
नीम करौली बाबा
(लक्ष्मण दास शर्मा)
जन्म: | 1900 के आसपास, अकबरपुर गाँव, फिरोजाबाद ज़िला, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु: | 11 सितंबर, 1973 को वृंदावन |
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
धर्म : | हिन्दू |
नीम करौली बाबा (Neem Karoli Baba) की जीवनी:--
नीम करौली बाबा, जिन्हें महाराज जी के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म अकबरपुर, फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उनके जन्म की सही तिथि अज्ञात है, लेकिन माना जाता है कि वे लगभग 1900 के आसपास पैदा हुए थे। उनके बचपन का नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था। बचपन से ही वे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे और अक्सर ध्यान व भक्ति में लीन रहते थे।
उनका जन्म एक धनी ब्राह्मण परिवार में हुआ, 11 वर्ष की उम्र में उनके माता-पिता द्वारा शादी कर दिए जाने के बाद, उन्होंने साधु बनने के लिए घर छोड़ दिया। बाद में वह अपने पिता के अनुरोध पर, वैवाहिक जीवन जीने के लिए घर लौट आए। वह दो बेटों और एक बेटी के पिता बने।
ऐसा माना जाता है कि जब तक महाराजजी 17 वर्ष के थे उनको इतनी छोटी सी आयु मे सारा ज्ञान था| बताते है , भगवान श्री हनुमान उनके गुरु है| उन्होंने भारत में कई स्थानों का दौरा किया और विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से जाने जाते थे। गंजम में मां तारा तारिणी शक्ति पीठ की यात्रा के दौरान स्थानीय लोगों ने उन्हें हनुमानजी, चमत्कारी बाबा के नाम से संबोधित किया करते थे।
कहा जाता है कि एक बार बाबा ट्रेन में सफर कर रहे थे।लेकिन उनके पास टिकट नहीं था। जिस कारण टीटी अफसर ने उन्हें पकड़ लिया। बिना टिकट होने के कारण अफसर ने उन्हें अगले स्टेशन में उतरने को कहा।स्टेशन का नाम नीम करोली था।स्टेशन के पास के गांव को नीम करोली के नाम से जाना जाता है। बाबा को गाड़ी से उतार दिया गया और ऑफिसर ने ड्राइवर से गाड़ी चलाने का आदेश दिया। बाबा वहां से कहीं नहीं गए। उन्होंने ट्रेन के पास ही एक चिमटा धरती पर लगाकर बैठ गए।
चालक ने बहुत प्रयास किया लेकिन ट्रेन आगे ना चली। ट्रेन आगे ना चलने का नाम ही नहीं ले रही थी। तभी गाड़ी में बैठे सभी लोगों ने कहा यह बाबा का प्रकोप है।उन्हें गाड़ी से उतार देने का कारण ही है कि गाड़ी नहीं चल रही है। तभी वहां बड़े ऑफिसर जो कि बाबा से परिचित थे। उन्होंने बाबा से क्षमा मांगी और ड्राइवर और टिकट चेकर दोनों को बाबा से माफी मांगने को कहा।सब ने मिलकर बाबा को मनाया और उनसे माफी मांगी। माफी मांगने के बाद बाबा ने सम्मानपूर्वक ट्रेन पर बैठ गए। लेकिन उन्होंने यह शर्त रखी कि इस जगह पर स्टेशन बनाया जाएगा।जिससे वहां के गांव के लोग को ट्रेन में आने के लिए आसानी हो जाए क्योंकि वहां लोग आने के लिए मिलो दूर से चलकर आते थे। तब जाकर ट्रेन में बैठ पाते थे।उन्होंने बाबा से वादा किया और वहां पर नीम करोली नाम का स्टेशन बन गया। यहीं से बाबा की चमत्कारी कहानियां प्रसिद्ध हो गई और इस स्थान से पूरी दुनिया में बाबा का नाम नीम करोली बाबा के नाम से जाना जाने लगा।यही से बाबा को नीम करोली नाम मिला था।
