ऋषि पाणिनि

ऋषि पाणिनि

ऋषि पाणिनि

(अष्टाध्यायी)

जन्म: शलातुर गांव लाहौर, पाकिस्तान
राष्ट्रीयता: भारतीय
किताबें | रचनाएँ : अष्टाध्यायी, लिङ्गानुशासनम्, जाम्बुवतीवजियम्

पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं। इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, ख़ान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं।

भाषा-संबंधी अनुसंधान एवं भाषा को विज्ञान व अन्य उपयोगी कार्यों हेतु उपयुक्त बनाना भी एक वैज्ञानिक कार्य है और इसे प्राचीन विद्वान् पाणिनि ने संपन्न किया। संस्कृत, जिसका शाब्दिक अर्थ है—संपूर्ण, देवताओं की भाषा मानी जाती है। हमारा पौराणिक साहित्य इसी भाषा में रचा गया है। पाणिनि जिनके जन्म-स्थान व जन्म-तिथि के बारे में केवल अनुमान ही लगाया जाता है, एक संस्कृतविद् थे विभिन्न इतिहासकार उन्हें ईसा पूर्व चौथी, पाँचवीं, छठी या सातवीं शताब्दी का मानते हैं। 

यह अनुमान है कि उनका जन्म सिंधु नदी के किनारे शालातुला नामक स्थान में हुआ था। वे अपने समय के सबसे नवीन विचारों के थे। पाणिनि के अनुसंधान कार्य की झलक उनके प्रमुख ग्रंथ ‘अष्टाध्यायी’ से मिलती है, जिसमें आठ अध्याय हैं और हर अध्याय में पुनः चार अध्याय हैं। उन्होंने धर्मग्रंथों व आम लोगों की भाषा को अलग-अलग किया। संस्कृत व्याकरण को समझाने के लिए औपचारिक नियम व परिभाषाएँ विकसित कीं। उन्होंने संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया सहित 170 मूलभूत तत्त्वों में वर्गीकृत किया। उन्होंने वाक्य संरचनाएँ व अन्य निर्माण इस प्रकार किए, जिस प्रकार आधुनिक गणित की क्रियाएँ संपन्न की जाती हैं। उन्होंने 4,000 सूत्रों की सहायता से गणित का गठन कर डाला। उनके कार्य का तुलनात्मक अध्ययन इस प्रकार किया जा सकता है कि यूनान में दर्शनशास्त्र से गणित का विकास हुआ, जबकि भारत में भाषा के विकास से गणित का विकास हुआ। भारतीय गणित का बीजगणितीय स्वरूप संस्कृत भाषा रचना का ही परिणाम है। उन्होंने अक्षरों का प्रयोग कर अंकों को व्यक्त करना प्रारंभ किया और इस प्रकार आधुनिक अंक प्रणाली का जन्म हुआ। अपने काल में पाणिनि अकेले विद्वान् नहीं थे। उन्होंने अपने समकालीन दस विद्वानों का उल्लेख किया है। इससे उनकी सदाशयता का भी बोध होता है और तत्कालीन भारतीय समाज की ज्ञान-पिपासा का भी अनुमान लगाया जा सकता है। पाणिनि के कार्य से तत्कालीन समाज की भी झलक मिलती है। सिकंदर के आक्रमण से पूर्व ही उत्तर-पश्चिमी भारत पर यूनानी प्रभाव आ गया था। उन्होंने यूनानी ज्ञान का उल्लेख किया था। साथ ही साध्वियों व भिक्षुणियों का भी उल्लेख किया है, जो संभवतः बौद्ध या जैन मत की होंगी। जन्म की ही तरह उनकी मृत्यु का भी मात्र अनुमान ही लगाया जा सकता है।

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