Shlok Gyan

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Shlok-gyan--314

सत्यमेव व्रतं यस्य दया दीनेषु सर्वदा ।

कामक्रोधौ वशे यस्य स साधुः – कथ्यते बुधैः ॥

भावार्थ :-

'केवल सत्य' ऐसा जिसका व्रत है, जो सदा दीन की सेवा करता है, काम-क्रोध जिसके वश में है, उसी को ज्ञानी लोग 'साधु' कहते हैं ।

Shlok-gyan--3141

सत्यमेव जयते नानृतम् सत्येन पन्था विततो देवयानः ।

येनाक्रमत् मनुष्यो ह्यात्मकामो यत्र तत् सत्यस्य परं निधानं ॥

भावार्थ :-

जय सत्य का होता है, असत्य का नहीं । दैवी मार्ग सत्य से फैला हुआ है । जिस मार्ग पे जाने से मनुष्य आत्मकाम बनता है, वही सत्य का परम् धाम है ।

Shlok-gyan--315

सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् ।

नासत्यं च प्रियं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः ॥

भावार्थ :-

सत्य और प्रिय बोलना चाहिए; पर अप्रिय सत्य नहीं बोलना और प्रिय असत्य भी नहीं बोलना यह सनातन धर्म है ।

Shlok-gyan--316

नानृतात्पातकं किञ्चित् न सत्यात् सुकृतं परम् ।

विवेकात् न परो बन्धुः इति वेदविदो विदुः ॥

भावार्थ :-

वेदों के जानकार कहते हैं कि अनृत (असत्य) के अलावा और कोई पातक नहीं; सत्य के अलावा अन्य कोई सुकृत नहीं और विवेक के अलावा अन्य कोई भाई नहीं ।

Shlok-gyan--317

रविश्चन्द्रो घना वृक्षा नदी गावश्च सज्जनाः ।

एते परोपकाराय युगे दैवेन निर्मिता ॥

भावार्थ :-

सूर्य, चन्द्र, बादल, नदी, गाय और सज्जन - ये हरेक युग में ब्रह्मा ने परोपकार के लिए निर्माण किये हैं ।

Shlok-gyan--318

परोपकारशून्यस्य धिक् मनुष्यस्य जीवितम् ।

जीवन्तु पशवो येषां चर्माप्युपकरिष्यति ॥

भावार्थ :-

परोपकार रहित मानव के जीवन को धिक्कार है । वे पशु धन्य है, मरने के बाद जिनका चमडा भी उपयोग में आता है ।

Shlok-gyan--319

आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन् को न जीवति मानवः ।

परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति ॥

भावार्थ :-

इस जीवलोक में स्वयं के लिए कौन नहीं जीता ? परंतु, जो परोपकार के लिए जीता है, वही सच्चा जीना है ।

Shlok-gyan--320

परोपकृति कैवल्ये तोलयित्वा जनार्दनः ।

गुर्वीमुपकृतिं मत्वा ह्यवतारान् दशाग्रहीत् ॥

भावार्थ :-

विष्णु भगवान ने परोपकार और मोक्षपद दोनों को तोलकर देखे, तो उपकार का पल्लु ज्यादा झुका हुआ दिखा; इसलिए परोपकारार्थ उन्हों ने दस अवतार लिये ।

Shlok-gyan--321

श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ग्रन्थकोटिभिः ।

परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥

भावार्थ :-

जो करोडो ग्रंथों में कहा है, वह मैं आधे श्लोक में कहता हूँ; परोपकार पुण्यकारक है, और दूसरे को पीडा देना पापकारक है ।

Shlok-gyan--322

भवन्ति नम्रस्तरवः फलोद्रमैः नवाम्बुभिर्दूरविलम्बिनो घनाः ।

अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः स्वभाव एवैष परोपकारिणाम् ॥

भावार्थ :-

वृक्षों पर फल आने से वे झुकते हैं (नम्र बनते हैं); पानी में भरे बादल आकाश में नीचे आते हैं; अच्छे लोग समृद्धि से गर्विष्ठ नहीं बनते, परोपकारियों का यह स्वभाव हि होता है ।