महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे ।।
भावार्थ:-
भगवान शिव शंकर जो पर्वतराज हिमालय के नजदीक पवित्र मन्दाकिनी के तट पर स्थित केदारखण्ड नामक श्रृंग में निवास करते हैं और हमेशा ऋषि मुनियों द्वारा पूजे जाते हैं। जिनकी यक्ष-किन्नर, नाग व देवता-असुर आदि भी हमेशा पूजा करते हैं उन अद्वितीय कल्याणकारी केदारनाथ नामक शिव शंकर की मैं स्तुति करता हूँ।
पद्मावदातमणिकुण्डलगोवृषाय कृष्णागरुप्रचुरचन्दनचर्चिताय।
भस्मानुषक्तविकचोत्पलमल्लिकाय नीलाब्जकण्ठसदृशाय नम: शिवाय।।
भावार्थ:-
जो स्वच्छ पद्मरागमणि के कुण्डलों से किरणों की वर्षा करने वाले हैं, चन्दन तथा अगरू से चर्चित तथा भस्म, जूही से सुशोभित और प्रफुल्लित कमल ऐसे नीलकमलसदृश कण्ठवाले शिव शंकर को प्रणाम !
यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि।।
भावार्थ:-
शाकिनी और डाकिनी समुदाय में प्रेतों के द्वारा सदैव सेवित होने वाले और भक्तहितकारी भीमशंकर नाम से प्रख्यात भगवान शंकर को मेरा नमस्कार !
नमस्ते भगवान रुद्र भास्करामित तेजसे।
नमो भवाय देवाय रसायाम्बुमयात्मने।।
भावार्थ:-
हे मेरे भगवान! हे मेरे रूद्र, अनंत सूर्यो से भी तेज आपका तेज है। रसरूप, जलमय विग्रहवाले हे! भवदेव मेरा आपको प्रणाम है !
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकालकालं कृपालं। गुणागारसंसारपारं नतोऽहं।।
भावार्थ:-
तुरीय वाणी, ओंकार के मूल, ज्ञान, निराकार और इन्द्रियों से परे महाकाल के भी काल, गुणों के धाम, कैलाशपति, कृपालु, विकराल संसार से परे परमेश्वर को मेरा प्रणाम !
दृशं विदधमि क करोम्यनुतिशमि कथं भयाकुल:।
नु तिश्सि रक्ष रक्ष मामयि शम्भो शरणागतोस्मि ते।।
भावार्थ:--
हे शम्भो, मैं अब दृष्टि लगाऊं, क्रिध्र देखूं, भयभीत में कैसे यहां रहूँ? मेरे प्रभु आप कहा पर है? आप मेरी रक्षा करों मैं आपकी शरण में आया हूँ !
आदित्य सोम वरुणानिलसेविताय यज्ञाग्निहोत्रवरधूमनिकेतनाय।
ऋक्सामवेदमुनिभि: स्तुतिसंयुताय गोपाय गोपनमिताय नम: शिवाय।।
भावार्थ:--
जो चन्द्र, वरुण, सूर्य और अनिल द्वारा सेवित है और जिनका निवास अग्निहोत्र धूम एवं यज्ञ में है।
वेद, मुनिजन तथा ऋक-सामादि जिसकी स्तुति प्रस्तुत करते हैं। उन नन्दीश्वरपूजित गौओं का पालन करने वाले भगवान शिव को मेरा प्रणाम !
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।
भावार्थ:--
जो भगवान शिव शंकर संतजनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए अवन्तिकापुरी उज्जैन में अवतार धारण किए हैं
अकाल मृत्यु से बचने के लिए उन देवों के भी देव महाकाल नाम से विख्यात महादेव जी को मैं प्रणाम करता हूँ !
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम: शिवाय।।
भावार्थ:--
जो शिव आकाशगामिनी मन्दाकिनी के पवित्र जल से संयुक्त तथा चन्दन से सुशोभित हैं।
नन्दीश्वर तथा प्रमथनाथ आदि गण विशेषों एवं षट् सम्पत्तियों से ऐश्वर्यशाली हैं,
जो मन्दार–पारिजात आदि अनेक पवित्र पुष्पों द्वारा पूजित हैं। ऐसे उस मकार स्वरूप शिव को मैं प्रणाम करता हूँ।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति।।
भावार्थ:--
जो मनुष्य इस स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, उन पर शम्भु विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं।