अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं।।
भावार्थ :-
बड़ों का अभिवादन करने वाले मनुष्य की और नित्य वृद्धों की सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल ये हमेशा बढ़ती रहती है।
यावद्बध्दो मरुद देहे यावच्चित्तं निराकुलम्।
यावद्द्रॄष्टिभ्रुवोर्मध्ये तावत्कालभयं कुत:।।
भावार्थ :-
जब तक शरीर में सांस रोक दी जाती है तब तक मन अबाधित रहता है और जब तक ध्यान दोनों भौहों के बीच लगा है तब तक मृत्यु से कोई भय नहीं है।
निश्चित्वा यः प्रक्रमते नान्तर्वसति कर्मणः।
अवन्ध्यकालो वश्यात्मा स वै पण्डित उच्यते।।
भावार्थ :-
जिसके प्रयास एक दृढ़ प्रतिबध्दता से शुरू होते हैं जो कार्य पूर्ण होने तक ज्यादा आराम नहीं करते हैं जो समय बर्बाद नहीं करते हैं और जो अपने विचारों पर नियन्त्रण रखते हैं वह बुद्धिमान है।
अपि मेरुसमं प्राज्ञमपि शुरमपि स्थिरम्।
तृणीकरोति तृष्णैका निमेषेण नरोत्तमम्।।
भावार्थ :-
भले ही कोई व्यक्ति मेरु पर्वत की तरह स्थिर, चतुर, बहादुर दिमाग का हो लालच उसे पल भर में घास की तरह खत्म कर सकता है।
ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतं गमय।।
भावार्थ :-
हे प्रभु, हम सभी को असत्य से दूर सत्य की ओर ले चलो घोर अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।
उद्यमः साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः।
षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र दैवं सहायकृत्।।
भावार्थ :-
जो जोखिम लेता हो (उधम), साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम जैसे ये 6 गुण जिस व्यक्ति के पास होते हैं, उसकी मदद भगवान भी करता है।
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥
भावार्थ:-
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है तथा
जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे।
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥
भावार्थ:-
मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ विराजमान है
तथा जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।
आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।।
भावार्थ-
श्रीराम वनवास गए, वहां उन्होने स्वर्ण मृग का वध किया। रावण ने सीताजी का हरण कर लिया, जटायु रावण के हाथों मारा गया।
श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता हुई। श्रीराम ने बालि का वध किया। समुद्र पार किया। लंका का दहन किया। इसके बाद रावण और कुंभकर्ण का वध किया।
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।
भावार्थ:-
हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और हम सबके स्वामी शिवजी, आपको मैं नमस्कार करता हूं।
निज स्वरूप में स्थित, चेतन, इच्छा रहित, भेद रहित, आकाश रूप शिवजी मैं आपको हमेशा भजता हूँ।