आध्यात्मिक यात्रा:--
युवावस्था में ही उन्होंने घर छोड़ दिया और साधु-संतों के साथ रहकर ज्ञान की खोज शुरू की। वे कई वर्षों तक हिमालय और अन्य तीर्थ स्थानों की यात्रा करते रहे। उनके गुरु के बारे में विवरण स्पष्ट नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि उन्होंने हनुमान जी की गहरी भक्ति की और उन्हें अपना आध्यात्मिक मार्गदर्शक माना।
नीम करौली गाँव और नामकरण:--
वे नीम करौली नामक एक छोटे से गाँव (उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में) में रहने लगे, जहाँ से उनका नाम नीम करौली बाबा प्रसिद्ध हुआ। उनका आश्रम वहाँ आज भी एक प्रमुख तीर्थ स्थान है।
शिक्षाएँ और चमत्कार
नीम करौली बाबा भक्ति, प्रेम और सेवा पर जोर देते थे। उनका मानना था कि "सब एक ही हैं" और ईश्वर का सच्चा साक्षात्कार प्रेम और भक्ति से ही होता है। उनके अनुयायियों के अनुसार, वे अलौकिक शक्तियों (सिद्धियों) के स्वामी थे—जैसे समय और स्थान से परे होना, भक्तों के मन की बात जान लेना और चमत्कारिक रूप से लोगों की मदद करना।
प्रसिद्ध शिष्य
उनके कई प्रसिद्ध शिष्य हुए, जिनमें से कुछ हैं:
राम दास (Richard Alpert) – हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और "Be Here Now" किताब के लेखक।
भगवान दास – अमेरिकी योगी और लेखक।
मार्क जुकरबर्ग (Mark Zuckerberg) और स्टीव जॉब्स (Steve Jobs) ने भी उनके बारे में सुना और प्रभावित हुए।
महासमाधि:--
11 सितंबर, 1973 को वृंदावन (उत्तर प्रदेश) में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। उनकी समाधि स्थल कैंची धाम (नीम करौली), वृंदावन और टाटा कॉर्पोरेशन (लखनऊ) में हैं।
विरासत:--
उनके उपदेशों और प्रेम के संदेश ने पूरी दुनिया में लाखों लोगों को प्रभावित किया। उनके नाम पर कई आश्रम, मंदिर और सेवा संस्थान चलाए जा रहे हैं, जैसे:
नीम करौली बाबा मंदिर, कैंची धाम
हनुमान गढ़ी, वृंदावन
द अरविंदो सोसाइटी
नीम करौली बाबा के प्रमुख उपदेश:--
"सबसे बड़ी पूजा सेवा है।"
"भगवान का नाम लो, मन में प्रेम रखो।"
"डरो मत, ईश्वर सबके साथ है।"
"सच्चा गुरु वही है जो तुम्हें स्वयं में ईश्वर का दर्शन कराए।"
2. संन्यास और आध्यात्मिक खोज
युवावस्था में ही घर छोड़कर हिमालय, वृंदावन, काशी और अन्य तीर्थों की यात्रा की।
कई संतों और सिद्धों से मिले, लेकिन उनके गुरु का नाम स्पष्ट नहीं है। कहा जाता है कि उन्हें हनुमान जी का साक्षात्कार हुआ था।
"नीम करौली" नाम कैसे पड़ा?
