ब्लेज़ पास्कल

ब्लेज़ पास्कल

ब्लेज़ पास्कल

(पास्कल)

जन्म: 19-06-1623 (फ्रांस)
मृत्यु: 19-08-1662 (फ्रांस)
राष्ट्रीयता: French
धर्म : कैथोलिक

महान् गणितज्ञ व भौतिकीविद् ब्लेज पास्कल का जन्म फ्रांस में फेरांड के पास क्लेरमांट नामक स्थान पर 19 जून, 1623 को हुआ था।

उनके पिता क्लेरमांट में एक उच्च पद पर थे। पर माता का देहांत तभी हो गया था, जब ब्लेज पास्कल की उम्र मात्र 4 वर्ष की थी। उनकी दो बहनें बाद में नन बनीं। इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि परिवार धार्मिक विचारों से ओत-प्रोत था।

पास्कल परिवार को अनेक बार दर-बदर होना पड़ा। सन् 1631 में जब ब्लेज की उम्र मात्र 8 वर्ष थी, परिवार पेरिस पहुँचा, जहाँ पर उन्हें एक प्रभावशाली व्यक्ति से शत्रुता का सामना करना पड़ता। इसके बाद सन् 1641 में परिवार फिर एक नए स्थान पर पहुँचा, जहाँ पर उन्हें विरोधी धार्मिक समूह के आक्रोश का सामना करना पड़ा। इन सब बातों से ब्लेज पास्कल का बचपन भी प्रभावित हुआ और प्रारंभिक शिक्षा भी उसे परिवार से ही मिल पाई। पर सत्रह-अठारह वर्ष की उम्र तक उसने अपने अद्भुत गणितीय कार्य से सभी को प्रभावित कर दिया था। उसका स्वास्थ्य बचपन से ही नाजुक रहा था। ज्यों-ज्यों स्वास्थ्य ढला त्यों-त्यों मन में धार्मिक विचार बढ़ते चले गए।

पेरिस से आने के बाद सन् 1650 में ब्लेज के पिता का देहांत हो गया। तभी एक बहन नन बनकर चली गई। इतने ऊहापोहों के बीच भी ब्लेज पास्कल की रचनाओं को यदि देखा जाए तो ज्ञात होता है कि उन्होंने गणित व भौतिकी में मौलिक कार्य किया था।

12 वर्ष की उम्र में ब्लेज ने ज्यामिति पर कार्य किया। 16 वर्ष की उम्र तक उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण प्रमेय प्रतिपादित कर डाली। यह एक कठिन कार्य था। पास्कल ने अपनी कोनिक सेक्शन संबंधी प्रमेय के आधार पर 400 प्रस्तुतियाँ तैयार की थीं। जिन-जिन विद्वानों ने उनकी जाँच की, उन्होंने ब्लेज पास्कल की प्रतिभा का लोहा माना। पास्कल ने द्रव स्थैतिकी के सिद्धांत को भी अंतिम रूप दिया। उन्होंने टोरिसैली के प्रयोगों का भी अध्ययन व वर्णन किया। वायुमंडलीय दबाव को दरशाने के लिए उन्होंने अलग प्रकार के प्रयोग किए।

उन्होंने एक बैरोमीट्रिक कॉलम के अंदर दूसरा कॉलम रखा। वे प्रयोगों से आसानी से संतुष्ट नहीं होते थे और एक के बाद एक प्रयोग करते चले जाते थे। उनके विचारों की पुष्टि के लिए 4,000 फीट की ऊँचाई पर पहाड़ पर प्रयोग संपन्न किए गए। पास्कल ने ठोस पदार्थों की यांत्रिकी और द्रव पदार्थों की यांत्रिकी के मध्य संबंध स्पष्ट किया। मात्र 19 वर्ष की उम्र में उन्होंने गणना करनेवाली मशीन तैयार कर डाली। उन्हें इसकी प्रेरणा अपने पिता को देखकर मिली, जो कि टैक्स कलेक्टर थे और सारा दिन गुणा-भाग में लगे रहते थे। 

अपने पिता की सहायता हेतु जो कैलकुलेटर उन्होंने तैयार किया था, उसका नाम पास्कलाइन था; हालाँकि इससे पूर्व सन् 1624 में भी एक व्यक्ति ने कैलकुलेटर तैयार किया था, पर वह एक आग में जल गया था। पास्कल ने उसे बिना देखे-समझे ही नए सिरे से कैलकुलेटर तैयार किया था। पास्कल की डिजाइन की नकल आसान नहीं थी। इसके कुछ आधारभूत सिद्धांत आज भी यांत्रिक कैलकुलेटर के निर्माण में प्रयोग होते हैं। 

पास्कल डिजाइन के 70 कैलकुलेटर तैयार हुए और उनमें से ज्यादातर राजकीय उपहार के रूप में बँटे। इनमें से सात अभी भी उपलब्ध हैं। पास्कल विलक्षण व्यक्ति थे। एक बार उनके दाँत में दर्द हुआ। दर्द की ओर से ध्यान हटाने के लिए उन्होंने एक गणितीय समस्या हाथ में ले ली। उसका ऐसा हल उन्होंने निकाला कि उनका दर्द खुद-ब-खुद उड़न-छू हो गया। वे तमाम गणितीय समस्याएँ लेकर उस पर चिंतन करते थे। इस संबंध में समस्याओं पर पत्राचार किया करते थे। उन्होंने संख्याओं के त्रिकोण तो पहली बार नहीं बनाए थे, पर उनका उपयोग उन्होंने अवश्य पहली बार किया था। पास्कल का त्रिकोण आज भी लोकप्रिय है और इसका उपयोग द्विपद सारणी में होता रहा है।

पास्कल ने गणितीय व भौतिकीय विषयों पर कम लिखा, पर उनके लेखन में जो मौलिकता थी वह बहुत ज्यादा थी। अत्यंत कम परंपरागत शिक्षा पानेवाले ब्लेज पास्कल ने अपने हर तरीके में नयापन सँजोकर रखा था। उन्होंने संभाव्यता की गणना और उसके प्रयोग पर चिंतन किया था। उनकी कार्य करने की शैली नई व रोचक थी। लिखते समय कुछ अक्षर वे अलग तरीके से दरशा देते थे। वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने अपनी कलाई पर घड़ी बाँधी थी। इससे पूर्व लोग जेब में घड़ी डालकर निकलते थे। पास्कल ने एक सुतली से जेब घड़ी को अपनी कलाई में बाँधना प्रारंभ कर दिया। पास्कल ने ही पहले-पहल सिरिंज बनाई थी और उसकी सहायता से द्रव का दबाव स्थापित किया था और हाइड्रोलिक प्रेस तैयार की थी। 

उनके नाम पर पास्कल का नियम कहलाया, जो कि दबाव से संबंधित था। दुर्भाग्यवश पास्कल का देहांत मात्र 39 वर्ष की आयु में हो गया और वे ज्यादा काम नहीं कर पाए। उनके सम्मान में दबाव की इकाई का नाम ‘पास्कल’ रखा गया।

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