिए अजात शत्रु ने भी प्रयत्न किया था और अपना अंश प्राप्त कर उसने राजगृह की पहाड़ी पर स्तूप बनवाया। आगे चलकर राजगृह में ही वैभार पर्वत की सप्तपर्णी गुहा से बौद्ध संघ की प्रथम संगीति हुई जिसमें सुत्तपिटक और विनयपिटक का संपादन हुआ। यह कार्य भी इसी नरेश के समय में संपादित हुआ।

बिंबिसार ने मगध का विस्तार पूर्वी राज्यों में किया था, इसलिए अजातशत्रु ने अपना ध्यान उत्तर और पश्चिम पर केंद्रित किया। उसने कोसल एवं पश्चिम में काशी को अपने राज्य में मिला लिया। वृजी संघ के साथ युद्ध के वर्णन में 'महाशिला कंटक' नाम के हथियार का वर्णन मिलता है जो एक बड़े आकर का यन्त्र था, इसमें बड़े बड़े पत्थरों को उछलकर मार जाता था। इसके अलावा 'रथ मुशल' का भी उपयोग किया गया। 'रथ मुशल' में चाकू और पैने किनारे लगे रहते थे, सारथी के लिए सुरक्षित स्थान होता था, जहाँ बैठकर वह रथ को हांककर शत्रुओं पर हमला करता था।

पालि ग्रंथों में अजातशत्रु का नाम अनेक स्थानों पर आया है; क्योंकि वह बुद्ध का समकालीन था और तत्कालीन राजनीति में उसका बड़ा हाथ था। उसका मंत्री वस्सकार कुशल राजनीतिज्ञ था जिसने लिच्छवियों में फूट डालकर साम्राज्य का विस्तार किया था। कोसल के राजा प्रसेनजित को हराकर अजातशत्रु ने राजकुमारी वजिरा से विवाह किया था जिससे काशी जनपद स्वतः यौतुक रूप में उसे प्राप्त हो गया था। इस प्रकार उसकी इस विजिगीषु नीति से मगध शक्तिशाली राष्ट्र बन गया। परंतु पिता की हत्या करने के कारण इतिहास में वह सदा अभिशप्त रहा। प्रसेनजित का राज्य कोसल के राजकुमार विडूडभ ने छीनमें ही विडूडभ ने शाक्य प्रजातंत्र का ध्वंस किया था।

मृत्यु :--

इतिहासकारों द्वारा दर्ज अजातशत्रु की मृत्यु का खाता  535  ईसा पूर्व है। उनकी मृत्यु का खाता जैन और बौद्ध परंपराओं के बीच व्यापक रूप से भिन्न है। अन्य खाते उनकी मृत्यु के वर्ष के रूप में 460 ईसा पूर्व की ओर इशारा करते हैं। ऐसा विवरण मिलता है के लगभग सभी ने अपने अपने पिता की हत्या की थी। इसिलए इतिहास में इन्हें पितृहन्ता वंश के नाम से भी जाना जाता है।

जैन परम्परा :--

जैन ग्रंथ आवश्यक चूर्णी के अनुसार, अजातशत्रु भगवान महावीर से मिलने गए। अजातशत्रु ने पूछा, "भन्ते! चक्रवर्ती (विश्व-सम्राट) उनकी मृत्यु के बाद कहां जाते हैं?" भगवान महावीर ने उत्तर दिया कि "एक चक्रवर्ती, यदि कार्यालय में मरते समय सातवें नरक में जाता है, जिसे महा-तम्हप्रभा कहा जाता है, और अगर एक साधु के रूप में मर जाता है तो निर्वाण प्राप्त करता है।" अजातशत्रु ने पूछा, "तो क्या मैं निर्वाण प्राप्त करूंगा या सातवें नरक में जाऊंगा?" उन्होंने जवाब दिया, "उनमें से कोई भी नहीं, तुम छठे नरक में जाओगे।" अजातशत्रु ने पूछा, "भन्ते, तब मैं चक्रवर्ती नहीं हूँ?" जिस पर उन्होंने जवाब दिया, "नहीं, तुम नहीं हो।" इसने अजातशत्रु को विश्व-सम्राट बनने के लिए चिंतित कर दिया। उन्होंने 12 कृत्रिम गहने बनाए और दुनिया के छह क्षेत्रों की विजय के लिए तैयार किए। लेकिन जब वह तिमिस्रा गुफाओं में पहुंचा, तो उसे एक संरक्षक देवता कृतमाल मिले जिन्होंने कहा था, "केवल चक्रवर्ती ही इस गुफा से गुजर सकते है, एक कालचक्र के आधे चक्र में 12 से अधिक चक्रवर्ती नहीं होते, और पहले से ही बारह चक्रवर्ती हो चुके हैं। " इस पर, अजातशत्रु ने अहंकारपूर्वक कहा, "फिर मुझे तेरहवें के रूप में गिनो और मुझे जाने दो वरना मेरी गदा इतनी मजबूत है कि तुम यम तक पहुँच सको।" अजातशत्रु के अहंकार पर देवता क्रोधित हो गए और उन्होंने अपनी शक्ति से उसे मौके पर ही राख बना दिया। अजातशत्रु का तब "तम्हप्रभा" नामक छठे नरक में पुनर्जन्म हुआ था।