वे कुमाऊँ (उत्तराखंड) के एक छोटे से गाँव नीम करौली में एक पेड़ के नीचे धूनी रमाकर रहने लगे। यहीं से उनका नाम "नीम करौली बाबा" प्रसिद्ध हुआ।
3. शिक्षाएँ और दर्शन:--
"सबको प्रेम दो, सबकी सेवा करो – यही सच्ची पूजा है।"
"भगवान का नाम लेते रहो, मन में प्रेम रखो, बाकी सब झूठ है।"
"डरो मत, ईश्वर हमेशा तुम्हारे साथ है।"
"गुरु वही है जो तुम्हें स्वयं में भगवान का दर्शन कराए।"
वे हनुमान चालीसा के पाठ पर विशेष जोर देते थे।
4. चमत्कार और लीलाएँ:--
नीम करौली बाबा को महासिद्ध माना जाता था। उनके कुछ प्रसिद्ध चमत्कार:
अदृश्य हो जाना: कई बार वे अचानक गायब हो जाते थे और दूसरे स्थान पर प्रकट होते थे।
भक्तों के मन की बात जान लेना: बिना बताए ही वे लोगों की समस्याएँ समझ लेते थे।
अन्न की अक्षय पेटी: उनके आश्रम में कितने भी लोग आ जाएँ, भोजन कभी कम नहीं पड़ता था।
रोगों का ठीक करना: कई लोगों को उनके स्पर्श या आशीर्वाद से चमत्कारिक रूप से स्वास्थ्य लाभ मिला।
5. प्रसिद्ध शिष्य:--
राम दास (Richard Alpert) हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर, जिन्होंने "Be Here Now" किताब लिखी।
भगवान दास (Bhagavan Das) अमेरिकी योगी और लेखक।
स्टीव जॉब्स (Steve Jobs) एप्पल के संस्थापक, जो नीम करौली बाबा से प्रभावित थे।
मार्क जुकरबर्ग (Mark Zuckerberg) फेसबुक के संस्थापक, जिन्होंने नीम करौली बाबा के बारे में पढ़ा था।
जूलिया रॉबर्ट्स (Julia Roberts) हॉलीवुड अभिनेत्री, जो हिंदू धर्म और बाबा की शिक्षाओं से प्रभावित हैं।
समाधि स्थल:--
कैंची धाम आश्रम (नीम करौली, उत्तराखंड)
वृंदावन (भक्ति कुटीर)
टाटा कॉर्पोरेशन, लखनऊ (जहाँ उन्होंने अंतिम दिन बिताए)
7. नीम करौली बाबा के प्रमुख आश्रम:--
कैंची धाम (नीम करौली, उत्तराखंड) – मुख्य आश्रम।
हनुमान गढ़ी (वृंदावन) – यहाँ हनुमान जी की विशाल मूर्ति है।
ताड़केश्वर धाम (कोलकाता) – जहाँ बाबा ने कुछ समय बिताया।
अमेरिका में भी कई केन्द्र, जैसे Neem Karoli Baba Ashram, Taos, New Mexico।
8. नीम करौली बाबा की विरासत:--
अन्नक्षेत्र (मुफ्त भोजनालय): उनके आश्रमों में हज़ारों लोगों को निःशुल्क भोजन दिया जाता है।
"Love All, Serve All" – उनका प्रसिद्ध संदेश, जो दुनियाभर में फैला।
कई पुस्तकें और डॉक्यूमेंट्री उनके जीवन पर बनीं, जैसे:
"Miracle of Love" (राम दास द्वारा)
"Fierce Grace" (डॉक्यूमेंट्री)
"जब तक तुम स्वयं को भगवान नहीं समझोगे, तब तक तुम उन्हें नहीं पा सकते।"
बाबा की अनन्य भक्त सिद्धि मां:--
सिद्धि मां के बारे में लेखिका लिखती हैं- वर्ष 1930 के मध्य की बात होगी. अल्मोड़ा के बाजार में चहल-पहल हो रही थी. तभी वहां के स्थानीय लोगों ने सहसा धोती पहने और कम्बल ओढ़े एक लंबी-चौड़ी काया के व्यक्ति को नगर के व्यापारी प्यारे लाल साह की दुकान पर देखा. इस आगमन के महत्व का किसी को भान तक नहीं था. ये अभ्यागत स्वयं नीम करोली बाबा थे जो साह की सात वर्षीय कन्या सिद्धि को आशीर्वाद देने आए थे. यही नन्हीं बालिका सिद्धि कालान्तर में बाबा की परम भक्त और शिष्य बनी.
सिद्धि मां का जन्म 1928 की चैत्र नवरात्रि की दशमी तिथि को अल्मोड़ा के साह परिवार में हुआ था. उनका नाम हरिप्रिया रखा गया. लेकिन पिता उन्हें प्यार से सिद्धि नाम से पुकारते थे. 1944 में 16 वर्ष की आयु में सिद्धि का विवाह नैनीताल के प्रसिद्ध वकील तुलाराम साह के साथ सम्पन्न हुआ.
