गोटफ्राइड विल्हेम लिबनिज

गोटफ्राइड विल्हेम लिबनिज

गोटफ्राइड विल्हेम लिबनिज

जन्म: 1 जुलाई, 1646 (लिपजिग, जर्मनी)
मृत्यु: 14 नवंबर, 1716 (जर्मनी)

ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न शाखाओं, जैसे—तर्कशास्त्र, गणित, यांत्रिकी, भूगर्भ-शास्त्र, भाषा-विज्ञान आदि में अभूतपूर्व कार्य करनेवाले लिबनिज का जन्म 1 जुलाई, 1646 को लिपजिग में एक लुथेरन परिवार में हुआ था। पढ़ने के लिए उन्हें निकोलाई स्कूल भेजा गया था, पर उन्होंने ज्यादातर ज्ञान अपने पिता के पुस्तकालय में स्वाध्याय से पाया था। पिता का देहांत सन् 1652 में हो गया था।

सन् 1661 में उन्होंने लिपजिग विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और उद्देश्य कानून की पढ़ाई थी। पर वहाँ पर उन्होंने उन वैज्ञानिकों के विचारों का अध्ययन किया, जिन्होंने विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में क्रांति का सूत्रपात किया था। ये थे गैलीलियो, फ्रांसिस बेकन, थॉमस हॉब्स, रेने डेस्कार्टेस। उनके सृजनशील मस्तिष्क में तरह-तरह की तर्कसंगत वैज्ञानिक कल्पनाएँ उभरने लगीं।

सन् 1666 में उन्होंने कानून का अध्ययन पूरा कर लिया था, पर जब उन्होंने ‘डॉक्टर ऑफ लॉ’ की उपाधि के लिए आवेदन किया तो आयु के कारण उसे निरस्त कर दिया गया। इसके बाद वे अपने पैतृक स्थान को लौट आए। बाद में न्यूरेनबर्ग स्थित विश्वविद्यालय में उनकी थीसिस पर उन्हें ‘डॉक्टरेट’ भी मिल गई और प्रोफेसर का पद भी। उसे स्वीकारने के स्थान पर उन्होंने राजनेताओं की सलाह पर शासन में दायित्व स्वीकारा और अब कानून व राजनीति दोनों ही उनके कार्यक्षेत्र बन चुके थे।

उन दिनों फ्रांस के राजा लुई चौदहवें के कारण जर्मन शासक आशंकित थे। जर्मनी ने फ्रांस को सलाह दी कि वह मिस्र पर चढ़ाई कर दे। जर्मनी यह भी चाहता था कि चर्च के दोनों धड़े कैथोलिक व प्रोटेस्टेंट मिलकर एक हो जाएँ। सन् 1672 में जर्मन शासक इलैक्टर ने लिबनिज को फ्रांस भेजा। पर वे वहाँ पर विवादों में पड़ गए और जान बचाकर लौट आए। अब वे वैज्ञानिक अध्ययन व कार्य में जुट गए। उनका अनेक वैज्ञानिकों जैसे—रॉबर्ट बॉयल, जॉन कॉलिंस जो न्यूटन के साथी थे, क्रिश्चियेन ह्यूजेंस आदि से संपर्क रहा।

