(सर आइजक न्यूटन)
जन्म: | 4 जनवरी, 1643 (लिंकनशायर, इंग्लैंड) |
मृत्यु: | 31 मार्च, 1727 (मिडलसेक्स, इंग्लैंड) |
पिता: | आइजक न्यूटन |
माता: | हन्ना ऐस्क्फ़ |
राष्ट्रीयता: | ब्रिटिश |
शिक्षा: | कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय |
सर आइजक न्यूटन, जिन्होंने पश्चिम में भौतिकी सहित विभिन्न विज्ञान विषयों को विश्वसनीय रूप दिया, का जन्म क्रिसमस की पूर्व रात की समाप्ति के 20 मिनट बाद 25 दिसंबर, 1642 को इंग्लैंड के लिंकनशायर इलाके के वूल्सथॉर्प नामक स्थान पर हुआ था।
जन्म से पूर्व ही न्यूटन के पिता का निधन हो चुका था। उनकी माता हन्नाह ने जब उन्हें जन्म दिया तो उनका आकार अपेक्षाकृत छोटा था और वे बहुत कमजोर थे। सभी को आशंका थी कि नवजात शिशु अधिक नहीं जिएगा, पर न्यूटन ने लंबी आयु पूरी की थी।
जब बालक आइजक मात्र तीन वर्ष का था तो माता हन्नाह ने एक धनी व्यक्ति से विवाह कर लिया और आइजक को उसकी दादी के पास छोड़ दिया। अकेलेपन के कारण आइजक दब्बू हो गया था और अकेले बैठा सोचता रहता था। उसे सूर्य व सूर्य की रोशनी की गतिविधियाँ बहुत भाती थीं और वह सूर्यघड़ी संबंधी प्रयोग करता रहता था। वह स्थानीय स्कूल में पढ़ने गया तो अध्यापक भी निराश हुए। पर कभी-कभी वह उग्र हो जाया करता था।
जब आइजक 10 वर्ष का हो गया तो उसकी माता हन्नाह फिर से विधवा हो गई और वापस वूल्सथॉर्प आ गई। पर अब वह धनवान हो चुकी थी। दूसरे पति से उसके तीन बच्चे भी थे। न्यूटन को अपने सौतेले भाई-बहन बिलकुल नहीं भाते थे।
अब माता हन्नाह ने आइजक को 10 कि.मी. दूर एक ग्रामर स्कूल में भेजा, जहाँ पर प्रारंभ में उसकी पढ़ाई निराशाजनक रही। वह माता के एक संबंधी क्लार्क के घर में रहता था। वह क्लार्क से विज्ञान की पुस्तकें लेकर भी पढ़ता था और उनसे दवा-निर्माण की विधियाँ भी सीख रहा था। इसी बीच क्लार्क के सौतेले बेटे ऑर्थर, जो उसी स्कूल व उसी कक्षा में पढ़ता था, से उसका झगड़ा हुआ और पिटने के बाद ऑर्थर ने न्यूटन को चुनौती दी कि लड़ाई में जीत गए तो क्या, पढ़ाई में जीतकर दिखाओ। अब न्यूटन ने पढ़ाई में कमाल दिखाना प्रारंभ किया। इधर न्यूटन कैंब्रिज में जाने के लिए तैयार हो गया और उधर माता का आदेश आ गया कि वापस आ जाओ और अपना घर, फार्म व जानवरों की देखरेख करो।
न्यूटन को वापस गाँव आकर उपर्युक्त कार्य करने पड़े; पर इनमें उनका मन नहीं लगता था। वे अपने वैज्ञानिक चिंतन में खोए रहते थे। कभी उनकी गायें किसी दूसरे के खेत में चरने लगती थीं तो कहीं उनके सूअर दूसरे का बाड़ा तोड़ देते थे। जिसका नुकसान होता था वह कचहरी चला जाता था। न्यूटन को जुर्माना भी भरना पड़ा और उनका आपराधिक रिकॉर्ड भी हो गया। स्थिति को देखकर न्यूटन के मामा, जो कैंब्रिज में शिक्षिक थे, को दया आई और उन्होंने न्यूटन का प्रवेश कैंब्रिज स्थित श्रेष्ठतम कॉलेज ट्रिनिटी कॉलेज में करवा दिया।
यहाँ आकर न्यूटन ने न केवल जमकर पढ़ाई की वरन् विभिन्न घटनाओं पर जमकर चिंतन किया। उन्होंने प्राचीन दार्शनिकों अरस्तू आदि के भी विचार पढ़े और एक शताब्दी पूर्व के वैज्ञानिकों कोपरनिकस, कैपलर, गैलीलियो, डेस्कार्टेस आदि के कार्यों का भी गहन अध्ययन किया।