यह परिवार भी नीम करोली बाबा का भक्त था और बाबा यहां समय-समय पर सत्संग के लिए पधारा करते थे. समय बीतने के साथ सिद्धि मां और उनका पूरा परिवार बाबा के साथ भारत के विभिन्न मंदिरों और तीर्थ स्थलों की यात्रा पर जाने लगा. 1962 में तुलाराम जी का देहांत हो गया. इस घटना के बाद नीम करोली बाबा ने जीवंती मां को गीता भवन में सिद्धि मां के साथ ही रहने का आदेश दिया. इसके एक वर्ष के बाद सिद्धि मां अपने गृहस्थ जीवन को सदा के लिए त्यागकर जीवंती मां के साथ कैंची आश्रम आ गईं |
कैंची गांव का धाम बनने की कथा:--
पुस्तक में कैंची गांव का कैंची धाम बनने का बड़ा सुंदर वर्णन है. पुस्तक में लिखा है- साठ के दशक के प्रारंभ की बात है. सिद्धि मां बाबा के साथ शीतलाखेत जा रही थीं. रानीखेत पहुंचने पर टेलीफोन से समाचार मिला कि सिद्धि मां के परिवार में किसी निकट संबंधी का देहांत हो गया है. यह सुनकर महाराज ने सिद्धि मां को नैनीताल वापस लौट जाने का आदेश दिया. वापस लौटते हुए रास्ते में नदी के किनारे एक घने जंगल के पास गाड़ी रुकवाकर महाराज स्वयं उतर गए. सिद्धि मां ने महाराज का हाथ पकड़कर उन्हें नदी पार कराई. नदी के पास जंगल में एक पेड़ के नीचे एक बड़ी पाषाण शिला थी. महाराज उस पर बैठ गए और सिद्धि मां से कहा कि उनके लौटने पर वह उन्हें यहीं मिलेंगे. वहां से वापस आते हुए सिद्धि मां ने एक स्थानीय निवासी से उस जगह का नाम पूछा तो उसने उत्तर दिया- कैंची. यहीं सिद्धि मां का कैंची से पहला परिचय हुआ जो बाद में उनके जीवन की कर्मभूमि बना. जिस चट्टान पर महाराजजी उस दिन बैठे थे उसे कैंची धाम में अब महाराजजी की शिला के नाम से जाना जाता है.
नीम करोली बाबा के बुलेटप्रूफ कंबल की कहानी (Neem Karoli Baba Story in Hindi):--
नीम करोली बाबा हमेशा ही कंबल ओढ़ा करते थे. रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने अपनी किताब ‘मिरेकल ऑफ लव’ पर बुलेटप्रूफ कंबल से जुड़ी घटना का जिक्र किया है. रिचर्ड एलपर्ट ने बताया कि, बाबा के कई भक्तों में एक बुजुर्ग दंपति भी थे, जोकि फतेहगढ़ में रहते थे. बाबा के चमत्कारी कंबल की यह घटना 1943 से जुड़ी है |
एक दिन बाबा (Neem Karoli Baba) अचानक बुजुर्ग दंपति के घर पर पहुंच गए. इसके बाद बाबा ने कहा कि वह रात में यहीं रुकेंगे. बाबा की बात सुनकर बुजुर्ग दंपति भक्त को बहुत खुशी हुई. लेकिन बुजुर्ग दंपति गरीब थे और वे सोचने लगे कि अगर बाबा रुके तो सत्कार और सेवा के लिए उनके पास कुछ नहीं है. दंपति के पास उस समय जो कुछ भी पर्याप्त था, उन्होंने उस समय बाबा को दिया और उनका सत्कार किया. भोजन के बाद उन्होंने बाबा को सोने के लिए एक चारपाई और ओढ़ने के लिए कंबल दी, जिसे ओढ़कर बाबा सो गए |
इसके बाद बुजुर्ग दंपत्ति भी बाबा के चारपाई के पास ही सो गए. बाबा कंबल ओढ़कर सो रहे थे और ऐसे कराह रहे थे जैसे उन्हें कोई मार रहा है. दंपति सोचने लगे कि बाबा को आखिर क्या हो गया. जैसे-तैसे रात बीती और सुबह हो गई. बाबा ने सुबह चादर लपेटकर बजुर्ग दंपति को दे दी और कहा कि इसे गंगा में प्रवाहित कर देना. लेकिन इसे खोलकर नहीं देखना वरना मुसीबत में फंस सकते हो. बाबा ने यह भी कहा कि, आप चिंता न करें आपका बेटा महीने भर के भीतर लौट आएगा. दंपति भी बाबा की कही बातों का पालन करते चादर को गंगा में प्रवाहित करने के लिए ले जा रहे थे.
