क्रिश्चियेन हाइगेंस

क्रिश्चियेन हाइगेंस

क्रिश्चियेन हाइगेंस

जन्म: 14 अप्रैल, 1629 (हॉलैंड)
मृत्यु: 8, जुलाई 1695 (नीदरलैंड)

सत्रहवीं शताब्दी के श्रेष्ठ वैज्ञानिकों में से एक क्रिश्चियेन हाइगेंस का जन्म 14 अप्रैल, 1629 को हॉलैंड के हेग नामक स्थान पर हुआ था।

उनके पिता कांसटेंटिन हाइगेंस एक जाने-माने व्यक्ति थे और रेनेसाँ युग में प्रभावशाली माने जाते थे। इस कारण हाइगेंस को बचपन में विकास का उत्कृष्ट वातावरण मिला। घर पर रेने डेस्कार्टेस जैसे अनेक विद्वान् आते थे। सोलह वर्ष तक की उम्र तक निजी ट्यूटरों ने उन्हें पढ़ाया।

सन् 1645 में क्रिश्चियेन लेडेन विश्वविद्यालय में पढ़ने गए। वहाँ पर उन्होंने गणित व कानून का अध्ययन किया। सन् 1647 में वे ब्रेडा विश्वविद्यालय में पढ़ने गए तथा उपर्युक्त विषयों पर आगे पढ़ाई की। सन् 1651 में क्रिश्चियेन हाइगेंस ने विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य प्रारंभ किया। उन्होंने अनेक क्षेत्रों में एक साथ कार्य किया। उन्होंने शनि के वलयों को दिखाया।

सन् 1661 में उन्होंने तत्कालीन नवगठित रॉयल सोसाइटी के विदेशी सदस्य के रूप में भाग लिया और सदस्यों के समक्ष पिंडों के टकराने के नियमों को समझाया। अपने भाई की सहायता से उन्होंने लेंसों की घिसाई व पॉलिश करने की नई व बेहतर विधि विकसित की। सन् 1666 में क्रिश्चियेन हाइगेंस पेरिस जाकर रहने लगे और लंबे समय तक वहीं रहे। उनका पेंडुलम घड़ी संबंधी अनुसंधान अति महत्त्वपूर्ण व उपयोगी था।

उन्होंने अपने अनुसंधान के आधार पर एक स्थानीय घड़ीसाज से एक घड़ी तैयार करवाई। इसे सन् 1658 में पेटेंट मिला। सन् 1672 में उनकी भेंट लिबनीज से हुई और इसके साथ ही गणित संबंधी उनका कार्य आगे बढ़ता गया। उन्होंने पेंडुलम घड़ी के विभिन्न नियमों पर आधारित जो पुस्तक लिखी, वह काफी लोकप्रिय हुई और न्यूटन की ‘प्रिंसिपिया’ के बाद उसी का स्थान था। हाइगेंस ने प्रकाश की प्रकृति पर भी अनुसंधान किया। उन्होंने प्रकाश के संचरण को तरंग गति के रूप में बताया और समझाया। पर उन्होंने ईथर के अस्तित्व को स्वीकारा। इस मामले में न्यूटन से उनकी मत-भिन्नता थी, जोकि प्रकाश के कणिका सिद्धांत को मानते थे और उन्होंने ईथर के अस्तित्व को नकार दिया था।

हाइगेंस ने अन्य क्षेत्रों में भी अनुसंधान किया था। उन्होंने आंतरिक दहन इंजन का डिजाइन तैयार किया था, जिसमें ईंधन के स्थान पर बारूद का प्रयोग होना था। पर वे उसे कार्यरूप नहीं दे पाए। वे एक अद्भुत चिंतक भी थे और यह मानते थे कि अन्य ग्रहों पर भी जीवन है और मनुष्य भी रहते हैं। उन्होंने बृहस्पति व शनि ग्रहों पर तथा जहाज निर्माण व अन्य इंजीनियरिंग कार्यकलापों के बारे में लिखा भी था।

हाइगेंस ने अपने समय के प्रख्यात विद्वान् लिबनिज को गणित पढ़ाया। शीघ्र ही उन्होंने यह जान लिया कि उनके शिष्य के पास आला दर्जे का मस्तिष्क है। उन्होंने लिबनिज को अपने समय के गणित से इस प्रकार परिचित कराया कि आगे लिबनिज की गणना श्रेष्ठ गणितज्ञों में होने लगी। पर वे स्वभावतः एक एकाकी व्यक्ति थे और उन्होंने अपने आस-पास शिष्यों की कोई टोली एकत्रित नहीं की।

अपने पिता के निधन के पश्चात् वे पूर्ण एकाकी व्यक्ति हो गए थे और देहात के अपने घर में रहने लगे थे। 8 जुलाई, 1695 को नीदरलैंड के हेग नामक स्थान पर उनका निधन हो गया। चंद्रमा के एक पर्वत का नामकरण ‘क्रिश्चियेन हाइगेंस’ के नाम पर किया गया। इसके अलावा उनके नाम पर अन्य वैज्ञानिक उपलब्धियों का भी नामकरण हुआ।

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