जन्म: | जालौर राजस्थान |
पिता: | विष्णुगुप्त |
राष्ट्रीयता: | Indian |
किताबें | रचनाएँ : | ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, खण्डखाद्यक |
शून्य की पहले-पहल व्याख्या करनेवाले गुप्तकाल के महान् गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त का जन्म अनुमानों के अनुसार, पश्चिमी भारत के भिन्नमाल में हुआ था, जोकि आज भीनमाल जिला जालौर राजस्थान में है। उस समय यह गुजरात की राजधानी था। उनके पिता का नाम विष्णुगुप्त तथा दादा का नाम जिष्णुगुप्त था। उनका कार्यक्षेत्र उज्जैन नगरी था, जोकि उस समय शिक्षा व ज्ञान का एक प्रमुख केंद्र था।
ब्रह्मगुप्त से पूर्व भारत में कई सिद्धांत ग्रंथ थे और उनमें से एक था ‘ब्रह्म सिद्धांत’। पर इसकी अनेक बातें पुरानी पड़ गई थीं, जो तत्कालीन नवीन अनुसंधानों से मेल नहीं खाती थी। ब्रह्मगुप्त ने इस सिद्धांत को नवीन रूप देकर एक महान् ग्रंथ की रचना की, जिसका शीर्षक था ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धांत’। ‘स्फुट’ शब्द का अर्थ है—फैलाया हुआ या संशोधित। उनका दूसरा ग्रंथ था ‘खंड खाद्यक’। ब्रह्मगुप्त की प्रतिभा, विद्वत्ता व अनुसंधान की झलक उनके ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धांत’ से मिलती है, जिसमें गणित व ज्योतिष की विभिन्न विधाओं पर विस्तार से चर्चा की गई है।
इसमें 25 अध्याय हैं तथा 1,008 श्लोक हैं। इसके बारहवें अध्याय अर्थात् ‘गणिताध्याय’ में अंकगणित व क्षेत्रमिति से संबंधित विषयों की जानकारी है और अठारहवें अध्याय अर्थात् ‘कुक्कुटाध्याय’ में बीजगणित की विवेचना है। इस ग्रंथ के एक श्लोक में उन्होंने अपना अति संक्षिप्त परिचय भी दिया है, जिसके अनुसार यह ग्रंथ उन्होंने 30 वर्ष की उम्र में चाप वंश के राजा व्याघ्रमुख के राज्यकाल में शक संवत् 550 में लिखा था। ब्रह्मगुप्त का योगदान अमूल्य था। उन्होंने पहले-पहल बीजगणित का प्रयोग किया, पर इसे उन्होंने ‘कुक्कुट गणित’ का नाम दिया था। उनके ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धांत’ के टीकाकार पृथूदक स्वामी (860 ई.) ने पहले-पहल ‘बीजगणित’ शब्द का प्रयोग किया था।
आर्यभट्ट के ही समय में शून्य सहित दस संकेतों से सभी संख्याओं को व्यक्त करने की प्रणाली, जो वर्तमान में दाशमिक या दशमलव प्रणाली कही जाती है, विकसित हो चुकी थी; पर पहले-पहल इसकी व्याख्या करनेवाले ब्रह्मगुप्त ही थे जिन्होंने कहा, ‘‘किसी संख्या में शून्य जोड़ने या घटाने से वह संख्या नहीं बदलती है। किसी संख्या को शून्य से गुणा करने या उसमें भाग देने से वह शून्य हो जाती है। उन्होंने शून्य के निम्न गुण दरशाए— x-o = x -x-o = -x o-o = o x x o = o o x o = o o ÷ o = o इनमें से o ÷ o o सही नहीं है। उन्होंने x ÷ o को ‘तत्छेद’ कहा। ‘तत्छेद’ का अर्थ है—ख-छेद अर्थात् अनंत। ब्रह्मगुप्त की अनेक खोजों का श्रेय आज पाश्चात्य गणितज्ञों को दिया जाता है।
उन्होंने वृत्तीय चतुर्भुज का क्षेत्रफल निकालने के लिए सूत्र विकसित किए। उन्होंने खगोल-शास्त्र के क्षेत्र में भी अनेक प्रकार का अनुसंधान किया और संसार को नया ज्ञान दिया। वे मानते थे कि पृथ्वी स्थिर है और ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धांत’ में उन्होंने एक वर्ष की अवधि 365 दिन, 6 घंटे, 5 मिनट तथा 19 सेकंड बतलाई। उन्होंने अपनी दूसरी रचना ‘खंड खाद्यक’ 67 वर्ष की उम्र में तैयार की, जिसमें आठ अध्याय हैं। इसमें उन्होंने पंचांग बनाने की विधि विस्तार से बतलाई है।
इसमें भी उन्होंने एक वर्ष की अवधि की गणना की और वह 365 दिन, 6 घंटे, 12 मिनट और 36 सेकंड बतलाई। इतना बारीक अंतर यह बतलाता है कि वे शुद्धता की ओर बढ़ने के लिए कितने व्यग्र थे। पर लगता है, ब्रह्मगुप्त उतने साहसी नहीं थे। आर्यभट्ट के साहसी नए विचारों की न केवल उन्होंने उपेक्षा की वरन् कई मामलों में विरोध भी किया। आश्चर्य इस बात पर होता है कि उन्होंने सूर्यग्रहण व चंद्रग्रहण को भी राहु-केतु का प्रभाव मान लिया। पर वे एक महान् वेधकर्ता थे। अपने ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धांत’ में उन्होंने यंत्राध्याय में अनेक ज्योतिष यंत्रों का वर्णन भी किया था। यह माना जाता है कि तुरीय यंत्र की खोज उन्हीं ने की होगी।
बाद के काल के भारतीय गणितज्ञों व अरबी गणितज्ञों ने अपने कार्यों में उनका उल्लेख सम्मानपूर्वक किया। सन् 1817 में जब कुक्कुटाध्याय का अंग्रेजी में अनुवाद हुआ तो यूरोप के विद्वानों को ज्ञात हुआ कि आधुनिक बीजगणित वास्तव में भारतीय बीजगणित पर ही आधारित है। यह माना जाता है कि ब्रह्मगुप्त ने ‘ध्यान गुहोपदेश’ नामक ग्रंथ की भी रचना की थी; पर अब यह उपलब्ध नहीं है।
अनुमानों के अनुसार, उनकी मृत्यु सन् 680 में हुई। उनके दोनों ग्रंथों का अरबी में अनुवाद हुआ, जिससे अरबी गणित का आधार सशक्त हुआ।