गैलेन

गैलेन

गैलेन

जन्म: 130 ईस्वी.
मृत्यु: 210 ईस्वी.

पश्चिम में प्राचीन काल में चिकित्सा-विज्ञान, शरीर रचना-शास्त्र तथा शरीर क्रिया विज्ञान के क्षेत्र में प्रायोगिक कार्य करके दुनिया को अद्भुत ज्ञान देनेवाले वैज्ञानिक गैलेन का जन्म 129 ईसवी में एशिया माइनर के एक स्थान पेरगामम में हुआ था, जो काला सागर व भूमध्य सागर के बीच एक प्रायद्वीप है।

गैलेन के पिता यूनानी मूल के थे और उन्हें गणित, खगोलशास्त्र, ज्यामिति आदि का अच्छा ज्ञान था। वे एक अच्छे आर्किटेक्ट भी थे और इस कारण बाल्यकाल में ही गैलन की वैज्ञानिक मनोवृत्ति विकसित हो गई थी। 14 वर्ष की उम्र तक घर पर ही पढ़ाई करने के बाद गैलेन को विभिन्न स्कूलों में भेजा गया, जहाँ पर उन्होंने यूनानी दार्शनिकों के विचारों को ग्रहण किया। 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने चिकित्सा-शास्त्र का अध्ययन किया और इसके लिए वह अलेक्जेंड्रिया भी गए जो उस समय उच्च शिक्षा का एक बड़ा केंद्र था।

चिकित्सा-शास्त्र के अतिरिक्त गैलन ने संगीत व भाषाओं का भी अध्ययन किया। 29 वर्ष की उम्र तक पढ़ाई करने के पश्चात् गैलन पैरगामम लौट आए और चिकित्सक के रूप में कार्य करने लगे। शीघ्र ही वे अपने ज्ञान व कार्य के कारण लोकप्रिय हो गए।

इस बीच रोमन सम्राट् मार्कस ओरेलियस ने उन्हें बुलवा लिया। कारण था रोमन सेना में प्लेग फैला था। गैलन ने इससे मुक्ति दिलवाई और इसके बाद वे रोम में बस गए। मार्कस के बाद एक के बाद एक तीन सम्राट् बने और उन्होंने गैलेन को ही अपना चिकित्सक बनाया। गैलेन लगातार शरीर रचना-शास्त्र और शरीर क्रिया-विज्ञान का अध्ययन करते रहे। उनका अध्ययन इतना गहरा था कि उन्होंने हृदय, उसकी मांसपेशियों की परतों, वॉल्वों, रक्त प्रवाह सिद्धांत आदि सभी का अध्ययन कर डाला था। यही नहीं, उन्होंने तंत्रिका तंत्र तथा उनके मस्तिष्क तक के मार्ग की भी खोजबीन की थी। गैलेन चीर-फाड़ में अति कुशल थे। उन्होंने सूअर, कुत्ते व बंदर की बाकायदा चीर-फाड़ की थी।

यह भी कहा जाता है कि उन्होंने मनुष्य के शरीर की भी चीर-फाड़ की थी। मांसपेशियों व तंत्रिकाओं संबंधी उनका अनुसंधान गजब का था और उन्होंने विभिन्न प्राणियों व मनुष्य की एक जैसी मांसपेशियों की पहचान की थी। उन्होंने यह भी जान लिया था कि जीवित मांसपेशियाँ लगातार फूलती-सिकुड़ती हैं। वे समूह में काम करती हैं। उन्होंने मेरुदंड का भी गहन अध्ययन किया था और यह जाना था कि कौन सी वर्टीब्रा काटने से प्राणी मर जाता है और कौन सी वर्टीब्रा काटने से उसकी श्वसन प्रक्रिया बाधित होती है और किसके कटने या टूटने से उसे लकवा मार जाता है। यह भी पाया कि किस वर्टीब्रा के फटने से कहाँ तक लकवा मारता है।

गैलेन ने शरीर के अंदर की रचना के प्रभाव को स्पष्ट रूप से सामने ला दिया था। उन्होंने पाया कि आधा मेरुदंड क्षत-विक्षत होगा तो आधा शरीर लकवाग्रस्त हो जाएगा। उन्होंने यह भी जान लिया कि मेरुदंड के ऊतकों की क्षति स्थायी होती है और वह स्वतः नहीं ठीक होते हैं। यदि गरदन में गहरी चोट लग जाए तो मेरुदंड को अधिकतम क्षति होती है और शरीर के अधिकतम भाग क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। उस समय सीमित सुविधाएँ ही थीं, पर गैलेन अधिक-से-अधिक जानने-समझने में सफल हुए। उन्होंने यह भी पाया कि शरीर के अंग केंद्रीय तंत्रिका तंत्र द्वारा नियंत्रित होते हैं और नियंत्रण हेतु ऊर्जा मस्तिष्क से आती है। इसी तरह उन्होंने बताया कि वाणी भी मस्तिष्क द्वारा ही नियंत्रित होती है।

गैलेन केवल प्रयोग ही नहीं करते थे वरन् उपचार में भी सिद्धहस्त थे। वे जानते थे कि नाड़ी की गति रोगी की स्थिति बताने में सहायक होती है। वे यह भी जानते थे कि नाड़ी की गति मनुष्य की भावना से भी प्रभावित होती है। सुख-दुःख में यह अलग-अलग होती है। उन्होंने यह भी बताया कि शरीर लगातार कार्य करता रहता है, हालाँकि कई बार देखने में ऐसा नहीं लगता है। अपनी उपचार-पद्धति में वे ज्यादातर दवाओं पर निर्भर करते थे। इन दवाओं की खोज व विकास हेतु उन्होंने लंबी-लंबी यात्राएँ भी कीं। हालाँकि गैलेन ने अपने लेखन में बार-बार यह लिखा कि उनकी कोई भी बात बिना प्रायोगिक सत्यापन के न मानी जाए, पर अगले 1,500 वर्षों तक पश्चिमी विद्वान् गैलेन की खोजों को ही सत्य मानते रहे।

हालाँकि बाद में कुछ तथ्य त्रुटिपूर्ण सिद्ध हुए।

यही नहीं, उनकी मृत्यु के बाद 1,200 वर्षों तक चीर-फाड़ भी पश्चिम में बंद-सी रही। अपने जीवनकाल में गैलेन ने लगभग 400 महत्त्वपूर्ण लेख लिखे। वे सभी ग्रीक भाषा में थे। इस कार्य का अरबी में अनुवाद हुआ। बारहवीं शताब्दी में अरबी दस्तावेजों का लैटिन में अनुवाद हुआ और फिर यह ज्ञान पश्चिमी यूरोप में पहुँचा।

सन् 199 में इस प्राचीन महान् चिकित्सक का देहांत हो गया।

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