जन्म: | 14 जून, 1444 संगमग्राम (केरल, भारत) |
मृत्यु: | 1544 ईस्वी, भारत |
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
धर्म : | हिन्दू |
शिक्षा: | गणितज्ञ |
किताबें | रचनाएँ : | तंत्र संग्रह, आर्यभट्ट भाष्य |
नीलकंठ सोमायाजी
नीलकंठ सोमायाजी का एक नाम ‘सोमसुत्वा’ भी था। उनका जन्म केरल के दक्षिण में मलाबार तट स्थित एक स्थान पर 14 जून, 1444 को हुआ था। उनका परिवार नंबूदरीपाद ब्राह्मण परिवार था और यह वैदिक धर्मावलंबियों का वंशज माना जाता रहा है। इसमें अनेक वैदिक विद्वानों ने जन्म लिया है। उनके पिता जातवेदा त्रिचूर के पास त्रिक्कंटीचूर में रहते थे।
वे सोमा नामक देवता के उपासक थे, जोकि पौधों का स्वामी और रोगों को ठीक करनेवाला माना जाता है। नीलकंठ ने अनेक गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने खगोल-विज्ञान पर लगातार अनुसंधान किया और परिणामों को कलमबद्ध किया। अपनी पुस्तक ‘तंत्र संग्रह’, जो वास्तव में एक खगोलीय टीका है, में उन्होंने भारतीय खगोल-शास्त्र के विभिन्न पहलुओं को समेटा है। इसमें आठ अध्याय व कुल 432 संस्कृत छंद हैं। इसमें ग्रहों की गतियों, सूर्य की विभिन्न स्थितियों का वर्णन है।
साथ ही सूर्यग्रहण व चंद्रग्रहण की विभिन्न विशेषताओं को दरशाया गया है। सूर्य व चंद्रमा के उदय और अस्त होने के अलावा सूर्य द्वारा चंद्रमा के विभिन्न भागों के प्रकाशित होने पर भी प्रकाश डाला गया है। नीलकंठ की एक अन्य रचना ‘गोलासर’ में 56 संस्कृत छंद हैं तथा इनमें दरशाया गया है कि खगोलीय आँकड़ों की गणनाओं के लिए किस प्रकार गणितीय आकलन किए जाते हैं। इसी प्रकार ‘सिद्धांत दर्पण’ में 32 संस्कृत छंद हैं और यह एक ग्रहीय प्रतिरूप का वर्णन करती है। ‘चंद्रच्छाया गणित’ में 31 छंद हैं और चंद्रमा के शिरोबिंदु की दूरी की गणना हेतु आकलन विधियों का इसमें वर्णन है।
उन्होंने आर्यभट्ट की रचना ‘आर्यभटीय’ पर भी अपनी टीका लिखी, जिसका शीर्षक है ‘आर्यभट्ट भाष्य’। इसमें उन्होंने 6 मार्च, 1467 को तथा 28 जुलाई, 1501 को अनंत क्षेत्र में देखे दो ग्रहणों का वर्णन किया है। साथ ही उन्होंने ग्रहण-निर्णय जैसा कठिन विषय भी समझाया है, जिसकी सहायता से उन्होंने उन ग्रहणों का सटीक विवरण दिया है, जो उनकी मृत्यु के बाद लगे। यह दुर्भाग्य की बात है कि श्रेणियों पर कार्य का श्रेय लिबनिज तथा जेम्स ग्रेगरी जैसे पश्चिमी विद्वानों को दिया जाता है; जबकि यह कार्य 300 वर्ष पूर्व भारतीय गणितज्ञ माधव कर चुके थे और नीलकंठ सोमायाजी ने अपने ‘तंत्र संग्रह’ में इसका वर्णन किया है।
इस महान् गणितज्ञ का निधन 1544 ईसवी में हुआ था।