न्यूटन एक अति धार्मिक व्यक्ति भी थे और ‘बाइबल’ का भी गहन अध्ययन किया करते थे। वे ‘बाइबल’ में वर्णित तथ्यों और समकालीन दार्शनिकों के विचारों का मिलान करते थे और इसमें उन्हें स्पष्ट विसंगतियाँ दिखलाई देती थीं।
इसी बीच इंग्लैंड के अनेक भागों में प्लेग फैल गया और कैंब्रिज विश्वविद्यालय खाली हो गया। न्यूटन को अपने घर वूल्सथॉर्प वापस आना पड़ा। स्नातक की उपाधि के बाद गाय व सूअर चराना उनके बस की बात नहीं थी। वे गणित की नई-नई विधाओं, जैसे बाइनोमियल प्रमेय, डिफरेंशियल कैलकुलस, इंटीग्रल कैलकुलस आदि के विकास में जुट गए और उन्होंने उसमें भारी सफलता पाई। उस समय रंगों की उत्पत्ति और मौलिक रंगों के अस्तित्व के बारे में अनेक धारणाएँ थीं। सत्य की खोज में न्यूटन ने अनेक घातक प्रयोग भी किए, जैसे आँखों को देर तक दबाना, सूर्य को देर तक देखना आदि। प्रिज्म के उपयोग से उन्होंने श्वेत प्रकाश को तोड़कर सात रंग उत्पन्न किए और यह सिद्ध किया कि ये सातों रंग मौलिक हैं।
उन्हीं दिनों बाग में एक दिन वे बैठे थे तो ऊपर से सेब उनके सिर के ऊपर आ गिरा। इस मामूली सी घटना पर उन्होंने गहन चिंतन किया और इस प्रकार ये तथ्य उनके अनोखे मस्तिष्क में आए—
1. सेब उस पेड़ से इसलिए गिरा कि पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति उसे खींच रही थी। इस शक्ति का केंद्र पृथ्वी का केंद्र है।
2. यदि पृथ्वी के केंद्र से सेब की दूरी दुगुनी होती तो यह आकर्षण बल 1/2 × 2 = 1/4 गुना होता और यदि दूरी तिगुनी होती तो आकर्षण बल 1/3 × 3 = 1/9 गुना होता।
3. यदि सेब चाँद पर होता तो सेब की पृथ्वी के केंद्र से दूरी 60 गुना होती और यह गुरुत्वाकर्षण बल 1/60 × 60 गुना होता।
इस प्रकार न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का इनवर्स स्क्वायर लॉ विकसित हो गया। न्यूटन ने यह भी निकाल लिया कि गिरती हुई चीज जब त्वरण के साथ गिरती है तो अलग-अलग अवधियों में अलग-अलग दूरी तय करती है।
इसी बीच लंदन में लगी भीषण आग में सारे चूहे व प्लेग के वायरस मर गए और न्यूटन वापस कैंब्रिज पहुँचे। आवेदन के बाद उन्हें फैलो का पद मिला और वे अति प्रसन्न हुए। उन्होंने अभी तक का अपना सारा शोध कार्य गोपनीय रखा था।
पर शीघ्र ही उन्हें एक पुस्तक मिली, जिसमें लेखक ने अपने कार्य का वर्णन किया था और कुछ कार्य वही था, जो उन्होंने प्लेग के दौरान स्वतंत्र रूप से किया था। अब उन्होंने कैंब्रिज के लुकासियन प्रोफेसर बैरो से अपने नए कार्यों की चर्चा प्रारंभ की। बैरो उनके गणित संबंधी कार्यों से अति प्रभावित हुए और उन्होंने इसकी चर्चा अन्य गणितज्ञों से की। बात रॉयल सोसाइटी तक पहुँची, जिसने उन्हें शोध कार्यों को प्रस्तुत करने की सलाह दी; पर तब तक न जाने क्यों, न्यूटन ने अपनी मूल नोटबुक्स वापस ले लीं। प्रो. बैरो ने आध्यात्मिक कार्यों को करने के लिए लुकासियन प्रोफेसर का पद छोड़ा और न्यूटन के नाम की संस्तुति की। लुकासियन प्रोफेसर बनकर न्यूटन अति प्रसन्न हुए। कुछ दिनों तक उन्होंने जश्न मनाया और फिर गंभीर शोध कार्यों की दुनिया में लौट आए।
अब वे ‘बाइबल’ पर गंभीर चिंतन करने लगे थे। वे चाहते थे कि इसमें जो अवैज्ञानिक बातें हैं, उन्हें शुद्ध किया जाए। न्यूटन के समय तक जो दूरबीनें थीं, उनमें लेंस का उपयोग होता था। लेंस के किनारे प्रिज्म की भाँति व्यवहार करते थे और खगोलीय पिंड रंगों के कारण धुँधला जाते थे। न्यूटन ने नई दूरबीन तैयार की, जिसमें दर्पण का उपयोग किया गया था और इस कारण रंगों की उत्पत्ति नहीं हो रही थी और उसका आकार भी छोटा था।
