Shlok Gyan

Total Shlokas:- 657

Shlok-gyan--270

स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा !

सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् !!

भावार्थ :-  

किसी व्यक्ति को आप चाहे कितनी ही सलाह दे दो किन्तु उसका मूल स्वभाव नहीं बदलता ठीक उसी तरह जैसे ठन्डे पानी को उबालने पर तो वह गर्म हो जाता है लेकिन बाद में वह पुनः ठंडा हो जाता है। 

Shlok-gyan--271

द्वौ अम्भसि निवेष्टव्यौ गले बद्ध्वा दृढां शिलाम् !

धनवन्तम् अदातारम् दरिद्रं च अतपस्विनम् !!

भावार्थ :-  

दो प्रकार के लोगो के गले में पत्थर बांधकर उन्हें समुद्र में फेंक देना चाहिए. पहले वे व्यक्ति जो अमीर होते है पर दान नहीं करते और दूसरे वे जो गरीब होते है लेकिन कठिन परिश्रम नहीं करते। 

Shlok-gyan--272

यस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान् !

तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि !!

भावार्थ :- 

वह व्यक्ति जो अलग – अलग जगहों या देशो में घूमता है और विद्वानों की सेवा करता है उसकी बुद्धि उसी तरह से बढती है जैसे तेल का बूंद पानी में गिरने के बाद फ़ैल जाता है। 

Shlok-gyan--273

परो अपि हितवान् बन्धुः बन्धुः अपि अहितः परः !

अहितः देहजः व्याधिः हितम् आरण्यं औषधम् !!

भावार्थ :- 

अगर कोई अपरिचित व्यक्ति आपकी सहायता करे तो उसे अपने परिवार के सदस्य की तरह ही महत्व दे वही अगर आपका परिवार का व्यक्ति आपको नुकसान पहुंचाए तो उसे महत्व देना बंद कर दे. ठीक उसी तरह जैसे शरीर के किसी अंग में चोट लगने पर हमें तकलीफ पहुँचती है वही जंगल की औषधि हमारे लिए फायदेमंद होती है। 

Shlok-gyan--274

अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः !

उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम् !!

भावार्थ :- 

निम्न कोटि के लोगो को सिर्फ धन की इच्छा रहती है, ऐसे लोगो को सम्मान से मतलब नहीं होता. एक मध्यम कोटि का व्यक्ति धन और सम्मान दोनों की इच्छा करता है वही एक उच्च कोटि के व्यक्ति के सम्मान ही मायने रखता है. सम्मान धन से अधिक मूल्यवान है। 

Shlok-gyan--275

कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति !

उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम् !!

भावार्थ :-

जिस तरह नदी पार करने के बाद लोग नाव को भूल जाते है ठीक उसी तरह से लोग अपने काम पूरा होने तक दूसरो की प्रसंशा करते है और काम पूरा हो जाने के बाद दूसरे व्यक्ति को भूल जाते है। 

Shlok-gyan--276

शतेषु जायते शूरः सहस्रेषु च पण्डितः !

वक्ता दशसहस्रेषु दाता भवति वा न वा !!

भावार्थ :-

सौ लोगो में एक शूरवीर होता है, हजार लोगो में एक विद्वान होता है, दस हजार लोगो में एक अच्छा वक्ता होता है वही लाखो में बस एक ही दानी होता है। 

Shlok-gyan--277

विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन !

स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते !!

भावार्थ :-

एक राजा और विद्वान में कभी कोई तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि एक राजा तो केवल अपने राज्य में सम्मान पाता है वही एक विद्वान हर जगह सम्मान पाता है। 

Shlok-gyan--278

यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् !

एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति !!

भावार्थ :-

जिस तरह बिना एक पहिये के रथ नहीं चल सकता ठीक उसी तरह से बिना पुरुषार्थ किये किसी का भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता। 

Shlok-gyan--279

बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः !

श्रुतवानपि मूर्खो सौ यो धर्मविमुखो जनः !!

भावार्थ :-

जो व्यक्ति अपने कर्तव्य से विमुख हो जाता है वह व्यक्ति बलवान होने पर भी असमर्थ, धनवान होने पर भी निर्धन व ज्ञानी होने पर भी मुर्ख होता है।