(वृद्धत्रय)
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
धर्म : | बौद्ध |
किताबें | रचनाएँ : | अष्टांग संग्रह, अष्टांग हृदय संहिता |
आचार्य आत्रेय, सुश्रुत तथा वाग्भट्ट भारतीय चिकित्सा जगत् के ‘वृद्धत्रय’ के नाम से जाने जाते हैं। इनमें से अंतिम अर्थात् वाग्भट्ट की जन्म-तिथि तो ज्ञात नहीं है, पर यह माना जाता है कि उनका जन्म सिंधु नदी के तटवर्ती किसी जनपद में हुआ था। उनके पिता सिंहगुप्त वैदिक ब्राह्मण थे, पर उनके अध्यापक अवलोकिता बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। इस कारण वाग्भट्ट के जीवन व कृतित्व पर भी बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा था।
वाग्भट्ट ने ‘अष्टांग संग्रह’ तथा ‘अष्टांग हृदय संहिता’ नामक दो महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जो कालांतर में आयुर्वेद चिकित्सा-शास्त्र के छात्रों द्वारा पाठ्य पुस्तक के रूप में प्रयोग होते रहे। बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण ‘अष्टांग हृदय संहिता’ के प्रारंभ में उन्होंने बौद्ध प्रार्थना लिखी।
इसके प्रथम भाग में उन्होंने आयुर्वैदिक औषधियों, चिकित्सा विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए विशेष निर्देश, दैनिक व मौसमी निरीक्षण, रोगों की उत्पत्ति, विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों के गुण-दोष, विषैले खाद्य पदार्थों की पहचान व उपचार, व्यक्तिगत स्वच्छता, औषधियाँ, उनके विभाग, उनके लाभों का वर्णन है।
इसके दूसरे भाग में मानव शरीर की रचना, विभिन्न अंगों, मनुष्य की प्रकृति, मनुष्य के विभिन्न रूप व आचरण आदि का वर्णन है।
तीसरे भाग में ज्वर, मिरगी, उलटी, दमा, चर्म-रोग जैसी बीमारियों व उपचार का वर्णन किया है। ग्रंथ के चौथे भाग में उन्होंने वमन व स्वच्छता, पाँचवाँ, जोकि अंतिम भाग है, में बच्चों व उनके रोगों, पागलपन, आँख, कान, नाक, मुख आदि के रोगों व घावों के उपचार, विभिन्न जानवरों व कीड़ों के काटने के उपचार का वर्णन किया गया है। वाग्भट्ट ने अपने पूर्ववर्ती चिकित्सकों के विषय में भी आदरपूर्वक वर्णन किया है। उनके जन्म की तरह मृत्यु के बारे में भी जानकारी नहीं है।
पर यह अवश्य स्पष्ट होता है कि मध्य युग में भी आयुर्विज्ञान उन्नत था और वाग्भट्ट एक महान् चिकित्सक थे।