जन्म: | 23-04-1618 (बोलोग्ना, इटली) |
मृत्यु: | 28-12-1663 (बोलोग्ना, इटली) |
‘डिफ्रैक्शन ऑफ लाइट’ प्रक्रिया की खोज करनेवाले फ्रांसेस्को मारिया ग्रिमाल्डी का जन्म 23 अप्रैल, 1618 को बोलोग्ना, इटली में हुआ था। 14 वर्ष की उम्र में ही ग्रिमाल्डी चर्च की सेवा में आ गए थे और चर्च की आवश्यकताओं के अनुरूप ही उन्हें शिक्षा मिली। शिक्षा पूरी करने के क्रम में वे सन् 1637 में बोलोग्ना वापस आए और फिर वहीं उन्होंने अपना शेष जीवन बिताने का निर्णय लिया।
सन् 1645 में एक पादरी के रूप में उनकी पढ़ाई पूरी हुई और सन् 1648 में बोलोग्ना के एक कॉलेज में गणित के प्राध्यापक की चेयर मिली। उन्हें फादर गिलोवामी रिसियोली के सहायक के रूप में भी कार्य करने का अवसर मिला। उस समय फादर रिसियोली उसी कॉलेज में खगोल-शास्त्र की चेयर पर आसीन थे। वे खगोल-शास्त्र संबंधी अनेक अनुसंधानों में भी रत थे। उनके अनुसंधानों के परिणाम सन् 1651 में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुए।
ग्रिमाल्डी न केवल उनसे प्रभावित हुए वरन् उन्होंने अनेक मापनों सेकंड पेंडुलमों की लंबाई निर्धारित करने में उनका साथ दिया। उन्होंने गैलीलियो के पदार्थ के गिरने संबंधी नियम तथा चंद्रमा के अवलोकन से संबंधित परिणामों के सत्यापन पर भी कार्य किया। ग्रिमाल्डी ने चंद्रमा की सतह का एक नक्शा भी तैयार किया। उपर्युक्त अनुभवों से ग्रिमाल्डी एक उत्कृष्ट प्रयोगकर्ता वैज्ञानिक बने और उन्होंने दो महत्त्वपूर्ण खोजें कीं।
शरीर क्रिया-विज्ञान में उन्होंने पाया कि जब मांसपेशियाँ संकुचित होती हैं तो हलकी सी ध्वनि उत्पन्न होती है। भौतिकी में उन्होंने ऑप्टिक्स संबंधी अनेक मौलिक प्रयोग किए। उपर्युक्त प्रयोगों में एक के अंतर्गत उन्होंने एक अँधेरे कक्ष में सूर्य की रोशनी को आने दिया। इसके लिए उन्होंने एक अत्यंत सूक्ष्म छिद्र बनाया। इस प्रकार जो किरणें अंदर आईं, उन्हें एक अन्य सँकरे छिद्र से गुजारा और बीच में एक झिल्ली लगाई।
जब इस प्रकार चल रहे प्रकाश को उन्होंने श्वेत परदे पर उतारा तो पाया कि सीधी रेखा में चलनेवाले प्रकाश ने ज्यादा स्थान घेरा था। उस समय तक के ज्यामितीय ऑप्टिक्स के ज्ञान के अनुसार यह एक बड़ी घटना थी। अब उन्होंने एक अन्य प्रयोग किया, जिसमें उन्होंने एक पतले अपारदर्शी पदार्थ को किरणों के मार्ग में रखा तथा उसकी छाया देखी। इस छाया में उन्हें स्पष्ट रेखाएँ दिखाई दीं और प्रकाश निम्न रूपों, जैसे—1. सीधे, 2. परावर्तन, 3. अपवर्तन के अतिरिक्त अन्य रूपों में भी आगे बढ़ता है तथा यह रूप डिफ्रैक्शन कहलाता है यह ज्ञात हुआ।
उस समय यह बड़ी खोज थी तथा अपने अनुभवों को उन्होंने पुस्तकाकार रूप देना प्रारंभ किया। ग्रियाल्डी को ईश्वर ने जीने के लिए अल्पायु ही दी थी। उनकी रचना उनकी मृत्यु के पश्चात् सन् 1665 में ही आ पाई; पर उसने लोगों को प्रकाश व रंगों के सिद्धांतों के समझने में सहायता की। वह पुस्तक न्यूटन के पास भी पहुँची तथा उसके आधार पर उन्होंने आगे प्रयोग किए। उन्होंने भी ग्रिमाल्डी के सिद्धांत की पुष्टि की। जैसा कि पहले बताया जा चुका है, 28 दिसंबर, 1663 को ग्रिमाल्डी का बोलोग्ना में निधन हो गया।