रजनीश ओशो

रजनीश ओशो

रजनीश ओशो

(आचार्य रजनीश, ओशो)

जन्म: 11 दिसंबर 1931 कुचवाडा ग्राम, रायसेन ज़िला भोपाल, मध्य प्रदेश, भारत
मृत्यु: 19 जनवरी 1990 पुणे, महाराष्ट्र
पिता: बाबूलाल जैन
माता: सरस्वती जैन
राष्ट्रीयता: भारतीय
धर्म : जैन
शिक्षा: सागर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर (1957)
किताबें | रचनाएँ : संभोग से समाधि की ओर, ध्यान योग, प्रथम और अंतिम मुक्ति, मैं मृत्यु सिखाता हूं, प्रेम-पंथ ऐसो कठिन, कृष्ण स्मृति

जीवन परिचय :--

ओशो (मूल नाम रजनीश) जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। 1960 के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलोचक रहे। उन्होंने मानव कामुकता के प्रति एक ज्यादा खुले रवैया की वकालत की, जिसके कारण वे भारत तथा पश्चिमी देशों में भी आलोचना के पात्र रहे, हालाँकि बाद में उनका यह दृष्टिकोण अधिक स्वीकार्य हो गया।

चन्द्र मोहन जैन का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था। ओशो शब्द की मूल उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई धारणायें हैं। एक मान्यता के अनुसार, खुद ओशो कहते है कि ओशो शब्द कवि विलयम जेम्स की एक कविता 'ओशनिक एक्सपीरियंस' के शब्द 'ओशनिक' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'सागर में विलीन हो जाना। शब्द 'ओशनिक' अनुभव का वर्णन करता है, वे कहते हैं, लेकिन अनुभवकर्ता के बारे में क्या? इसके लिए हम 'ओशो' शब्द का प्रयोग करते हैं। अर्थात, ओशो मतलब- 'सागर से एक हो जाने का अनुभव करने वाला'। 1960 के दशक में वे 'आचार्य रजनीश' के नाम से एवं 1970-80 के दशक में भगवान श्री रजनीश नाम से और 1982 के समय से ओशो के नाम से जाने गये। वे एक आध्यात्मिक गुरु थे, तथा भारत व विदेशों में जाकर उन्होने प्रवचन दिये।

रजनीश ने अपने विचारों का प्रचार करना मुम्बई में शुरू किया, जिसके बाद, उन्होंने पुणे में अपना एक आश्रम स्थापित किया, जिसमें विभिन्न प्रकार के उपचारविधान पेश किये जाते थे. तत्कालीन भारत सरकार से कुछ मतभेद के बाद उन्होंने अपने आश्रम को ऑरगन, अमरीका में स्थानांतरण कर लिया। 1985 में एक खाद्य सम्बंधित दुर्घटना के बाद उन्हें संयुक्त राज्य से निर्वासित कर दिया गया और 21 अन्य देशों से ठुकराया जाने के बाद वे वापस भारत लौटे और पुणे के अपने आश्रम में अपने जीवन के अंतिम दिन बिताये।

उनकी मृत्यु के बाद, उनके आश्रम, ओशो इंटरनॅशनल मेडिटेशन रेसॉर्ट को जूरिक आधारित ओशो इंटरनॅशनल फाउंडेशन चलाती है, जिसकी लोकप्रियता उनके निधन के बाद से अधिक बढ़ गयी है।


बचपन एवं किशोरावस्था :--

ओशो का मूल नाम चन्द्र मोहन जैन था। वे अपने पिता की ग्यारह संतानो में सबसे बड़े थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश में रायसेन जिले के अंतर्गत आने वाले कुचवाडा ग्राम में हुआ था। उनके माता पिता श्री बाबूलाल और सरस्वती जैन, जो कि तारणपंथी दिगंबर जैन थे, ने उन्हें अपने ननिहाल में 7 वर्ष की उम्र तक रखा था। ओशो के स्वयं के अनुसार उनके विकास में इसका प्रमुख योगदान रहा क्योंकि उनकी नानी ने उन्हें संपूर्ण स्वतंत्रता, उन्मुक्तता तथा रुढ़िवादी शिक्षाओं से दूर रखा। जब वे 7 वर्ष के थे तब उनके नाना का निधन हो गया और वे गाडरवारा अपने माता पिता के साथ रहने चले गए।