धर्म :--

जैन धर्म का पहले उपांग में भगवान महावीर और अजातशत्रु के रिश्ते के बारे में जानने को मिलता हैं। यह वर्णन करता है कि अजातशत्रु ने भगवान महावीरस्वामी को सर्वोच्च सम्मान में रखा था। इसी ग्रन्थ में यह भी कहा गया है कि अजातशत्रु के पास भगवान महावीरस्वामी की दिनचर्या के बारे में रिपोर्ट करने के लिए एक अधिकारी था। उसे इस कार्य के लिए भारी रकम मिलती थी। अधिकारी के पास एक विशाल नेटवर्क और सहायक फील्ड स्टाफ था, जिसके माध्यम से वह अधिकारी, भगवान महावीर के बारे में सभी जानकारी एकत्र करता और राजा को सूचना देता था। उववई सूत्र में भगवान महावीरस्वामी का चम्पा शहर में आगमन,अजातशत्रु द्वारा उन्हें दिखाया गया सम्मान, और भगवान महावीर के अर्धमग्धी में उपदेश, के बारे में विस्तृत वर्णन और प्रबुद्ध चर्चा की गई हैं।

पुत्र-प्रेम ने किया हृदय परिवर्तन! :--

राजकुमारी ‘वजिरा’ से अजातशत्रु को एक पुत्र की प्राप्ति हुई. कहते हैं कि एक दिन वह भोजन कर रहा था. उसी दौरान उसके पास उसका बेटा खेल रहा था. बेटे को इस तरह खेलते हुए उसके प्रति अजातशत्रु का प्यार उमड़ा तो उसने उसे गले से लगा लिया और उसे खाने खिलाने की कोशिश करने लगा.

इसी बीच उसके बेटे ने अचानक पेशाब कर दी, जिसकी कुछ बूंदे उसकी प्लेट में गिर गई. वह गुस्से से अपने बेटे को गोदी से उतार सकता था, किन्तु उसने ऐसा न करते हुए खाना जारी रखा. कुछ देर बाद अपने बेटे को देखकर उसे अपने पिता के प्रति प्रेम उमड़ आया.

बस फिर क्या था वह अपने आपको रोक नही सका और अपने पिता को जेल से निकालने चल दिया.

कोसल नरेश को हराया :--

सत्ता संभालते ही उसने विस्तारवादी नीति को अपनाया और अपने सम्राज्य को बढ़ाना शुरु कर दिया. कहते हैं कि उसके सिर पर जीतने का जूनून इस कदर चढ़ा था कि वह अपने रास्ते में आने वाले किसी भी आदमी को नहीं छोड़ता था.

यहां तक कि उसने कोसल के राजा प्रसेनजित से झुकने के लिए कहा, लेकिन जब वह नहीं माने तो उसके खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी थी. यूं तो प्रसेनजित बहुत वीर योद्धा थे, किन्तु, अपनी रणनीतियों के चलते अजातशत्रु उन्हें मात देने में सफल रहा. यही नहीं उसने प्रसेनजित की बेटी राजकुमारी ‘वजिरा’ से विवाह तक कर लिया.

असल में वह उसकी मदद से काशी जैसे जनपदों पर आसानी से अपना अधिकार चाहता था.

उसकी योजना कामयाब रही और वह एक-एक करके उसने अंग, लिच्छवी, वज्जी, और काशी जैसे जनपदों पर अपना आधिपत्य जमाने में सफल रहा. साथ ही अपनी नीतियों के चलते मगध को शक्तिशाली राष्ट्र बनाने में सफल रहा.

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