जन्म: | 8 नवंबर, 1656 (इंग्लैंड) |
मृत्यु: | 14 जनवरी, 1742 (इंग्लैंड) |
न्यूटन के समकालीन वैज्ञानिक एडमंड हैली, जिन्होंने अनेक मामलों में न्यूटन की सहायता की, का जन्म सन् 1656 में इंग्लैंड में हुआ था। उनके पिता लंदन के एक धनी-मानी व्यापारी थे।
एडमंड हैली की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा लंदन स्थित सेंट पॉल विद्यालय में हुई थी और बाद में वे पढ़ने के लिए ऑक्सफोर्ड भी गए थे। पर उन्होंने डिग्री नहीं प्राप्त की। पर विज्ञान में, विशेष रूप से भौतिकी में, उनकी गहरी रुचि थी। सन् 1676 में ही उन्होंने अपना पहला शोधपत्र तैयार कर लिया था, जो कि ग्रहों की गति के सिद्धांत पर था।
यह रॉयल सोसाइटी के जर्नल में प्रकाशित हुआ था। अपने शोध कार्यों के संबंध में हैली ने यूरोप की लंबी यात्रा की और अनेक वैज्ञानिकों, विशेष रूप से खगोल-शास्त्रियों, से वे मिले। उन्होंने चुंबकीय परिवर्तनों, पवनों, लहरों आदि का गहन अध्ययन किया था। सन् 1686 में उन्होंने ऊँचाई बदलने से दबाव परिवर्तित होने का गणितीय सूत्र तैयार किया। इस प्रकार बैरोमीटर की डिजाइन में प्रगति हुई। झीलों के पानी का वाष्पन और उससे होनेवाले लवणीयता में परिवर्तन का भी उन्होंने अध्ययन किया। यह अध्ययन 6-7 वर्ष चला और उससे उन्हें पृथ्वी की आयु का कुछ अहसास हुआ।
जब हैली न्यूटन के संपर्क में आए तो न्यूटन का अनुसंधान कार्य न केवल तेज गति से आगे बढ़ा वरन् खूब निखरा। हैली ने न्यूटन के हर कार्य में योगदान किया। उनके कार्य किस कदर विविधता से पूर्ण थे, इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि एक ओर उन्होंने ऑप्टिक्स में योगदान किया और दूसरी ओर मृत्यु दर की सारणी बनाने, कृषि भूमि को एकड़ में नापने, परमाणु के आकार का अनुमान लगाने, गोताखोरी उपकरण की डिजाइन सुधारने जैसे कार्य भी किए। विभिन्न विषयों पर उनके अनेक लेख प्रकाशित होते रहे। हैली ने अपने जीवन के दो प्रमुख उद्देश्य मान रखे थे।
एक था खगोलशास्त्र से संबंधित कार्य और दूसरा था न्यूटन की सहायता करना। वास्तव में हैली ने न्यूटन को प्रेरित करके उनकी पुस्तक ‘प्रिंसिपिया’ प्रकाशित करवाई। पांडुलिपि पूरी करवाने से लेकर प्रेस में सारा काम करवाने तक का दायित्व उन्होंने निभाया और सारा खर्च भी उठाया। बाद में इस महान् पुस्तक के प्रचार-प्रसार में भी उन्होंने योगदान किया। न्यूटन का उत्साह बढ़ाने के लिए उन्होंने उसमें लैटिन में रचित कुछ कविताएँ भी जोड़ीं। हैली अपने खगोल-शास्त्र संबंधी कामों में आजीवन लगे रहे।
उन्होंने चंद्रमा सहित विभिन्न तारों के पथों का अध्ययन किया और उनका वर्णन कलमबद्ध किया। उनका सबसे महत्त्वपूर्ण व लोकप्रिय काम धूमकेतुओं की खगोलीय गतिविधियों का अध्ययन करना था। इससे पूर्व धूमकेतुओं के बारे में अनेक भ्रांतियाँ थीं, जो समाज में विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर रही थीं। उन्होंने एक धूमकेतु के भ्रमण-पथ का अध्ययन किया था और यह भविष्यवाणी की थी कि यह अगली बार पृथ्वी से सन् 1758 में दिखाई देगा।
हैली का देहांत सन् 1742 में ही हो गया था, पर जब उनकी भविष्यवाणी सही सिद्ध हो गई तो उस धूमकेतु का नाम ‘हैली’ धूमकेतु पड़ गया। अपने वैज्ञानिक कार्यों के अतिरिक्त हैली ने अनेक सरकारी दायित्व भी निभाए और अपने वैज्ञानिक ज्ञान व पद्धति का उपयोग किया। सन् 1696 से 1698 तक वे चेस्टर में टकसाल के उपनियंत्रक रहे।
सन् 1698 से 1700 तक वे ब्रिटिश शाही नौसेना में वरिष्ठ अधिकारी रहे और समुद्री युद्ध में भी भाग लिया। हैली एक लोकप्रिय व्यक्ति थे। इस कारण जब सन् 1702 तथा 1703 में ब्रिटिश कूटनीति मिशन विएना गया तो उसमें हैली को भी सम्मिलित किया गया था। उन्हें ऑक्सफोर्ड में प्राध्यापक के रूप में भी काम करने का अवसर मिला। जब ब्रिटेन के शाही खगोलविद् जॉन फ्लैमस्टैड का निधन हुआ तो उनके पद पर एडमंड हैली आसीन हुए और जीवन के अंतिम क्षण तक इस पद पर कार्य करते रहे।
उन्होंने चंद्रमा के संबंध में तमाम आँकड़े एकत्रित कराए। इस महान् वैज्ञानिक का निधन सन् 1742 में हुआ था।