जन्म: | 28 दिसंबर, 1571 (जर्मनी) |
मृत्यु: | 15 नवंबर, 1630 (जर्मनी) |
रेनेसाँ अर्थात् पुनर्जागरण युग के प्रख्यात खगोल-विज्ञानी तथा ज्योतिषी जोहांस केपलर का जन्म 28 दिसंबर, 1571 को वर्तमान दक्षिणी जर्मनी के एक शहर वेल में हुआ था। यह शहर उस समय रोमन साम्राज्य का एक भाग था, पर स्वतंत्र माना जाता था।
जोहांस के पिता एक सिपाही थे, जबकि माता एक सराय की देखभाल करने वाले की पुत्री थीं। दोनों के बीच अकसर झगड़ा चलता रहता था और इसी बीच माता ने गर्भावस्था पूर्ण होने से पहले ही जोहांस को जन्म दे दिया। इस कारण शिशु का आकार छोटा था और वह आजीवन सामान्य कद नहीं प्राप्त कर पाया।
स्वास्थ्य भी जीवन भर नाजुक ही बना रहा। पर नियति ने जोहांस को असाधारण बुद्धि दी थी और यह जल्दी ही लोगों के सामने आ गई। अत्यंत निर्धन परिवार से आने के बावजूद विट्टेमबर्ग के ड्यूक ने जोहांस केपलर को छात्रवृत्ति दी और वह लगातार पढ़ाई करता रहा। सन् 1587 में केपलर को टबिंगन विश्वविद्यालय में पढ़ने का अवसर मिला। वहाँ पर केपलर को माइकेल मस्तलीन नामक प्रोफेसर से पढ़ने का अवसर मिला, जो कोपरनिकस के उस सिद्धांत से सहमत थे, जिसके अनुसार पृथ्वी एक ग्रह है तथा यह अपने अक्ष पर रोजाना एक चक्कर लगाती है तथा साथ ही एक वर्ष में सूर्य की भी परिक्रमा करती है। केपलर में छात्र जीवन से ही अनेक विशेषताएँ थीं।
वे गणित में असाधारण थे। वे अपनी दैनिक गतिविधियों को भी दर्ज करते थे और तदनुसार तारों व ग्रहों की स्थिति भी नोट करते थे। सन् 1588 में उन्होंने स्नातक की उपाधि ली और 1591 में स्नातकोत्तर की। वे पादरी बनना चाहते थे, पर पाठ्यक्रम पूरा होने से पूर्व ही 1594 में उन्हें गणित के शिक्षक के रूप में कार्य करने का अवसर मिल गया। वहीं पर पढ़ाते-पढ़ाते सन् 1595 की गरमियों में उन्होंने प्राचीन यूनानियों द्वारा विकसित ज्यामिति पर ध्यान दिया।
उसके आधार पर उन्होंने आकाश का निरीक्षण प्रारंभ किया और ग्रहों के परिपथ को ज्यामितीय आकृतियों से मिलाना प्रारंभ कर दिया। उस समय तक मात्र 6 पिंडों (ग्रहों) की ही जानकारी उपलब्ध थी। केपलर के मन में विचार आया कि ये ग्रह 6 ही क्यों हैं, 9 या 100 क्यों नहीं हैं? उन्होंने इस संबंध में अपना शोधकार्य सन् 1596 में टबिंगन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के समक्ष जब रखा तो उन्हें अपार ख्याति मिली।
अब उन्होंने ग्रहों की गति को और बारीकी से निहारना प्रारंभ कर दिया। अपने शोधकार्य को उन्होंने पत्र के रूप में अनेक देशों के विद्वानों तक भेजा, जिनमें डेनमार्क में जनमे टायको ब्राहे भी थे, जो कि तत्कालीन महान् रोमन साम्राज्य के शाही गणितज्ञ थे। हालाँकि टायको ब्राहे कोपरनिकस के सूर्य केंद्रित सिद्धांत को नहीं मानते थे पर वे केपलर के खगोल-शास्त्र संबंधी ज्ञान व गणितीय प्रवीणताओं से अति प्रभावित हुए और सन् 1600 में उन्होंने केपलर को अपने शोध सहायक के रूप में कार्य करने हेतु आमंत्रित किया। टायको ब्राहृ के पास आकाशीय पिंडों की स्थिति से संबंधित दीर्घकाल के आँकडे़ थे।