इस दूरबीन से इंग्लैंड के वैज्ञानिक जगत् में तहलका मच गया। उस समय की रॉयल सोसाइटी ने उन्हें फेलो चुना और निवेदन किया कि अपने गणित व प्रकाश संबंधी नए सिद्धांतों को प्रस्तुत करें। पर जब तत्कालीन वैज्ञानिक समाज व धर्माचार्यों ने न्यूटन के सिद्धांतों को सुना तो उन्हें वे असत्य व धर्म-विरोधी लगे। इसके अलावा तत्कालीन वैज्ञानिक रॉबर्ट हुक खुल्लम-खुल्ला न्यूटन के विरोध में खड़े हो गए।
धीरे-धीरे न्यूटन के सिद्धांत सभी की समझ में आने लगे। कुछ घटनाएँ ऐसी घटीं, जिनके कारण वैज्ञानिक व अन्य विद्वान् लोग उनके साथ हो लिये। एक पुच्छल तारा आकाश में दिखाई दिया और एडमंड हैली नामक वैज्ञानिक उसका अध्ययन करने लगे। जल्दी ही यह स्पष्ट हो गया कि इसका पथ अंडाकार है, पर इस बात को रॉबर्ट हुक, क्रिस्टोफर रेन नामक विद्वान् मानने के लिए तैयार नहीं थे। अंततः न्यूटन ने अपना पक्ष साबित कर दिया।
न्यूटन की इच्छा पुस्तक लिखने की नहीं थी। पर उन्होंने लैटिन में पुस्तक लिखी। वह पुस्तक अति जटिल थी। इसमें उनके स्वयं के द्वारा विकसित कैलकुलस तथा पुरानी यूक्लिड की ज्यामिति का प्रयोग चीजों को समझाने के लिए किया गया था।
उनकी पुस्तक ‘प्रिंसिपिया’ में ये प्रमुख विषय थे; जैसे—गति के नियम, गुरुत्वाकर्षण के नियम आदि। वे काम में इस कदर व्यस्त रहे कि उन्हें प्रेम संबंध बनाने तथा निभाने का अवसर ही नहीं मिला। पर फिर भी, 17 वर्ष की उम्र में कैथरीन से और 51 वर्ष की उम्र में स्विस गणितज्ञ निकोलस से उन्हें प्रेम हुआ।
सन् 1692-93 की सर्दियों में लगातार घोर परिश्रम के कारण वे नर्वस ब्रेक डाउन के भी शिकार हो गए थे। जब वे स्वस्थ हुए तो उन्हें सरकारी टकसाल का प्रभारी बनाया गया। उस समय सिक्कों से धातु काटकर उसके पुनः प्रयोग का चलन प्रारंभ हो चुका था। न्यूटन ने ऐसे सिक्के ढलवाए, जिससे यह काम बंद हो गया। उन्होंने ऐसा काम करनेवालों को दंड भी दिलवाया।
न्यूटन को रॉयल सोसाइटी का अध्यक्ष भी चुना गया। उस अवधि में उन्होंने एक निरंकुश व्यक्ति की भाँति कार्य किया। रॉयल सोसाइटी अपने भवन में गई। जिन लोगों को न्यूटन पसंद नहीं करते थे, उन्हें उन्होंने अकेले ही अलग करवा दिया। टकसाल की ही भाँति न्यूटन ने ‘रॉयल सोसाइटी’ को सशक्त रूप दिया। प्रकाशिकी संबंधी जो कार्य उन्होंने किया था, उसे उन्होंने ‘आष्टिका’ नामक पुस्तक में डाल दिया।
यह पुस्तक अंग्रेजी में लिखी गई थी। यह अपेक्षाकृत सरल है। अंतिम समय में न्यूटन ‘रॉयल सोसाइटी’ के व्यवस्थापक के रूप में निर्णय लिया करते थे। न्यूटन की पुस्तक ‘प्रिंसिपिया’ के प्रकाशन में एडमंड हैली ने सहायता की थी। ‘प्रिंसिपिया’ को पढ़ना भी उस समय कठिन कार्य था। न्यूटन जैसे गणितज्ञ व वैज्ञानिक पर विचारों की चोरी का आरोप भी लगा। उनके गणित संबंधी कार्य पर लिबनिज ने अपना दावा ठोंका।
इस संबंध में लंबा-चौड़ा पत्र-व्यवहार भी हुआ। अंतिम दिनों में न्यूटन बीमार रहे। 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनका शव वेस्ट मिंस्टर अवे में दफनाया गया।