Shlok Gyan

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Shlok-gyan--249

क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।

स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

भावार्थ :-

क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।

Shlok-gyan--250

नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।

न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्।।

भावार्थ :-

योग रहित पुरुष में निश्चय करने की बुद्धि नहीं होती और उसके मन में भावना भी नहीं होती। ऐसे भावना रहित पुरुष को शांति नहीं मिलती और जिसे शांति नहीं, उसे सुख कहां से मिलेगा।

Shlok-gyan--251

सुदुखं शयितः पूर्वं प्राप्येदं सुखमुत्तमम् ।

प्राप्तकालं न जानीते विश्वामित्रो यथा मुनिः ॥

भावार्थ :-

किसी को जब बहुत दिनों तक अत्यधिक दुःख भोगने के बाद महान सुख मिलता है तो उसे विश्वामित्र मुनि की भांति समय का ज्ञान नहीं रहता। सुख का अधिक समय भी थोड़ा ही जान पड़ता है।

Shlok-gyan--252

न सुहृद्यो विपन्नार्था दिनमभ्युपपद्यते ।

स बन्धुर्योअपनीतेषु सहाय्यायोपकल्पते ॥

भावार्थ :-

सुह्रद् वही है जो विपत्तिग्रस्त दीन मित्र का साथ दे और सच्चा बन्धु वही है जो अपने कुमार्गगामी बन्धु की भी सहायता करे ।

Shlok-gyan--253

आढ् यतो वापि दरिद्रो वा दुःखित सुखितोऽपिवा ।

निर्दोषश्च सदोषश्च व्यस्यः परमा गतिः ॥

 भावार्थ :-

चाहे धनी हो या निर्धन, दुःखी हो या सुखी, निर्दोष हो या सदोष – मित्र ही मनुष्य का सबसे बड़ा सहारा होता है ।

Shlok-gyan--254

वसेत्सह सपत्नेन क्रुद्धेनाशुविषेण च ।

न तू मित्रप्रवादेन संवसेच्छत्रु सेविना ॥

भावार्थ :-

शत्रु और क्रुद्ध महाविषधर सर्प के साथ भले ही रहें, पर ऐसे मनुष्य के साथ कभी न रहे जो ऊपर से तो मित्र कहलाता है, लेकिन भीतर-भीतर शत्रु का हितसाधक हो ।

Shlok-gyan--255

लोक-नीति -न चातिप्रणयः कार्यः कर्त्तव्योप्रणयश्च ते ।

उभयं हि महान् दोसस्तस्मादन्तरदृग्भव ॥

भावार्थ :-

मृत्यु-पूर्व बालि ने अपने पुत्र अंगद को यह अन्तिम उपदेश दिया था – तुम किसी से अधिक प्रेम या अधिक वैर न करना, क्योंकि दोनों ही अत्यन्त अनिष्टकारक होते हैं, सदा मध्यम मार्ग का ही अवलम्बन करना ।

Shlok-gyan--256

येऽर्थाः स्त्रीषु समायुक्ताः प्रमत्तपतितेषु च।

ये चानार्ये समासक्ताः सर्वे ते संशयं गताः ॥

भावार्थ :-

आलसी ,अधम ,दुर्जन स्त्री के हाथों सौंपी संपत्ति बरबाद हो जाती है। इनसे सावधान रहना चाहिए।

Shlok-gyan--257

अश्रुतश्च समुत्रद्धो दरिद्रश्य महामनाः।

अर्थांश्चाकर्मणा प्रेप्सुर्मूढ इत्युच्यते बुधैः ॥

भावार्थ :-

बिना पढ़े ही स्वयं को ज्ञानी समझकर अहंकार करने वाला, दरिद्र होकर भी बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाने वाला तथा बैठे-बिठाए धन पाने की कामना करने वाला व्यक्ति मूर्ख कहलाता है।

Shlok-gyan--258

एको धर्म: परम श्रेय: क्षमैका शान्तिरुक्तमा।

विद्वैका परमा तृप्तिरहिंसैका सुखावहा ॥

भावार्थ :-

केवल धर्ममार्ग ही परम कल्याणकारी है, केवल क्षमा ही शांति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है, केवल ज्ञान ही परम संतोषकारी है तथा केवल अहिंसा ही सुख प्रदान करने वाली है।