रजनीश बचपन से ही गंभीर व सरल स्वभाव के थे, वे शासकीय आदर्श उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पढा करते थे। विद्यार्थी काल में रजनीश एक विरोधी प्रवृत्ति के व्यक्ति हुआ करते थे, जिसे परंपरागत तरीके नहीं भाते थे। किशोरावस्था तक आते-आते रजनीश नास्तिक बन चुके थे। उन्हें ईश्वर और आस्तिकता में जरा भी विश्वास नहीं था। अपने विद्यार्थी काल में उन्होंने ने एक कुशल वक्ता और तर्कवादी के रूप में अपनी पहचान बना ली थी। किशोरावस्था में वे आज़ाद हिंद फ़ौज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी क्षणिक काल के लिए शामिल हुए थे।

जीवनकाल :--

वर्ष 1957 में संस्कृत के प्राध्यापक के तौर पर रजनीश रायपुर विश्वविद्यालय से जुड़े। लेकिन उनके गैर परंपरागत धारणाओं और जीवनयापन करने के तरीके को छात्रों के नैतिक आचरण के लिए घातक समझते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति ने उनका स्थानांतरण कर दिया। अगले ही वर्ष वे दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक के रूप में जबलपुर विश्वविद्यालय में शामिल हुए। इस दौरान भारत के कोने-कोने में जाकर उन्होंने गांधीवाद और समाजवाद पर भाषण दिया, अब तक वह आचार्य रजनीश के नाम से अपनी पहचान स्थापित कर चुके थे।

वे दर्शनशास्त्र के अध्यापक थे। उनके द्वारा समाजवाद, महात्मा गाँधी की विचारधारा तथा संस्थागत धर्म पर की गई अलोचनाओं ने उन्हें विवादास्पद बना दिया। वे मानव कामुकता के प्रति स्वतंत्र दृष्टिकोण के भी हिमायती थे जिसकी वजह से उन्हें कई भारतीय और फिर विदेशी पत्रिकाओ में "सेक्स गुरु" के नाम से भी संबोधित किया गया।

1970 में ओशो कुछ समय के लिए मुंबई में रुके और उन्होने अपने शिष्यों को "नव संन्यास" में दीक्षित किया और अध्यात्मिक मार्गदर्शक की तरह कार्य प्रारंभ किया। उनके विचारों के अनुसार, अपनी देशनाओं में वे सम्पूूूर्ण विश्व के रहस्यवादियों, दार्शनिकों और धार्मिक विचारधारों को नवीन अर्थ दिया करते थे। 1974 में पुणे आने के बाद उन्होनें अपने "आश्रम" की स्थापना की जिसके बाद विदेशियों की संख्या बढ़ने लगी, जिसे आज ओशो इंटरनॅशनल मेडिटेशन रेसॉर्ट के नाम से जाना जाता है. तत्कालीन जनता पार्टी सरकार के साथ मतभेद के बाद 1980 में ओशो "अमेरिका" चले गए और वहां ओरेगॉन, संयुक्त राज्य की वास्को काउंटी में रजनीशपुरम की स्थापना की। 1985 में इस आश्रम में मास फ़ूड पॉइज़निंग की घटना के बाद उन्हें संयुक्त राज्य से निर्वासित कर दिया गया. 21 अन्य देशों से ठुकराया जाने के बाद वे वापस भारत लौटे और पुणे के अपने आश्रम में अपने जीवन के अंतिम दिन बिताये।

अमेरिका के ऑरेगन में रजनीशपुरम् की स्थापना :--

1980 में ओशो के विदेशी सन्यासियों ने अमेरिका के ओरेगन में 64 हजार एकड़ बंजर जमीन खरीदकर एक कम्यून का निर्माण किया जहाँ ओशो को रहने के लिए आमंत्रित किया गया। ओशो हमेशा अपने प्रवचनों में कहते थे कि वे एक ऐसे कम्यून का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ मनुष्य के सम्पूर्ण विकास की परिकल्पना हो और मनुष्य अपनी पूर्ण खिलावट के रूप में प्रकट हो सके। ओशो का यह कम्यून सैन फ्रांसिस्को से तीन गुणा बड़ा था।

