ऑस्कर वाइल्ड

ऑस्कर वाइल्ड

ऑस्कर वाइल्ड

जन्म: 16 अक्तूबर, 1854 (डबलिन, आयरलैंड)
मृत्यु: 30 नवम्बर, 1900 (पेरिस, फ्रांस)

महानतम रचनाकारों में शेक्सपियर के बाद ऑस्कर वाइल्ड का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे एंग्लो-आइरिश उपन्यासकार, नाटककार, कवि, आलोचक और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। ऑस्कर फिंगाल ओ लाहर्टी विल्स वाइल्ड का जन्म 16 अक्टूबर, 1858 को आयरलैंड की राजधानी डबलिन में हुआ।

उनके पिता एक मशहूर सर्जन तथा माँ लेखिका और साहित्यकार थीं। उनकी शिक्षा डबलिन के ट्रिनिटी कॉलेज और ऑक्सफोर्ड में हुई। शिक्षा के बाद लेखन में कैरिअर बनाने के लिए वे लंदन आ गए। उनका पहला कविता-संग्रह वर्ष 1881 में प्रकाशित हुआ, उन्होंने परी कथाएँ भी लिखीं। उनके नाटकों ‘लेडी विडरमीयर्स फेन (1892), ‘एन आइडियल हसबैंड’ (1895) और ‘द इंपोर्टेंस ऑफ बीइंग अर्नेस्ट’, (1895) ने उन्हें तत्कालीन लेखन जगत् में बहुत लोकप्रियता दिलाई। वे ड्रामा और ट्रेजडी के किंग कहलाने लगे, जो उनके निजी जीवन में भी जारी रहे। उन्होंने कोंस्टेंस लॉयड से सन् 1884 में विवाह किया। उनके दो पुत्र हुए। सन् 1819 में वे समलैंगिकता के ‘अपराध’ में पकड़े गए और उन्हें दो साल की जेल हो गई। बदनामी से बचने के लिए उनकी पत्नी बच्चों को लेकर स्विट्जरलैंड चली गई और अपना नाम बदलकर हॉलैंड रख लिया।

जेल से छूटने के बाद ऑस्कर बीमार रहने लगे। उनकी प्रतिष्ठा खाक में मिल गई थी। वे लंदन से पेरिस जाकर रहने लगे और गुमनाम जीवन जीने लगे। यहीं उन्होंने अपनी आखिरी रचना ‘बालेड ऑफ रीडिंग गाओल’ लिखी, जो 1890 में प्रकाशित हुई। पेरिस में गुमनामी में ही 30 नवंबर, 1900 को ऑस्कर का निधन हो गया। तब उनके पास कोई नहीं था, बस प्रतिष्ठा की कुछ चिंदियाँ और सघन अकेलापन मौजूद था।

महान् भविष्यवक्ता कीरो के समकालीन ऑस्कर एक महान् रचनाकार के साथ-साथ एक संवेदनशील इनसान भी थे। कीरो ने उनके हाथ देखकर ही बता दिया था कि वे ख्याति के साथ-साथ बदनामी भी अर्जित करेंगे और अल्पायु में गुमनाम ही उनकी मृत्यु होगी। वही हुआ, वर्ष 1888 में ‘द हैपी प्रिंस एंड अदर टेल्स’ और उनके एकमात्र उपन्यास ‘द पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे’ से उन्हें विश्व-व्यापी लोकप्रियता मिली, लेकिन एक अभिजात लॉर्ड एल्फे्र ड डगलस से उनके समलैंगिक संबंध बन गए, जो तत्कालीन इंग्लैंड में गैरकानूनी थे। उन पर मुकदमा चला और उन्हें दो वर्ष की सश्रम सजा हो गई।

46 वर्ष की अल्पायु में उनकी मौत हो गई। ऑस्कर ने बाल-रचनाएँ भी कीं—‘द हैपी प्रिंस’ और ‘द सैलफिश जॉइंट’ आज भी बच्चों को गुदगुदाती हैं। उनकी रचनाओं पर फिल्में और धारावाहिक भी बने। वे सौंदर्यवादी आंदोलन से भी जुड़े रहे। उनकी कृतियाँ विश्व की अनेक भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कृतियों में जगह-जगह उनकेनिजी जीवन की विसंगतियाँ नजर आती हैं, लेकिन रचना-प्रवाह और कोमलता की उनमें जरा भी अनदेखी नहीं की गई।

ऑस्कर के कई लोकप्रिय कथन आज भी लोगों की जुबान पर हैं। उन्होंने कहा— 

विपदाएँ झेली जा सकती हैं, क्योंकि वे बाहर से आती हैं, किंतु अपनी गलतियों का दंड भोगना, हाय, वही तो है जीवन का दंश।

‘‘पुस्तकें नैतिक या अनैतिक नहीं होतीं, वे या तो अच्छी लिखी गई होती हैं या बुरी।’’ 

ऑस्कर वाइल्ड आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन कहते हैं न रचनाकार कभी नहीं मरता, वे अपनी रचनाओं, अपने विचारों के रूप में आज भी जीवित हैं और अपने संदेश से हमें तृप्त कर रहे हैं।

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