Shlok Gyan

Total Shlokas:- 657

Shlok-gyan--335

नाङ्गुल्या कारयेत् किञ्चिद् दक्षिणेन तु सादरम् ।

समस्तेनैव हस्तेन मार्गमप्येवमादिशेत् ॥

भावार्थ :-

रास्ते के बारे में पूछने वाले पथिक को उंगली के इशारे से संकेत नहीं देना चाहिए, बल्कि समूचे दाहिने हाथ को धीरे-से समुचित दिशा की ओर उठाते हुए आदर के साथ रास्ता दिखाना चाहिए ।

Shlok-gyan--336

अथ चेद् बुद्धिजं कृत्वा ब्रूयुस्ते तदबुद्धिजम् ।

पापान् स्वल्पेऽपि तान् हन्यादपराधे तथानृजून् ॥

भावार्थ :-

अब यदि बुद्धि प्रयोग से यानी सोच-समझकर अपराध करने के बाद वे तुमसे कहें कि अनजाने में ऐसा हो गया है, तो ऐसे मृथ्याचारियों को थोड़े-से अपराध के लिए भी दण्डित किया जाना चाहिए ।

Shlok-gyan--338

व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं।

आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम् ॥

भावार्थ :-

व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं ।

Shlok-gyan--339

व्यायामं कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम् ।

विदग्धमविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते ॥

भावार्थ :-

व्यायाम करने वाला मनुष्य गरिष्ठ, जला हुआ अथवा कच्चा किसी प्रकार का भी खराब भोजन क्यों न हो, चाहे उसकी प्रकृति के भी विरुद्ध हो, भलीभांति पचा जाता है और कुछ भी हानि नहीं पहुंचाता ।

Shlok-gyan--340

शरीरोपचयः कान्तिर्गात्राणां सुविभक्तता ।

दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मृजा ॥

भावार्थ :-

व्यायाम से शरीर बढ़ता है । शरीर की कान्ति वा सुन्दरता बढ़ती है । शरीर के सब अंग सुड़ौल होते हैं । पाचनशक्ति बढ़ती है । आलस्य दूर भागता है । शरीर दृढ़ और हल्का होकर स्फूर्ति आती है । तीनों दोषों की (मृजा) शुद्धि होती है।

Shlok-gyan--341

न चैनं सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति ।

स्थिरीभवति मांसं च व्यायामाभिरतस्य च ॥

भावार्थ :-

व्यायामी मनुष्य पर बुढ़ापा सहसा आक्रमण नहीं करता, व्यायामी पुरुष का शरीर और हाड़ मांस सब स्थिर होते हैं ।

Shlok-gyan--342

श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादीनां सहिष्णुता ।

आरोग्यं चापि परमं व्यायामदुपजायते ॥

भावार्थ :-

श्रम थकावट ग्लानि (दुःख) प्यास शीत (जाड़ा) उष्णता (गर्मी) आदि सहने की शक्ति व्यायाम से ही आती है और परम आरोग्य अर्थात् स्वास्थ्य की प्राप्ति भी व्यायाम से ही होती है ।

Shlok-gyan--343

न चास्ति सदृशं तेन किंचित्स्थौल्यापकर्षणम् ।

न च व्यायामिनं मर्त्यमर्दयन्त्यरयो भयात् ॥

भावार्थ :-

अधिक स्थूलता को दूर करने के लिए व्यायाम से बढ़कर कोई और औषधि नहीं है, व्यायामी मनुष्य से उसके शत्रु सर्वदा डरते हैं और उसे दुःख नहीं देते ।

Shlok-gyan--344

समदोषः समाग्निश्च समधातुमलक्रियः ।

प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते ॥

भावार्थ :-

जिस मनुष्य के दोष वात, पित्त और कफ, अग्नि (जठराग्नि), रसादि सात धातु, सम अवस्था में तथा स्थिर रहते हैं, मल मूत्रादि की क्रिया ठीक होती है और शरीर की सब क्रियायें समान और उचित हैं, और जिसके मन इन्द्रिय और आत्मा प्रसन्न रहें वह मनुष्य स्वस्थ है ।

Shlok-gyan--345

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

भावार्थ :-

ॐ के उच्चारण में ही तीनो शक्तियों का समावेश हैं । हे माँ भगवती जिसने सभी शक्तियों का सर्जन किया ऐसी प्राणदायिनी, दुःख हरणी, सुख करणी, समस्त रोगों का निवारण करने वाली, प्रज्ञावान माँ भगवती जो सभी देवों की देवी हैं उसकी में उपासना करती हूँ जिसने मुझे संरक्षण दिया और सभी प्रकार के ज्ञान से समृद्ध बनाया ।