पाइथागोरस

पाइथागोरस

पाइथागोरस

(संख्या के जनक)

जन्म: 582 ई॰पू॰ सामोस, यूनान
मृत्यु: 500 ई॰पू॰
पिता: मनेसार्चस
माता: पायथायस

प्रख्यात गणितज्ञ व विद्वान् पाइथागोरस का जन्म अनुमानों के अनुसार, यूनान के सामोस नामक स्थान पर ईसा पूर्व 582 में हुआ था। हालाँकि पायथागोरस अपनी प्रमेय के लिए बच्चे-बच्चे द्वारा जाने जाते हैं, पर उनका योगदान अति व्यापक था और जीवन में उन्होंने तमाम कठिनाइयाँ झेली थीं। उनकी प्रमेय, जिसके अनुसार समकोण त्रिभुज में कर्ण का वर्ग अन्य दोनों भुजाओं के वर्ग के योग के बराबर है, भारत में पहुँची और फिर मिस्र में गई। उन्होंने यह भी बतलाया कि सूर्य ही ब्रह्मांड का केंद्र है, पर उनकी बात मानी नहीं गई। उनके अनुसार, ग्रह गोलाकार पथ पर परिक्रमा करते हैं। वे यह भी मानते थे कि पृथ्वी, तारे, ग्रह, ब्रह्मांड आदि भी गोलाकार हैं। गणित व खगोल विद्या के अतिरिक्त उन्होंने जीव-विज्ञान और शरीर-रचनाशास्त्र में भी काम किया तथा आँख की तंत्रिका, कान की नली जैसे नाजुक अंगों का भी उन्होंने अध्ययन किया। संगीत में गणितीय संरचना ढूँढ़ी और संगीत की विभिन्न ध्वनियों की उत्पत्ति पर भी विचार विनिमय किया। पाइथागोरस के विचार अद्भुत थे और भारतीय विचारों से मिलते-जुलते थे। वे मानते थे कि मनुष्य की आत्मा अमर है और प्राणी उस संसार में नए-नए रूप लेकर आता है। यदि वह पवित्र जीवन बिताएगा, आत्मानुशासन में रहेगा, समाज के प्रति वफादार रहेगा तो लाभ में रहेगा। पाइथागोरस के जीवन के बारे में बहुत कम जानकारियाँ उपलब्ध हैं। पाइथागोरस के अनुयायियों ने लंबे समय तक उनकी शिक्षाओं और परंपराओं को चलाया। इसके बारे में मौखिक इतिहास पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहा। दक्षिणी इटली में पाइथागोरस ने क्रोटन में एक विद्यालय स्थापित किया था। पर उनके जीवन काल में ही उनके विरोधी सशक्त हो गए थे और उनके कारण उन्हें 1500 ईसा पूर्व में भागकर मेरापोंटम में आना पड़ा, जहाँ उनका देहांत हो गया। बाद में भी उनके समर्थकों पर हमले होते रहे। अनुयायियों के दल बँटे भी। पहली शताब्दी आते-आते पाइथागोरस समुदाय में और नवीनता आई और वे पवित्रता, विवेक, वैश्विक सहिष्णुता की बात करने लगे।

पायथागोरस के विचार बहुमुखी थे और उन्हें कई वर्गों में बाँटा जा सकता है—

1. खगोलशास्त्र व संगीत अति गहन विषय हैं और इनकी प्रकृति गणितीय है।

2. आत्मिक शुद्धि के लिए दर्शन का प्रयोग किया जाता है।

3. आत्मा ऊपर जाकर दैव से मिलती है।

पाइथागोरस के अनुयायी अपने पंथ के प्रति पूर्ण निष्ठावान् रहते थे और गोपनीयता भी बरतते थे। उनका यह मानना कि आत्मा शरीर बदलती है, पश्चिम में अनोखी बात रही। पाइथागोरस को पश्चिम में एक दैवी प्रकृति का व्यक्ति माना जाता था। वे अपोलो नामक देव के सहयोगी माने जाते थे और उन्हें पूर्वजन्म की भी स्मृति थी। वे अपने अनुयायियों को अनेक प्रकार के कर्मकांड करने की सलाह देते थे। अनुयायियों को श्वेत वस्त्र धारण करने, यौन जीवन में शुद्धता बरतने, संगीत व मानसिक साधना द्वारा आत्मा को शुद्ध करने, अपने गुरु या स्वामी जैसा बनने, दैव के निकट आने जैसी सलाह दी जाती है। पाइथागोरस के विचार वैज्ञानिक थे। उनके कारण अंकगणित व ज्यामिति में काफी विकास हुआ। उन्होंने संगीत की धुनों में विज्ञान और खगोल में एक सामंजस्य की उपस्थिति सिद्ध कर दी। उन्होंने सम और विषम संख्याओं की धारणा रखी, संख्याओं के वर्ग के अस्तित्व को समझाया। उनके अनुयायी यह बिलकुल नहीं मानते थे कि पृथ्वी स्थिर है और ब्रह्मांड का केंद्र है। उनके अनुसार—पृथ्वी, सूर्य व अन्य तारे एक अदृश्य अग्नि के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। जन्म की ही तरह अनुमानों के अनुसार पाइथागोरस का निधन 500 ईसा पूर्व में हुआ। 

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