चत्वारि राज्ञा तु महाबलेना वर्ज्यान्याहु: पण्डितस्तानि विद्यात् ।
अल्पप्रज्ञै: सह मन्त्रं न कुर्यात दीर्घसुत्रै रभसैश्चारणैश्च ॥
भावार्थ :-
अल्प बुद्धि वाले, देरी से कार्य करने वाले, जल्दबाजी करने वाले और चाटुकार लोगों के साथ गुप्त विचार-विमर्श नहीं करना चाहिए। राजा को ऐसे लोगों को पहचानकर उनका परित्याग कर देना चाहिए।
पन्चाग्न्यो मनुष्येण परिचर्या: प्रयत्नत:।
पिता माताग्निरात्मा च गुरुश्च भरतर्षभ ॥
भावार्थ :-
माता, पिता, अग्नि, आत्मा और गुरु इन्हें पंचाग्नी कहा गया है। मनुष्य को इन पाँच प्रकार की अग्नि की सजगता से सेवा-सुश्रुषा करनी चाहिए। इनकी उपेक्षा करके हानि होती है।
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारम नाशनमात्मन: ।
काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।
भावार्थ :-
काम, क्रोध, और लोभ – ये आत्मा का नाश करने वाले नरक के तीन दरवाजे हैं, अतः इन तीनो को त्याग देना चाहिए।
पंचैव पूजयन् लोके यश: प्राप्नोति केवलं ।
देवान् पितॄन् मनुष्यांश्च भिक्षून् अतिथि पंचमान् ॥
भावार्थ :-
देवता, पितर, मनुष्य, भिक्षुक तथा अतिथि-इन पाँचों की सदैव सच्चे मन से पूजा-स्तुति करनी चाहिए । इससे यश और सम्मान प्राप्त होता है ।
मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।
दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति॥
भावार्थ :-
मूर्ख शिष्य को पढ़ाने पर , दुष्ट स्त्री के साथ जीवन बिताने पर तथा दुःखियों- रोगियों के बीच में रहने पर विद्वान व्यक्ति भी दुःखी हो ही जाता है ।
दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः।
ससर्पे गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः॥
भावार्थ :-
दुष्ट पत्नी , शठ मित्र , उत्तर देने वाला सेवक तथा सांप वाले घर में रहना , ये मृत्यु के कारण हैं इसमें सन्देह नहीं करनी चाहिए ।
लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संगतिम् ॥
भावार्थ :-
जिस स्थान पर आजीविका न मिले, लोगों में भय, और लज्जा, उदारता तथा दान देने की प्रवृत्ति न हो, ऐसी पांच जगहों को भी मनुष्य को अपने निवास के लिए नहीं चुनना चाहिए ।
कष्टं च खलु मूर्खत्वं कष्ट च खलु यौवनम्।
कष्टात्कष्टतरं चैव परगृहेनिवासनम् ॥
भावार्थ :-
मूर्खता कष्ट है, यौवन भी कष्ट है, किन्तु दूसरों के घर में रहना कष्टों का भी कष्ट है ।
परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥
भावार्थ :-
पीठ पीछे काम बिगाड़नेवाले था सामने प्रिय बोलने वाले ऐसे मित्र त्याग देना चाहिए ।
चला लक्ष्मीश्चलाः प्राणाश्चले जीवितमन्दिरे।
चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः॥
भावार्थ :-
लक्ष्मी चंचल है, प्राण, जीवन, शरीर सब कुछ चंचल और नाशवान है । संसार में केवल धर्म ही निश्चल है ।