रजनीशपुरम

ओशो 1980 में भारत छोड़कर अपने बहुत से सन्यासियों के साथ अमेरिका चले गये। ओशो के सभी संन्यासी उस 64 हजार एकड़ बंजर जमीन को सुंदर जगह के रूप में बदलने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे थे।

इसी मेहनत का नतीजा रहा कि ओरेगन की सुनसान और बंजर घाटी देखते ही देखते सुंदर और हरे-भरे स्वर्ग के रूप में तब्दील हो गयी। ओशो के अनुयाइयों द्वारा बसाई गयी इस जगह को नाम दिया गया “रजनीशपुरम्”। भगवान रजनीश की यह एक ऐसी जगह थी जहाँ उनके पास अपने कई निजी विमान थे उनका अपना एयरपोर्ट था और साथ ही था रॉयल्स रॉयल कारों का एक पूरा काफिला।

अमेरिका में रहने के दौरान ओशो की लोकप्रियता में तेजी से इजाफा होने लगा ओशो से प्रभावित होने वालों में ज्यादातर युवा वर्ग था जो तन, मन और धन से ओशो के लिए पूरी तरह से समर्पित थे। इस तरह से एक विदेशी व्यक्ति की बढ़ती लोकप्रियता के चलते अमेरिकी सरकार घबरा गयी।

अमेरिका सरकार द्वारा ओशो को जेल भेजना और अमेरिका छोड़ना

धीरे-धीरे अमेरिकी सरकार ने ओशो के आश्रम पर शिकंजा कसने लगी, ओशो के यहाँ आने वाले सन्यासियों को सरकार ने वीसा देना बंद दिया और आश्रम में गैर-कानूनी गतिविधियों की अफवाहें भी फैलाई जाने लगी और भगवान् रजनीश की छवि को धूमिल करने की कोशिशें की जाने लगी।

ओशो ने इस संबंध कहा हैं कि

“मेरी एक भी बात का जवाब पश्चिम में नहीं हैं, मैं तैयार था प्रेसिडेंट रोनाल्ड रीगन (अमेरिकी राष्ट्रपति) से वाइट हाउस में डिस्कस करने को खुले मंच पर क्योंकि वे फंडामेंटलिस्ट इसाई हैं, वे मानते हैं कि इसाई धर्म ही एक मात्र धर्म हैं बाकी सब धर्म धोधे हैं, संभवतः मैं उन्हें दुश्मन जैसा लगा।“

आख़िरकार ओशो पर झूठे आरोप लगाकर अमेरिकी सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और इस दौरान इन्हें पूरे 12 दिनों तक अज्ञातवास में रखा गया। ओशो का इस तरह से जेल में जाना उनके अनुयाइयों के लिए किसी गहरे सदमें से कम नहीं था। इसके बाद यह तय हो गया था कि अब भगवान रजनीश अमेरिका में नहीं रहेंगे।

14 नवम्बर 1985 को ओशो ने अमेरिका छोड़ दिया और इस दौरान ओशो विश्व के अलग-अलग देशों में रहने के उद्देश्य से भ्रमण किया। लेकिन अमेरिकी सरकार के दबाव में 21 देशों ने अपने यहाँ रहने की इजाजत नहीं दी तो कुछ देशों ने ओशो के देश में प्रवेश पर ही प्रतिबन्ध लगा दिया।


ओशो की प्रमुख 5 किताबें :--

संभोग से समाधि की ओर : यह ओशो की सबसे चर्चित और विवादित किताब है, जिसमें ओशो ने काम ऊर्जा का विश्लेषण कर उसे अध्यात्म...