केपलर ने जब उनके सहायक के रूप में कार्य प्रारंभ किया तो टायको ब्राहे के गरम स्वभाव के कारण प्रारंभ में उन्हें परेशानी हुई, पर वे लगे रहे। संयोगवश अगले ही वर्ष टायको का देहांत हो गया और केपलर को उनका स्थान भी मिला तथा आँकड़ों का खजाना भी। केपलर ज्योतिष विद्या में भी पारंगत थे। उन्होंने ज्योतिष-शास्त्र की मौलिक बातों पर पुस्तक लिखी और अपने सम्राट् की जन्मपत्री भी तैयार की। उनके ज्योतिष ज्ञान का डंका बजने लगा। केपलर के काल में अनेक अनोखी घटनाएँ घटीं।
उन्हें सुपर नोवा (तारे का महाविस्फोट) भी देखने को मिला। अब तक आकाशीय पिंडों को अक्षय माना जाता था, पर पहली बार परिवर्तन देखने को मिला। केपलर ने इसकी भी व्याख्या की तथा लोगों को बतलाया। केपलर ने अब टायको ब्राहे द्वारा एकत्रित आँकड़ों पर कार्य प्रारंभ किया। वास्ताव में टायको ब्राहे ने ये आँकड़े बिना दूरबीन के प्रयोग के एकत्रित करवाए थे। ब्राहे के पास केपलर सहित खगोल-शास्त्रियों का एक दल था।
केपलर को मंगल की स्थिति का अवलोकन करने का दायित्व मिला था। नंगी आँखों से लगातार निहारने में कठिनाई होती थी और इस प्रक्रिया में केपलर ने आँखों की दृष्टि-प्रक्रिया का भी अध्ययन कर लिया। हालाँकि केपलर से पूर्व भी लोग चश्मा लगाते थे और लेंसों की सहायता से बेहतर देख लेते थे; पर ऐसा क्यों होता है, यह व्याख्या केपलर ने ही की।
केपलर ने गैलीलियो की दूरबीन की कार्य-प्रणाली की भी व्याख्या अधिक स्पष्टता से की। उन्होंने इस संबंध में गैलीलियो को इटली में पत्र भी लिखा, हालाँकि गैलीलियो ने कोई उत्तर नहीं भेजा। सन् 1609 में केपलर ने पाया कि मंगल का पथ अंडाकार है। प्राचीन काल से ही यह माना जाता रहा था कि ये आकाशीय पिंड, जिन्हें ‘हेवनली बॉडीज’ कहा जाता था, पूर्ण हैं और गोलाकार पथ पर विचरण करते हैं। धीरे-धीरे उन्होंने पृथ्वी को भी एक ग्रह माना और बताया कि उसका पथ भी गोलाकार नहीं, अंडाकार है।
कोपरनिकस के सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए केपलर ने सिद्ध किया कि अन्य ग्रह भी पृथ्वी जैसे ही हैं और अंडाकार पथ पर विचरण करते हैं। उन्होंने मंगल के अंडाकार पथ के दो फोकस भी दरशा दिए। केपलर से पूर्व यह माना जाता था कि ये आकाशीय पिंड एकरूप गति से विचरण करते हैं, अर्थात् समान अवधि में समान दूरी तय करते हैं। अपने आँकड़ों के संग्रह के आधार पर केपलर ने सिद्ध किया कि ये ग्रह समान समय में समान क्षेत्र तय करते हैं। केपलर के ग्रहों की गति के दो नियम सन् 1609 में ही विकसित हो चुके थे। वे इन्हें प्रकाशित भी कर चुके थे।
