जन्म: | 31 दिसंबर, 1514 (ब्रसेल्स, बेल्जियम) |
मृत्यु: | 15 अक्टूबर, 1564 (ग्रीस) |
किताबें | रचनाएँ : | डी हुमेनी कॉर्पोरिस फैब्रिका |
पश्चिम में आधुनिक शरीर रचना-शास्त्र के जनक माने जानेवाले एंड्रियास वैसेलियस का जन्म 31 दिसंबर, 1514 को ब्रसेल्स में हुआ था।
उनके पिता एक दवा निर्माता थे। वैसेलियस की प्रारंभिक शिक्षा ब्रसेल्स में ही हुई। सन् 1530 के प्रारंभ में ही उन्हें लाबेन विश्वविद्यालय में प्रवेश मिला। 1533 में उन्होंने पेरिस से चिकित्सा-शास्त्र में प्रारंभिक पढ़ाई पूरी की और उन्हें जैकोबस सिल्विस तथा जोहान गुइंटर का शिष्य बनने का अवसर मिला। प्रारंभ में सिल्वियस के निर्देशन में वैसेलियस ने अन्य प्राणियों की चीर-फाड़ करके उनकी शरीर-रचना का अनुभव प्राप्त किया। बाद में उन्होंने मानव शरीर की चीर-फाड़ भी की। पर इसी बीच युद्ध प्रारंभ हो गया और वैसेलियस का अनुसंधान बाधित हो गया। वे वापस विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने लगे और सन् 1537 में उन्होंने चिकित्सा-शास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
पादुआ विश्वविद्यालय में वैसेलियस को शरीर रचना-शास्त्र व शल्य चिकित्सा-शास्त्र विभाग में प्रमुख का पद मिला। नियुक्ति के तीन सप्ताह के अंदर उन्होंने पहला सार्वजनिक व्याख्यान दे दिया और तीन माह के अंदर अपने नवीनतम प्रयोगों से तत्कालीन समाज को अचंभित कर दिया। वे अपने हाथों से चीर-फाड़ करके दिखाते थे। वे विभिन्न अंदरूनी अंगों के बारे में बताते व समझाते समय चित्रों और नक्शों का प्रयोग करते थे। वे प्रारंभ में गैलेन (प्राचीन चिकित्सक) के अनुयायी थे। पर शीघ्र ही उन्हें लगा कि गैलेन वास्तविकता से दूर थे। उन्हें तत्कालीन विश्वविद्यालयीय राजनीति से भी दो-चार होना पड़ा था। पर फिर भी उन्होंने अपना अनुसंधान व लेखन जारी रखा। जब उनका कार्य पूर्णता की ओर बढ़ गया तो उन्होंने अपनी विस्तृत रचना के प्रकाशन हेतु अवकाश लिया।
जुलाई 1543 में उनकी रचना प्रकाशन हेतु तैयार हो गई। छुट्टियों के दौरान ही वैसेलियस ने राजकीय सेवा हेतु संपर्क किया। राजा चार्ल्स पंचम से उनकी भेंट हुई और राजा ने उन्हें राजकीय चिकित्सक नियुक्त कर लिया। इसी बीच जब वे वैसेलियस लौटकर आए तो उन्होंने पाया कि विश्वविद्यालय का माहौल उनके खिलाफ हो चला है। संभवतः वैसेलियस राजकीय चिकित्सक के दायित्व से प्रसन्न नहीं थे; पर जब पीसा विश्वविद्यालय ने उन्हें अपने यहाँ नियुक्त करना चाहा तो राजा ने इसकी अनुमति नहीं दी।
इसी बीच शासन में उथल-पुथल हुई और वैसेलियस को नए शासक फिलिप द्वितीय के संरक्षण में काम करना पड़ा। उनका ज्यादा समय स्पेन में बीता, जहाँ का वातावरण उनके प्रतिकूल था। उन्होंने फिर से अपने पादुआ विश्वविद्यालय आना चाहा, पर राजा फिलिप से स्पेन छोड़ने की अनुमति पाना सरल नहीं था।
वैसेलियस ने दूसरा रास्ता निकाला और येरूशलम की तीर्थयात्रा पर जाने की अनुमति माँगी, जो कि सरलता से मिल गई। वे वेनिस आए, जहाँ पर उन्हें आश्वासन मिल गया कि उन्हें विश्वविद्यालय में पद मिल जाएगा। उपर्युक्त उथल-पुथल के बीच भी वैसेलियस अब तक बहुत से महत्त्वपूर्ण कार्य कर चुके थे। सन् 1538 के प्रकाशित उनके कार्य में शरीर में स्थित शिराओं व धमनियों के तंत्र का विस्तृत विवरण था। उनके चित्र एक श्रेष्ठ कलाकार ने तैयार किए थे। इसमें मनुष्य के अस्थि-पंजर के तीनों आयाम दरशाए गए थे। इनमें से दो प्रमुख चित्र आज भी उपलब्ध हैं। दुर्भाग्यवश वैसेलियस के कार्यों की नकल प्रकाशन से पूर्व व बाद में होती रही।
सन् 1543 में वैसेलियस की जो रचना आई, वह इतनी अद्भुत थी कि उसने अब तक सारे कार्यों को पुराना व प्रारंभिक सिद्ध कर दिया । इसका एक पक्ष यह भी था कि शरीर के अंदरूनी अंगों का विवरण देने में अति शुद्धता व स्पष्टता अपनाई गई थी। उपर्युक्त में मानव सिर के विभिन्न आकार एवं मांसपेशियों का सटीक विवरण भी दिया। उन्होंने मस्तिष्क की कार्य-प्रणाली के बारे में समझाने का भी प्रयास किया।
वैसेलियस ने अपनी रचनाओं में मानव शरीर की रचना को शुद्धता व बारीकियों से लगातार प्रस्तुत किया और तत्कालीन विद्वत् समाज चमत्कृत होता रहा। उनकी रचनाओं के नवीन संस्करणों व पुनर्मुद्रण का कार्य उनके जीवन काल में ही होने लगा था। वैसेलियस उथल-पुथल भरे जीवन में बहुत सारे कार्य करना चाहते थे। नए पद को ग्रहण करने से पूर्व वे येरुशलम गए; पर वापस आते समय 15 अक्टूबर, 1564 को यूनान के पास एक द्वीप जोते में उनका निधन हो गया।