चादर लेकर जाते समय दंपति को ऐसा महसूस किया हुआ कि चादर में कुछ लोहे जैसा सामान है. लेकिन बाबा ने तो खाली चादर दी थी. बाबा ने चादर खोलने को मना किया था. इसलिए दंपति ने बिना उसे खोले वैसे ही नदी में प्रवाहित कर दिया. बाबा के कहेनुसार एक महीने बाद बुजुर्ग दंपति का बेटा भी बर्मा फ्रंट से घर लौट आया. यह दंपति का इकलौता बेटा था, जोकि ब्रिटिश फौज में सैनिक था और दूसरे विश्वयुद्ध के समय बर्मा फ्रंट पर तैनात था. बेटे को घर पर देख बुजुर्ग दंपति की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. लेकिन बेटे ने अपने माता-पिता को ऐसी घटना के बारे में बताया, जिसे सुनकर वो हैरान रह गए.
बेटे ने कहा कि, लगभग महीने भर पहले एक दिन वह दुश्मन फौजों के बीच घिर गया और रातभर गोलीबारी होती रही. इस युद्ध में उसके सारे साथी भी मारे गए लेकिन वह अकेला बच गया. बेटे ने कहा कि मैं कैसे बच गया यह मुझे भी मालूम नहीं. उसने कहा कि उसपर खूब गोलीबारी हुई लेकिन एक भी गोली उसे नहीं लगी.
रातभर वह जापानी दुश्मनों के बीच लड़ता रहा और जीवित बच गया. इसके बाद सुबह ब्रिटिश फौज की और टुकड़ी आई. दरअसल यह वही रात थी, जिस रात नीम करोली बाबा (Neem Karoli Baba) बुजुर्ग दंपति के घर आए और रुके थे. बुजुर्ग दंपति की आंखे भर आई कि उनका बेटा सकुशल घर वापस आ गया. साथ ही दंपति बाबा के चमत्कार को भी समझ गए थे. यही कारण है कि अपनी किताब ‘मिरेकल ऑफ लव’ में रिचर्ड एलपर्ट ने इस कंबल को बुलेटप्रूफ कंबल कहा है. आज भी कैंची धाम स्थित मंदिर (neem karoli baba ashram kainchi dham) में बाबा के भक्त कंबल चढ़ाते हैं. बाबा खुद भी हमेशा कंबल ओढ़ा करते थे|
नीम करौली बाबा के 5 चमत्कार:--
1. एक बार बाबा फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में सफर कर रहे थे। जब टिकट चेकर आया तो बाबा के पास टिकट नहीं था। तब बाबा को अगले स्टेशन 'नीब करोली' में ट्रेन से उतार दिया गया। बाबा थोड़ी दूर पर ही अपना चिपटा धरती में गाड़कर बैठ गए। ऑफिशल्स ने ट्रेन को चलाने का आर्डर दिया और गार्ड ने ट्रेन को हरी झंडी दिखाई, परंतु ट्रेन एक इंच भी अपनी जगह से नहीं हिली। बहुत प्रयास करने के बाद भी जब ट्रेन नहीं चली तो लोकल मजिस्ट्रेट जो बाबा को जानता था उसने ऑफिशल्स को बाबा से माफी मांगने और उन्हें सम्मान पूर्वक अंदर लाने को कहा। ट्रेन में सवार अन्य लोगों ने भी मजिस्ट्रेड का समर्थन किया। ऑफिशल्स ने बाबा से माफी मांगी और उन्हें ससम्मान ट्रेन में बैठाया। बाबा के ट्रेन में बैठते ही ट्रेन चल पड़ी। तभी से बाबा का नाम नीम करोली पड़ गया।
2. एक बार उन्होंने अपने एक विदेशी अनुयायी को ब्लडप्रेशर की दवा का सेवन करते हुए देखा। नीम करौली बाबा ने उससे दवा की शीशी मांगी और उसे खोलकर उसमें रखी दवा की सारी गोलियां खा गए। यह देखकर अनुयायी काफी घबरा गया और जल्द ही एम्बुलेंस बुलाने की तैयारी में लग गया। परंतु घंटों बीत जाने के पश्चात भी बाबा को कुछ नहीं हुआ। वे पहले की तरह ही मुस्करा रहे थे और शांत थे।
