प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं
गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम् ।
खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥
भावार्थ:- संसार के भय को नष्ट करने वाले, देवेश, गंगाधर, वृषभवाहन, पार्वतीपति, हाथ में खटवांग एवं त्रिशूल लिये और संसार रूपी रोग का नाश करने के लिए अद्वितीय औषध-स्वरूप, अभय एवं वरद मुद्रा युक्त हस्तवाले भगवान् शिव का मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ।
प्रातः स्मरामि शरदिन्दुकरोज्ज्वलाभां,
सद्रत्नवन्मकरकुण्डलहारभूषाम्।
दिव्या युधोर्जित सुनील सहस्त्रहस्तां,
रक्तोत्पलाभचरणां भवतीं परेशाम्॥
भावार्थ:- शरद कालीन चन्द्रमा के समान उज्जवल आभा वाली, उत्तम रत्नों से जड़ित मकर कुण्डलों तथा हारों से सुशोभित, दिव्यायुधों से दीप्त सुन्दर नीले हजारों हाथों वाली, लाल कमल की आभायुक्त चरणों वाली भगवती दुर्गा देवी का मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ।
प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं,
रूपं हि मण्डलमृचोऽथ तनुर्यजूंषि।
सामानि यस्य किरणाः प्रभवादिहेतुं,
ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिमत्यरूपम्॥
भावार्थ:- सूर्य का वह प्रशस्त रूप जिसका मण्डल ऋग्वेद, कलेवर यजुर्वेद तथा किरणें सामवेद हैं। जो सृष्टि आदि के कारण हैं, ब्रह्मा और शिव के स्वरूप हैं तथा जिनका रूप अचिन्त्य और अलक्ष्य है, प्रातः काल मैं उनका स्मरण करता हूँ।
भृगुर्वसिष्ठः क्रतुरंगिराश्च
मनु: पुलस्त्य: पुलहश्च गौतम: ।
रैभ्यो मरीचिश्च्यवनश्च दक्षः
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥
भावार्थ:- भृगु, वसिष्ठ, क्रतु, अंगिरा, मनु, पुलस्त्य, पुलह, गौतम, रैभ्य, मरीचि, च्यवन और दक्ष- ये समस्त मुनिगण मेरे प्रातःकाल को मंगलमय करें ।
सनत्कुमार: सनक: सनन्दन: सनातनोऽप्यासुरिपिंगलौ च ।
सप्त स्वरा: सप्त रसातलानि कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥
भावार्थ:- सनत्कुमार, सनक, सनन्दन, सनातन (ब्रह्माजी के मानसपुत्र बाल ऋषि), आसुरि (सांख्य-दर्शन के प्रर्वतक कपिल मुनि के शिष्य) एवं पिंगल (छन्दों का ज्ञान कराने वाले मुनि)-ये ऋषिगण; साथ ही नाद-ब्रह्म के विवर्तरूप षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद- ये सप्त स्वर; और हमारी पृथ्वी से नीचे स्थित सातों रसातल (अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, और पाताल) मेरे प्रातःकाल को मंगलमय करें।
पृथ्वी सगन्धा सरसास्तथाप:
स्पर्शी च वायुर्ज्वलितं च तेज:।
नभ: सशब्दं महता सहैव
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥
भावार्थ:- गन्धयुक्त पृथ्वी, रसयुक्त जल, स्पर्शयुक्त वायु, प्रज्वलित तेज, शब्दसहित आकाश एवम् महत्तत्व- ये सभी मेरे प्रातःकाल को मंगलमय करें ।
इत्थं प्रभाते परमं पवित्रं पठेत् स्मरेद्वा शृणुयाच्च भक्त्या ।
दुःस्वप्ननाशस्त्विह सुप्रभातं भवेच्च नित्यं भगवत्प्रसादात् ॥
भावार्थ:- इस प्रकार उपर्युक्त इन प्रातः स्मरणीय परम पवित्र श्लोकों का जो मनुष्य भक्ति पूर्वक प्रातःकाल पाठ करता है, स्मरण करता है अथवा सुनता है, भगवद्दया से उसके दुःस्वप्न का नाश हो जाता है और उसका प्रभात मंगलमय होता है।
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥
भावार्थ:- श्री रघुनाथ जी का चरित्र सौ कोटि विस्तार वाला हैं । उसका एक-एक अक्षर महापात कोंको नष्ट करने वाला है ।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥
भावार्थ:-
नीले कमल के श्याम वर्णवाले, कमलनेत्र वाले , जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्रीराम का स्मरण कर
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥
भावार्थ:- जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण कर