सन् 1675 में लिबनिज ने डिफरेंशियल व इंटीग्रल कैलकुलस की नींव रखी। पर न्यूटन इस विषय पर पहले ही कार्य कर चुके थे। लिबनिज ने रेने डेस्कार्टेस के इस विचार का भी खंडन किया कि विश्व में सभी गतियाँ विशुद्ध यांत्रिक रूप से संपन्न होती हैं। लिबनिज का मानना था कि गतियों की व्याख्या के लिए काल्पनिक तत्त्व को भी ध्यान में रखना पड़ता है। लिबनिज ने पेरिस में काफी कार्य किया, पर आय का कोई साधन नहीं था, इसलिए वे पेरिस छोड़कर लंदन होते हुए हैनोवर आ गए। लंदन में उन्हें कॉलिंस ने न्यूटन का किया हुआ कुछ अप्रकाशित कार्य भी दिखलाया। हैनोवर में लिबनिज ने जॉन फ्रेडरिक, जो ड्यूक थे, के पास काम किया। उन्हें काफी बाद में सलाहकार का पद मिला। लिबनिज के पास अन्य समकालीन विद्वानों व वैज्ञानिकों की भाँति कोई जायदाद व पेंशन नहीं थी और न ही किसी धर्माचार्य का संरक्षण था, इसलिए राजकीय आदेश पर उन्हें हर प्रकार के कार्य करने पड़ रहे थे। उन्होंने हाइड्रॉलिक प्रैसों, पवनचक्कियों, लैंपों, घडि़यों आदि यांत्रिक उपकरणों पर कार्य किया। घोड़ागाडि़यों में सुधार से लेकर फास्फोरस, जिसकी नई-नई खोज हुई थी, पर भी कार्य किया था। पवनचक्की से चलनेवाले पानी के पंपों पर भी उन्होंने काम किया, जिनका उपयोग खानों में हुआ। इसी दौरान उन्होंने एक भूगर्भ-शास्त्री के रूप में भी कार्य किया और यह प्रतिपादित किया कि पृथ्वी पहले पिघली हुई अवस्था में थी। इन सभी कामों के बीच वे अपना गणित संबंधी कार्य भी नियमित रूप से करते रहे। लिबनिज के काल में फ्रांस जर्मनी के राज्यों के लिए भारी खतरा बना हुआ था और इस कारण अकसर वैज्ञानिक व गणितज्ञ लिबनिज को अपना विज्ञान व गणित किनारे रखकर देशभक्त लिबनिज की भूमिका निभानी होती थी। 

सन् 1681 में उन्होंने वृत्त व उसकी परिधि पर बने वर्ग के बीच संबंध की व्याख्या की। उन्होंने अधिकतम व न्यूनतम निकालने की विधियाँ भी निकालीं। चूँकि न्यूटन ने अपने कैलकुलस के सिद्धांत को प्रकाशित नहीं किया था, अतः इस पर न्यूटन व लिबनिज के बीच जमकर विवाद हुआ और यह 18वीं शताब्दी के बड़े वैज्ञानिक विवादों में से एक माना जाता है।

सरकारी आदेशों का पालन करते हुए लिबनिज ने एक इतिहासकार के रूप में भी अपने दायित्व निभाए। उन्होंने अपने लेखों व विचारों में ईश्वर के प्रति आस्था जताई और इस प्रकार डेस्कार्टेस के विचारों का खंडन करते रहे, जो सांसारिक गतिविधियों के भौतिक कारण को मानते थे। उन्होंने सन् 1700 में स्थापित हुई जर्मन विज्ञान अकादमी के गठन में प्रमुख भूमिका निभाई। 18वीं शताब्दी के आरंभ तक लिबनिज की ख्याति पूरे यूरोप में फैल चुकी थी।

उनके दैवी न्याय संबंधी सिद्धांत लोकप्रिय हो रहे थे, जिनके अनुसार हर प्राणी की अपनी अलग प्रकृति होती है, उसका एक स्थान होता है। वह दूसरों के काम में कम-से-कम बाधा उत्पन्न करता है। इससे संसार में सुंदरता भी बढ़ती है। लिबनिज एक मध्यम ऊँचाई के चौड़े कंधोंवाले व्यक्ति थे। एक ही कुरसी पर बैठे-बैठे कई दिनों तक सोचने में सक्षम थे। सोचने की धुन में वे सर्दी-गरमी से बेखबर रहते थे और कभी भी सड़क पर चक्कर लगाने लगते थे।

वे महान् वैज्ञानिक ही नहीं थे वरन् विभिन्न देशों के वैज्ञानिकों के बीच समन्वय भी स्थापित करते थे। उन्होंने अपनी विद्वत्तापूर्ण भाषा में 600 लोगों को पत्र लिखे, जो स्वयं ज्ञान का एक भंडार है। उनके जीवनकाल में उनकी तमाम पांडुलिपियाँ प्रकाशित नहीं हो पाईं।

वे रूसी जार के प्रशंसक थे। जून 1716 में वे उनसे अंतिम बार मिले और उसके बाद लिबनिज बीमार पड़ गए। 14 नवंबर, 1716 को उनका निधन हो गया।

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