उसके दस वर्ष बाद उनका तीसरा नियम आ पाया। यह नियम पिंड की सूर्य से दूरी से संबंधित था। इस प्रकार केपलर ने तीन नियम दुनिया के सामने रखे, जिनके आधार पर न्यूटन ने आगे काम किया और सब कुछ स्पष्ट होता चला गया।
इतने गहन कार्य के लिए सतत साधना की आवश्यकता होती है, पर केपलर को उस साधना हेतु उथल-पुथल का वातावरण ही मिला। राजधानी प्राग में व रोमन साम्राज्य में उथल-पुथल हुई और सम्राट् को उनके छोटे भाई ने ही बेदखल कर दिया। हालाँकि नए शासक भी केपलर की प्रतिभा के कायल थे और उन्होंने केपलर का शाही गणितज्ञ का पद बरकरार रखा, पर केपलर ने प्राग छोड़ दिया तथा लिंज पहुँचे। घरेलू मोर्चे पर भी उथल-पुथल कम नहीं थी। पहली पत्नी का देहांत प्राग में हो गया था। सन् 1613 में दूसरा विवाह हुआ।
इन आफतों के बीच भी केपलर की आविष्कारी मनोवृत्ति कार्य करती रही। एक बार नए घर के लिए सामान खरीदते समय केपलर ने देखा कि व्यापारी तरल पदार्थों को मापने के लिए वक्राकार पैमाने का प्रयोग करते थे और उसमें ग्राहकों को ठगते थे। केपलर ने वक्राकार पात्रों में स्थित आयतन निकालने का सूत्र विकसित कर डाला। केपलर ने इस अनुसंधान को आगे बढ़ाया और विभिन्न आकार के ठोस पदार्थों को घुमाकर वक्राकार आकृतियाँ बनाईं और उनके आयतन का विश्लेषण किया।
लिंज में रहते हुए केपलर लगातार काम करते रहे और खगोल-शास्त्र पर लिखी उनकी रचनाएँ लोकप्रिय होती रहीं। वे अपनी पुस्तकों में समय-समय पर परिवर्तन भी करते थे और उनका विस्तार भी करते थे। बढ़ती आयु के साथ केपलर की ख्याति भी बढ़ी और घरेलू उलझनें भी। लिंज में रहते हुए सन् 1620 में उन्हें पता चला कि उनकी माता को डाइन (चुड़ैल) करार दिया गया है और उन्हें या तो पीट-पीटकर मार डाला जाएगा या जिंदा जला दिया जाएगा।
माता के स्वभाव से परिचित होने पर भी अपने पूर्व शाही गणितज्ञ के पद को भूलकर और अपना अनुसंधान छोड़कर वे माता के बचाव के लिए पैतृक स्थान लौट आए। अपनी वक्तृत्व शैली का भरपूर प्रयोग करते हुए उन्होंने अपनी माता को बीभत्स सजा से बचा लिया। लिंज में जब वे अपनी अगली रचना के प्रकाशन की तैयारी कर रहे थे, तभी किसानों ने विद्रोह कर दिया। इन किसानों को वापस कैथोलिक बनाने और भारी कर देने के लिए बाध्य किया जा रहा था। अराजकता के इस वातावरण में केपलर को लिंज छोड़ना पड़ा और फ्रिडलैंड के ड्यूक के यहाँ आश्रय लेना पड़ा।
वहाँ पर केपलर ने अपनी प्रिंटिंग प्रेस लगाई और वहीं से उनकी रचना छपी। सन् 1628 में केपलर को किन्हीं कारणों से नए संरक्षक वैलेंस्टाइन पर भी विश्वास नहीं रहा और उन्होंने वह जगह भी छोड़ दी। पर अपने परिवार को वहीं छोड़कर वे ऑस्ट्रिया में अपने दो प्रॉमिसरी नोट पर एकत्रित ब्याज वसूलने चल दिए। रास्ते में वे रेजेनबर्ग रुके। वहाँ पर वे गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और 15 नवंबर, 1630 को इस महान् खगोल-विज्ञानी व गणितज्ञ का निधन हो गया।