Shlok Gyan

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Shlok-gyan--622

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।

तथा लिखितवान्‌ प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥

भावार्थ:-

भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस राम रक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया |

Shlok-gyan--623

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌ ।

अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्‌ स न: प्रभु: ॥

भावार्थ:-

जो कल्प वृक्षों के बाग के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करनेवाले हैं  और जो तीनो लोकों में सुंदर हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं ।

Shlok-gyan--624

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।

पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥

भावार्थ:-

जो युवा,सुन्दर, सुकुमार, महाबली और कमल के (पुण्डरीक)  समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की समान वस्त्र एवं काले मृगका चर्म धारण करते हैं ।

Shlok-gyan--625

फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।

पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥

भावार्थ:-

जो फल और कंदका आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें ।

Shlok-gyan--626

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ ।

रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥

भावार्थ:-

ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलोंका समूल नाश करने में समर्थ हमारा रक्षण करें ।

Shlok-gyan--627

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्‌ग सङि‌गनौ ।

रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥

भावार्थ:-

संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणो से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे  चलें ।

Shlok-gyan--628

संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा ।

गच्छन्‌मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥

भावार्थ:-

हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें ।

Shlok-gyan--629

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।

काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥

भावार्थ:-

भगवान का कथन है कि श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम ||

Shlok-gyan--630

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।

जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥

भावार्थ:-

वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरुषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का ।।

Shlok-gyan--631

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: ।

अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥

भावार्थ:-

नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं ।