रेने देकार्त

रेने देकार्त

रेने देकार्त

जन्म: 31-03-1556 (फ्रांस)
मृत्यु: 11-02-1650 (स्वीडन)
धर्म : यूनानी

मध्य युग के श्रेष्ठ गणितज्ञों व दार्शनिकों में से एक रेने डेस्कार्टेस का जन्म 31 मार्च, 1596 को फ्रांस के रोटे प्रांत में ला हाये नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता एक अन्य प्रांत ब्रिटनी के पार्षद थे। वे पेशे से वकील व जज थे। रेने डेस्कार्टेस की माता भी कुलीन घराने की महिला थीं।

रेने अपने माता-पिता की चौथी संतान था। जन्म के एक वर्ष बाद ही माता का निधन हो गया और पिता के पुनर्विवाह के पश्चात् दादी ने रेने को पाला। साथ में देखरेख हेतु आया भी थी। पर फिर भी, रेने का स्वास्थ्य नाजुक ही बना रहा। पर बचपन से ही रेने अत्यंत जिज्ञासु था। वह हर चीज या घटना का कारण जानने का प्रयास करता था।

8 वर्ष की उम्र में रेने को पढ़ने के लिए भेजा गया। यहाँ पर जिस शिक्षक का संरक्षण उसे मिला वे अत्यंत विद्वान् थे और रिश्तेदार भी थे। यहाँ पर रेने ने लैटिन व ग्रीक भाषाओं के अतिरिक्त फ्रेंच, संगीत, नाटक के अतिरिक्त घुड़सवारी व तलवारबाजी भी सीखी। उन्होंने स्कूली दिनों में ही बहुत सारा साहित्य भी पढ़ डाला। साथ ही दर्शन में भी उनकी रुचि जग गई। उन्होंने अरस्तू द्वारा विकसित तर्कशास्त्र का अध्ययन किया; साथ ही भौतिकी, गणित व खगोल-शास्त्र का भी अध्ययन किया, जो अरस्तू के ही सिद्धांतों पर आधारित थे।

रेने के अध्यापकों की राय थी कि वे बुद्धिमान, परिश्रमी, आत्मचिंतन करने वाले एवं व्यवहार-कुशल थे; पर उनमें प्रतिस्पर्धा की भावना नहीं थी। पढ़ाई के दौरान कमजोर स्वास्थ्य के कारण वे देर से उठ पाते थे और इस कारण कुछ व्याख्यान छूट भी जाते थे। आत्मचिंतन अधिक करने के कारण वे पाठ्य-पुस्तकों पर ध्यान कम दे पाते थे।

सन् 1616 में रेने डेस्कार्टेस ने कानून की पढ़ाई पूरी करके डिग्री ली थी। अपने पारिवारिक व्यवसाय में पूरा समय देने के स्थान पर रेने ने यात्रा और अध्ययन में अधिक समय लगाया। सन् 1618 में वे हॉलैंड गए और सेना में अवैतनिक रूप से अधिकारी का दायित्व निभाया। वह सेना स्पेन के समृद्ध इलाकों पर कब्जा करने की तैयारी कर रही थी। पर सैन्य शिविर का जीवन उन्हें रास नहीं आया। पर इसी बीच एक फ्रेंच सैन्य अधिकारी से उनकी मित्रता हो गई, जो कुशल गणितज्ञ भी थे। उन्होंने विभिन्न समस्याओं का बीजगणितीय रूप से हल निकाला।

उनसे प्रेरित होकर रेने डेस्कार्टेस ने बीजगणितीय सूत्रों को ज्यामितीय रूप दिया। इसके साथ ही मार्च 1619 में गणित की एक नई विधा का जन्म हुआ। पर रेने डेस्कार्टेस सेना की नौकरी में ज्यादा दिन नहीं टिक पाए और इसी बीच उनकी मित्रता आइजक बैकमैन से हुई, जो कि पास के ही शहर में प्रोफेसर थे। यह मित्रता 20 वर्ष तक चली और इस दौरान विभिन्न गणितीय विधाओं पर कार्य हुआ। यह कार्य सन् 1637 में प्रकाशित हुआ। इसमें सवालों के सरलीकरण व जोड़ने की प्रक्रिया द्वारा हल निकालना बताया गया।

