हब्न अल हैथम

हब्न अल हैथम

हब्न अल हैथम

जन्म: 965 में बसरा शहर, इराक
मृत्यु: 1038 काहिरा, मिस्र
राष्ट्रीयता: इराकी
शिक्षा: प्रकाशिकी खगोलशास्त्र गणित
किताबें | रचनाएँ : अल-मानेज़ीर

अरब जगत् के प्रख्यात भौतिकीविद् अल्हाजेन का पूरा नाम ‘हब्न अल हैथम’ था और उनका जन्म सन् 965 में बसरा शहर में हुआ था, जो आजकल इराक की व्यापारिक राजधानी कहलाती है। उनके माता-पिता व शिक्षा-दीक्षा के बारे में प्रामाणिक जानकारियाँ नहीं हैं।

पर यह ज्ञात है कि पहले बसरा व फिर बगदाद में पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के पश्चात् वे काहिरा, मिस्र पहुँचे।

उस काल में नील नदी में बाढ़ एक प्रमुख समस्या थी। तत्कालीन खलीफा अल हाकिम ने उन्हें इस बाढ़ को नियंत्रित करने के तरीके तलाशने का आदेश दिया। इस कार्य में अल्हाजेन बुरी तरह असफल रहे और लगने लगा कि तत्कालीन खलीफा उन्हें फाँसी की सजा दे देंगे। इस डर से घबराकर अल्हाजेन ने पागलों की तरह व्यवहार करना आरंभ कर दिया। चूँकि पागलों को सजा नहीं दी जाती है, अतः वे सजा से तो बच गए, पर जब तक खलीफा अल हाकिम जीवित रहे—अर्थात् सन् 1021 तक—अल्हाजेन को पागलों की ही भाँति व्यवहार करना पड़ा।

पर वे एक वैज्ञानिक के रूप में लगातार कार्य करते रहे और इस क्रम में स्पेन भी गए।

वहाँ पर उन्होंने विभिन्न विषयों जैसे—गणित, भौतिकी, ऑप्टिक्स, चिकित्सा-शास्त्र आदि का गहन अध्ययन किया और उपर्युक्त विषयों के अतिरिक्त वैज्ञानिक विधियों पर अनेक पुस्तकें भी लिखीं। अल्हाजेन का वैज्ञानिक कार्य भौतिकी के प्रकाश संबंधी क्षेत्रों पर अधिक केंद्रित था। उन्होंने प्रकाश की प्रकृति पर टॉलेमी व गैलेन के सिद्धांतों का अध्ययन किया था और पाया कि प्राचीन ग्रीक मान्यताएँ खामियाँ-युक्त हैं। उस समय तक यह माना जाता था कि प्रकाश वास्तव में आँखों से निकलता है और दिखनेवाली वस्तु से टकराकर वापस आँखों में जाता है और इस प्रकार दृष्टि प्रक्रिया संपन्न होती है।

अल्हाजेन ने बताया कि वास्तव में प्रकाश का स्रोत सूर्य है और सूर्य से प्रकाश की किरणें विभिन्न वस्तुओं पर पड़ती हैं और परावर्तित होकर आँखों तक पहुँचती हैं। इस प्रकार दृष्टि प्रक्रिया संपन्न होती है। इसमें आँखों से सूचना मस्तिष्क तक जाती है। अल्हाजेन ने प्रकाश के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया था और परावर्तन एवं अपवर्तन दोनों को समझा था। उन्होंने छाया व इंद्रधनुष के निर्माण की प्रक्रिया को भी समझा। साथ ही प्रकाश की भौतिक प्रकृति को भी जानने का प्रयास किया। उन्होंने आँख के विभिन्न भागों का अध्ययन करके उनका सटीक वर्णन किया था।

साथ ही इन अंगों की सहायता से किस प्रकार देखा जाता है, यह बतलाया था। उन्होंने दो आँखों से देखने के लाभ भी गिनाए थे और यह भी समझाया था कि उदय व अस्त होने के दौरान जब सूर्य व चंद्र क्षितिज की ओर होते हैं तो उनके आकार में परिवर्तन क्यों दिखलाई देता है। उन्होंने लेंसों व दर्पणों का भी गहन अध्ययन किया था। उन्होंने पाया कि लेंस का कर्वेचर प्रकाश के केंद्रण (फोकस) के लिए जिम्मेदार होता है। उन्होंने स्वयं भी पैराबोलिक दर्पण तैयार किए थे, जो कि बाद में रिफ्लैक्टिंग दूरबीनों में प्रयोग हुए। उन्होंने एक सूर्य-ग्रहण के दौरान पिन होल कैमरा भी तैयार किया था। इसमें सूर्य की तसवीर दीवार पर उतारी गई थी।

इंद्रधनुष के जरिए उन्होंने वायुमंडल में होनेवाले अपवर्तन का भी अध्ययन किया था। इसके माध्यम से उन्होंने वायुमंडल की ऊँचाई मापने का भी प्रयास किया था। ऑप्टिक्स के अतिरिक्त अल्हाजेन ने गणित व भौतिकी की अन्य शाखाओं के लिए भी कार्य किया। उन्होंने बीजगणित व ज्यामिति के बीच संबंध स्थापित करते हुए विश्लेषणात्मक ज्यामिति विषय का भी विकास किया। उन्होंने शरीर की गतियों के गति-शास्त्र का भी अध्ययन किया। अल्हाजेन ने अपने ज्ञान को अरबी में लिखी अपनी पुस्तक में उड़ेला। बाद में तेरहवीं शताब्दी में इसका अनुवाद लैटिन में हुआ तथा रोजर बेकन एवं रॉबर्ट ग्रॉसेटेस्टे आदि विद्वान् इससे अति प्रभावित हुए। जब केपलर ने आगे नया ज्ञान रखा तब अल्हाजेन का ज्ञान फीका पड़ने लगा। पर फिर भी सत्रहवीं शताब्दी तक उन्हें महान् वैज्ञानिक माना जाता रहा।

सन् 1038 में काहिरा में अल्हाजेन का निधन हो गया। 

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