1. संभोग से समाधि की ओर : यह ओशो की सबसे चर्चित और विवादित किताब है, जिसमें ओशो ने काम ऊर्जा का विश्लेषण कर उसे अध्यात्म की यात्रा में सहयोगी बताया है। साथ ही यह किताब काम और उससे संबंधित सभी मान्यताओं और धारणाओं को एक सकारात्मक दृष्टिकोण देती है। ओशो कहते हैं 'काम पाप नहीं। यह भगवान तक पहुंचने का पहला पायदान है।'

2. ध्यान योग, प्रथम और अंतिम मुक्ति : यह ओशो द्वारा ध्यान पर दिए गए गहन प्रवचनों का संकलन है। इसमें ध्यान की अनेक विधियों का वर्णन है, जो हमारी सहायता कर सकती हैं। इस किताब को ध्यान के लिए मार्गदर्शक की तरह इस्तेमाल करने के लिए आपको इसे पहले से आखिरी पेज तक पढ़ना जरूरी है। कोई विधि आजमाने के लिए इस किताब का इस्तेमाल अंत:प्रेरणा से करें।

3. मैं मृत्यु सिखाता हूं : इस किताब के माध्यम से ओशो समझाते हैं कि जन्म और मृत्यु एक ही सिक्के को दो पहलू हैं। जन्म और मृत्यु को मिलाकर ही पूरा जीवन बनता है। जो अपने जीवन को सही और पूरे ढंग से नहीं जी पाते, वही मृत्यु से घबराते हैं। सच तो यह है ओशो जीवन को पूरे आनंद के साथ जीने की कला सिखाते हैं और यही कला मृत्यु के भय से हमें बचाती और जगाती है।

4. प्रेम-पंथ ऐसो कठिन : ओशो की यह किताब प्रेम के तीन रूपों - प्रेम में गिरना, प्रेम में होना और प्रेम ही हो जाना, को स्पष्ट करती है। ओशो एक प्रश्नोत्तर प्रवचनमाला शुरू करते हैं और प्रेम व जीवन से जुड़े सवालों की गहरी थाह में हमें गोता लगवाने लिए चलते हैं। यह एक इंद्रधनुषी यात्रा है - विरह की, पीड़ा की, आनंद की, अभीप्सा की और तृप्ति की।

5. कृष्ण स्मृति : यह किताब ओशो द्वारा कृष्ण के बहु-आयामी व्यक्तित्व पर दी गई 21 वार्ताओं और नवसंन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का खास संकलन है। यही वह प्रवचनमाला है, जिसके दौरान ओशो के साक्षित्व में संन्यास ने नए शिखर को छूने के लिए उत्प्रेरणा ली और 'नव-संन्यास अंतरराष्ट्रीय' की संन्यास दीक्षा का सूत्रपात हुआ।

1. दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं : यह किताब मां धर्म ज्योति ने लिखी है, जिसमें ओशो से मिलने के बाद के उनके अपने संस्मरण हैं। ये संस्मरण न केवल पाठक को ओशो के और नजदीक लाते हैं, बल्कि जीवन में समर्पण का भाव भी जगाते हैं।

2. ध्यान और उत्सव के ओजस्वी ऋषि : 'स्वामी सत्य वेदांत' द्वारा लिखी गई यह किताब ओशो के ओजस्वी जीवन के अहम पहलुओं को दर्शाती है। साथ ही ओशो कम्यून और ऑरेगन से संबंधित व उसके बाद की घटनाओं से जुड़े सच को भी उजागर करती है।

3. बियॉन्ड ओशो : जॉर्ज ब्लास्चके की यह किताब विदेशों में बेस्टसेलर रह चुकी है। इसमें लेखक ने ओशो के काम और उनकी कार्यदृष्टि की बड़े ही सुंदर ढंग से व्याख्या की है। साथ ही किताब ओशो के विचारों और उनके संदेशों को तलाशने में भी मदद करती है।

4. कौन है ओशो? : यह किताब न केवल जन्म से लेकर मृत्यु तक ओशो के जीवन को बारीकी से दर्शाती है, बल्कि उनके ऊपर लगे आरोपों और विवादों को भी स्पष्ट करती है। साथ ही ओशो का इस जगत को दिया योगदान व उनके दर्शन-देशनाओं को भी रेखांकित करती है।

5. परम विद्रोही ओशो : डॉ. कुलदीप कुमार धीमान की यह किताब ओशो के क्रांतिकारी विचारों का विश्लेषण करती है। साथ ही यह भी पता चलता है कि ओशो दूसरे तथाकथित संतों-गुरुओं से कितने और कैसे भिन्न हैं।

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