डेस्कार्टेस ने लंबी यात्राएँ कीं और वे डेनमार्क, पोलैंड, जर्मनी आदि गए। वे अच्छे गरम कमरे में रहते थे और कम-से-कम दस घंटे सोते थे। लगातार विचारों में खोए रहनेवाले डेस्कार्टेस हमेशा सत्य की तलाश में रहते थे। सन् 1622 में वे फ्रांस में ही रहे और 1623 में इटली गए तथा 1625 में लौटकर आए। इसके बाद वे ज्यादातर पेरिस में ही रहे। उन्होंने अपने यात्रा-अनुभवों का वर्णन भी लिखा तथा साथ ही आत्मचिंतन के दौरान उभरे विचारों का भी उल्लेख किया। उनके कार्य से उनकी प्रसिद्धि बढ़ी। सन् 1930 के बाद उन्होंने विभिन्न विषयों का अध्ययन किया और प्राप्त ज्ञान को अपने कार्य के तरीकों से जोड़ा।

उनका अध्ययन-क्षेत्र बढ़ता गया। इसमें ऑप्टिक्स, प्रकाश की प्रकृति, अपवर्तन के नियम, मौसम विज्ञान, भौतिक पिंडों की प्रकृति व संरचना, वायु, जल, पृथ्वी, गणित—विशेष रूप से ज्यामिति, शरीर क्रिया-विज्ञान, शरीर-रचनाशास्त्र सभी आते थे। उन्होंने प्राणियों की चीर-फाड़ करके भी अध्ययन किया। नमूने प्राप्त करने के लिए वे पास के कसाईबाड़े में जाते थे। उन्होंने भ्रूण-विज्ञान की कल्पना भी की थी। उनकी हार्दिक इच्छा थी कि उनका सारा कार्य एक बृहृत् पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो जाए।

सन् 1633 तक उन्होंने इसका प्रारूप भी तैयार कर लिया था। तभी उन्हें समाचार मिला कि कोपरनिकस के सिद्धांत की वकालत करने के कारण गैलीलियो को नजरबंद कर दिया गया है। उनके मन में गैलीलियो की पुस्तक को पढ़ने की इच्छा जागी और यह उनके मित्र बैकमैन के पास थी। पढ़कर उन्हें पता चला कि इसमें वर्णित अनेक तथ्यों का प्रमाण वे पहले ही पा चुके हैं। इसमें कोपरनिकस का सिद्धांत, जिसके अनुसार पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, भी शामिल था। पर साथ ही डेस्कार्टेस गैलीलियो की पुस्तक पढ़कर आशंकित हो गए और उन्होंने अपनी पांडुलिपि को प्रकाशन हेतु नहीं भेजा। इसका एक कारण यह भी था कि उनका वैज्ञानिक कार्य अनेक मान्यताओं पर आधारित था और तर्क के गलत सिद्ध होने पर धराशायी हो सकता था।

अगले तीन वर्षों में उनका विश्वास कुछ दृढ़ हुआ और उन्हें लगा कि उनके सिद्धांतों के कुछ प्रयोग ठोस धरातल पर हैं और वे कैथोलिक चर्च या उनके शिक्षकों पर आघात नहीं करेंगे। सन् 1637 में उन्होंने अपनी एक रचना बेनाम रूप से छपवाई। उस समय के अनुसार एक विशेष बात यह थी कि वह रचना फ्रेंच में प्रकाशित हुई थी, जबकि उस समय की विद्वानों की भाषा लैटिन थी। उसके तीन खंड थे, जिसमें पहला खंड ऑप्टिक्स पर था और उसमें अपवर्तन के नियमों की व्याख्या की गई थी।

अन्य में मौसम की वैज्ञानिक व्याख्या, इंद्रधनुष के बनने की व्याख्या, कार्टीशियन कोऑर्डिनेट्स के तरीके (यह नामकरण लिबनिज ने किया था)। जैसा कि आमतौर पर होता है, डेस्कार्टेस के कुछ सिद्धांतों की सराहना हुई और कुछ का खंडन। रेने डेस्कार्टेस ने पूरी विनम्रता का परिचय दिया था। उन्होंने सत्य तक पहुँचने के मार्ग को बतलाने का विशेष प्रयास किया था। उन्होंने यह भी बतलाया कि उन्होंने जब विभिन्न पुस्तकों में वर्णित तथ्यों को पढ़ा और उन पर शोध व चिंतन किया तो पाया कि ये व्यक्ति को भटका देती हैं। उन्होंने सत्य तक पहुँचने का स्पष्ट मार्ग दरशाया—

उस तथ्य को कभी नहीं स्वीकारना चाहिए, जो व्यक्ति को स्पष्ट व विशिष्ट रूप से सत्य लगे। डेस्कार्टेस ने अपनी रचना फ्रेंच में इसलिए लिखी थी कि वह आम जनों तक पहुँच सके।

