जन्म: | गोंदर मऊ, भोपाल मध्य प्रदेश |
माता: | गोणिका |
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
किताबें | रचनाएँ : | योगशास्त्र |
‘योगशास्त्र’ के जनक पतंजलि के जन्म के बारे में अनुमान है कि उनका जन्म वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य की राजधानी भोपाल से 11 कि.मी. दूर नटसिंह गढ़ रोड पर गोंदर मऊ नामक स्थान पर हुआ था। यह भी माना जाता है कि उनका काल ईसा पूर्व 200 के आस-पास का है, क्योंकि वे शुंग राजाओं के पुरोहित थे। पतंजलि ने ‘योगशास्त्र’ की रचना की थी। ‘योग’ शब्द युज से बना है, जिसका अर्थ है—जोड़ना। इसके द्वारा मनुष्य अपनी अंतःवृत्तियों को अनुशासित करता है। भारतीयों के लिए यह ज्ञान नया नहीं था। यह पहले से ही ऋग्वेद, अथर्ववेद, उपनिषदों में यत्र-तत्र बिखरा पड़ा था। पतंजलि ने इसे एक स्थान पर लाकर दार्शनिक रूप दिया। उन्होंने इसे इतना सशक्त व प्रभावी बनाया कि कालांतर में बौद्ध व जैन धर्मावलंबी भी इसे स्वीकारते रहे। बाद के काल में गोरखनाथ, कबीर, नानक ने भी अपने काव्यों में इसकी प्रशंसा की और अनुयायियों को इसका अनुपालन करने की सलाह दी। विवेकानंद ने विदेशों में इसका प्रचार-प्रसार किया और महेश योगी ने देश-विदेश में लाखों लोगों को इसकी शिक्षा दी।
आजकल स्वामी रामदेव इसे आगे बढ़ा रहे हैं। पतंजलि ने योग क्रियाओं द्वारा शारीरिक संतुलन व आत्मिक अनुशासन बनाए रखने की विधियाँ विकसित कीं। इसमें श्वास साधना प्रमुख है, जो शरीर को पुष्ट व नीरोग बनाती है।
महर्षि पतंजलि ने योग-विज्ञान को चार प्रमुख भागों में विभक्त किया।
ये हैं—ज्ञानयोग, कर्मयोग, राजयोग तथा हठयोग। योग के लिए उन्होंने आठ आधार माने।
ये हैं—
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि।
उन्होंने मन की वृत्तियों पर अंकुश लगाने की प्रेरणा दी तथा बताया कि इससे व्यक्ति का शारीरिक व आध्यात्मिक विकास होगा। योग क्रिया में जड़ व चेतन जुड़ जाते हैं, प्रकृति की शक्तियाँ सहयोग करती हैं। इसके लिए एकाग्रता व शक्ति-संतुलन आवश्यक होता है। पश्चिमी देशों में कराए जानेवाले व्यायाम या पी.टी. योग से बिलकुल अलग हैं। योग विस्तृत है और इसमें शरीर, मन, बुद्धि व आत्मा सभी अनुशासित होते हैं तथा उसके सभी अंगों एवं अणुओं व परमाणुओं का विकास होता है।