3. एक बार एक विदेशी अनुयायी अपने पति को लेकर नीम करौली बाबा के पास पहुंची थीं। उस विदेशी महिला का पति बाबाओं को नहीं मानता था और न ही उसका धर्म में विश्वास था, परंतु पत्नी के कहने पर वह यहां आया था। वह व्यक्ति आश्रम और नीम करौली बाबा को देखकर सोचने लगा कि इन साधारण से व्यक्ति के पीछे मेरी पत्नी पागल है। फिर वह वहां से उठकर चला गया। रात में वह नदी के किनारे खड़ा अपने, पत्नी के और भविष्य के बारे में सोचने लगा। दूसरे दिन सुबह वह पुन: अपने देश जाने से पूर्व औपचारिकतावश पत्नी के कहने पर नीम करौली बाबा के दर्शन करने गया। वहां बाबा ने उसे बुलाकर पूछा कि तुम यहां आकर क्या सोच रहे थे? और तुम नदी के किनारे खड़े हुआ क्या सोच रहे थे? क्या तुम यह सब जानता चाहते हो? तब बाबा ने वह सब बता दिया जो वह सोच रहा था। यह सुनकर उसे बाबा पर विश्वास हो गया।
4. रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने 1979 में नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर 'मिरेकल ऑफ़ लव' नामक एक किताब लिखी इसी में 'बुलेटप्रूफ कंबल' नाम से एक घटना का जिक्र है। बाबा हमेशा कंबल ही ओड़ा करते थे। आज भी लोग जब उनके मंदिर जाते हैं तो उन्हें कंबल भेंट करते हैं। इसी कंबल की एक कहानी है। बाबा के कई भक्त थे। उनमें से ही एक बुजुर्ग दंपत्ति थे जो फतेहगढ़ में रहते थे। यह घटना 1943 की है। एक दिन अचानक बाबा उनके घर पहुंच गए और कहने लगे वे रात में यहीं रुकेंगे। दोनों दंपत्ति को अपार खुशी तो हुई, लेकिन उन्हें इस बात का दुख भी था कि घर में महाराज की सेवा करने के लिए कुछ भी नहीं था। हालांकि जो भी था उन्हों बाबा के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। बाबा वह खाकर एक चारपाई पर लेट गए और कंबल ओढ़कर सो गए।
5. जूलिया रॉबर्ट ने बाबा को कभी नहीं देखा था परंतु उनके सपने में बाबा अक्सर आ जाते थे। एक दिन उन्होंने उनका चित्र कहीं पर देखा और वे तभी से उनकी भक्त बन गई थी। जूलिया रॉबर्ट ने उनके चित्र देखकर और अमेरिका में निवास कर रहे उनके अनुयायियों से उनके किस्से सुनकर हिन्दू धर्म को अंगीकार कर लिया।
नीम करौली बाबा और स्टीव जॉब्स की कहानी:--
सन् 1974 में, स्टीव जॉब्स ने एप्पल शुरू करने से पहले आत्मिक शांति और गहराई की खोज में भारत की यात्रा की। उस समय वे मात्र 19 वर्ष के थे। जॉब्स उस वक्त ज़ेन बुद्धिज़्म और ध्यान के प्रभाव में थे, और उन्होंने सुना था कि भारत में एक संत हैं – नीम करौली बाबा – जिनके पास अलौकिक ज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति है।
भारत यात्रा और केँचीन धाम की ओर:--