साथ ही वे यह भी चाहते थे कि जब परिवर्तन का दौर चले तो उथल-पुथल न हो और जीवन सामान्य गति से चले। उन्होंने किसी भी वैज्ञानिक समस्या को हल करने का तरीका भी स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि समस्या को अधिकतम भागों में बाँट देना चाहिए। इसके बाद चिंतन व हल करने की प्रक्रिया को क्रम से चलाना चाहिए। सबसे पहले सरलतम भाग हल करने चाहिए और फिर जटिलतम भाग। यह सावधानी अवश्य बरतनी चाहिए कि कोई भाग छूट न जाए, अन्यथा निकाला गया हल अधूरा या असत्य सिद्ध हो सकता है। आज उपर्युक्त चीजें नई नहीं लगती हैं, पर उस काल में आम जीवन से परे थीं।

यूरोप में लोग पूरी तरह अंधकार में डूबे थे और सत्य पर धर्म का शिकंजा पूरी तरह जकड़ा था। उन्होंने संदेहों के निवारण के जरिए सत्य तक पहुँचने का मार्ग बतलाया। उन्होंने कहा कि किसी चीज को साबित करने के लिए पहले संदेह आवश्यक है। उन्होंने ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न-चिह्न लगाया और फिर उनके महत्त्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने तरीके से विश्व का वर्गीकरण किया और कहा कि संसार को दो वगों में बाँटा जा सकता है। ये हैं— 

1. वे जो सोच सकते हैं, जीवित प्राणी।

2. वे जो नहीं सोच सकते हैं, अर्थात् निर्जीव पदार्थ।

तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए डेस्कार्टेस ने अपनी रचना में अपना नाम नहीं दिया था; पर गोपनीयता बनाए रखना भी कठिन था। जल्दी ही पुस्तक में वर्णित तथ्यों पर विवाद प्रारंभ हो गया। अनेक लोगों ने विरोध किया, पर अनेक लोगों ने प्रभावित होकर उनका शिष्य कहलाना पसंद किया। इन लोगों ने डेस्कार्टेस के सिद्धांतों का समर्थन प्रारंभ किया। उधर डेस्कार्टेस इन सबसे दूर अपना शोध, चिंतन व लेखन करते रहे।

सन् 1638 से 1640 के बीच वे बहुत कम लोगों से मिले या पत्र लिखा। उनका आना जाना सीमित रहा। वे सांतपूर्त नामक स्थान पर एकांतवास करते रहे। उनके साथ एक युवा नौकरानी ही थी, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने उनकी बेटी को जन्म दिया, जो सन् 1640 में चल बसी। पर डेस्कार्टेस ने अपने आलोचकों के पत्रों को गंभीरता से लिया और उनके उत्तरों पर आधारित उनकी लैटिन में रचना ‘मेडिटेशन’ तैयार हुई।

सन् 1540 में प्रकाशित उस रचना का फ्रेंच रूपांतरण सन् 1647 में प्रकाशित हुआ। उस काल में डेस्कार्टेस की रचनाएँ किसी भूचाल से कम नहीं थीं। अनेक जगहों पर डेस्कार्टेस का घोर विरोध हुआ। जो लोग समर्थन कर रहे थे, वे भी ज्यादातार मौन ही थे। डेस्कार्टेस अपने समकालीन वैज्ञानिकों व गणितज्ञों से मिले। ब्लेज पास्कल से मिलकर उन्होंने उस बात के प्रायोगिक सत्यापन पर चर्चा की कि वायु हर वस्तु पर दबाव डालती है। उन्होंने शरीर की सफाई पर भी चर्चा की। अक्तूबर 1649 में वे स्टॉकहोम गए, जहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ। वहाँ की 23 वर्षीय रानी से वे अत्यंत प्रभावित हुए।

रानी को अध्ययन का बड़ा शौक था पर दर्शन से वे अपरिचित थीं। रानी डेस्कार्टेस से दर्शन सीखने लगीं। सारी जिंदगी भय व विरोध से बचकर एकांतवास झेलनेवाले रेने डेस्कार्टेस को पहली बार मान-सम्मान मिला, पर स्वीडन की कड़कती ठंड ने मजा बिगाड़ दिया। डेस्कार्टेस बीमार पड़ गए और 1 फरवरी, 1650 को न्यूमोनिया के शिकार हो गए। दस दिनों की बीमारी उनके लिए जानलेवा सिद्ध हुई।

उस समय स्वीडन प्रोटेस्टेंट मत का अनुयायी थी और डेस्कार्टेस कैथोलिक ही थे, अतः उनको अनाथ बच्चों के लिए सुरक्षित कब्रगाह में दफनाया गया। सन् 1667 में उनके अवशेष पेरिस लाए गए और फिर से दफनाया गया। फ्रांसीसी क्रांति में पुनः उनके अवशेषों को एक बार सफर करना पड़ा और आज उनकी कब्र फ्रांस के श्रेष्ठ चिंतकों के बीच है तथा ज्यामिति में उनका योगदान अक्षुण्ण है।

Share on Social Media:-