स्टीव जॉब्स अपने मित्र डैन कोटल्के के साथ भारत आए थे। उनका उद्देश्य नीम करौली बाबा से मिलना और उनके दर्शन करना था। वे उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले में स्थित केँचीन धाम आश्रम पहुँचे।
लेकिन दुर्भाग्यवश, जब वे वहाँ पहुँचे, नीम करौली बाबा का कुछ ही समय पहले देहांत हो चुका था (1973 में)। यह जानकर स्टीव जॉब्स को गहरा दुःख हुआ, लेकिन वे आश्रम में कुछ समय तक रुके और वहां की शांति और ऊर्जा से अत्यंत प्रभावित हुए।
बाबा की ऊर्जा का प्रभाव
बाबा की ऊर्जा का प्रभाव:--
हालाँकि स्टीव जॉब्स को नीम करौली बाबा से प्रत्यक्ष रूप से मिलने का अवसर नहीं मिला, लेकिन बाबा की ऊर्जा और उपस्थिति ने उन्हें गहराई से छुआ। जॉब्स ने आश्रम में ध्यान किया, और बाद में कहा कि भारत की उस यात्रा ने उनकी सोच और जीवन को पूरी तरह बदल दिया।
फेसबुक के मार्क ज़ुकरबर्ग से भी संबंध:--
बाद में, जब फेसबुक के संस्थापक मार्क ज़ुकरबर्ग किसी व्यक्तिगत कठिनाई से जूझ रहे थे, स्टीव जॉब्स ने उन्हें सुझाव दिया कि वे भारत जाकर नीम करौली बाबा के आश्रम (केँचीन धाम) जाएं।
मार्क ने भी वहाँ कुछ दिन बिताए और आश्रम की शांत ऊर्जा से आत्मिक शांति पाई।
नीम करौली बाबा से जुड़े रोचक तथ्य:--
- बाबा का असली नाम "लक्ष्मण दास शर्मा" था।
- उनका जन्म उत्तर प्रदेश के अकबरपुर गाँव में हुआ था।
- वे एक बाल ब्रह्मचारी थे और युवावस्था में ही सन्यास ले लिया था।
- "नीम करौली बाबा" नाम उन्हें एक गाँव के नाम से मिला जहाँ उन्होंने ध्यान साधना की थी।
- उन्होंने जीवन भर हजारों चमत्कार किए, जैसे बिना देखे किसी की बीमारी या भविष्य बता देना।
- बाबा हनुमान जी के परम भक्त थे। उनके हर आश्रम में हनुमान जी का भव्य मंदिर होता है।
- उन्होंने भारत में लगभग 108 मंदिरों की स्थापना की।
- बाबा ने कभी कोई किताब नहीं लिखी, लेकिन उनके उपदेशों पर आधारित कई किताबें उनके शिष्यों ने लिखी हैं।
- नीम करौली बाबा से मिलने स्टीव जॉब्स भारत आए थे लेकिन उन्हें बाबा के दर्शन नहीं हो सके।
- फेसबुक के संस्थापक मार्क ज़ुकरबर्ग भी बाबा के आश्रम (केँचीन धाम) आए थे।
- बाबा के सबसे प्रसिद्ध विदेशी शिष्य थे रामदास (Dr. Richard Alpert) और कृष्ण दास।
- बाबा बिना ट्रेन टिकट यात्रा कर रहे थे और जब टिकट चेकर ने उन्हें उतारा, उसी स्टेशन पर ट्रेन बंद हो गई — बाद में रेलवे अफसरों ने बाबा से माफी मांगकर उन्हें ट्रेन में चढ़ाया।
- बाबा कहते थे: "सब ईश्वर के हाथ में है, बस प्रेम और सेवा करो।"
- बाबा कभी-कभी भक्तों की बात पूरी होने से पहले ही उनका उत्तर दे देते थे।
- उन्होंने कभी धन, प्रसिद्धि या प्रचार में रुचि नहीं ली।
- उनकी मृत्यु के बाद भी लाखों लोग उन्हें वर्तमान में जीवित मानते हैं — और कहते हैं कि वे अब भी अपने भक्तों की सहायता करते हैं।