ओले क्रिश्चियेन सन रोमर

ओले क्रिश्चियेन सन रोमर

ओले क्रिश्चियेन सन रोमर

जन्म: 25 सितंबर, 1644 (डेनमार्क)
मृत्यु: 19 सितम्बर, 1710 (डेनमार्क)

भौतिकी व खगोल-शास्त्र के क्षेत्र में उत्कृ ष्ट कार्य करनेवाले ओले क्रिश्चियेन सन रोमर का जन्म डेनमार्क के एक स्थान आरस में 25 सितंबर, 1644 को हुआ था। जहाँ उनके पिता रहते थे। वे एक समुद्री जहाज के मालिक थे।

रोमर की प्रारंभिक शिक्षा उनके अपने ही शहर के कैथेड्रल स्कूल में हुई। सन् 1662 में वे कोपेनहेगन विश्वविद्यालय में पढ़ने गए। वहाँ पर उन्हें एरास्मस बार्थोलिन के सहायक के रूप में कार्य करने का अवसर मिला। इसी अवधि में बार्थोलिन ने अनेक उत्कृष्ट अनुसंधान कार्य किए, जिनमें दोहरे अपवर्तन की खोज तथा टायको ब्राहे के खगोलीय आँकड़ों के प्रकाशन की तैयारी शामिल थी।

टायको ब्राहे के काम के प्रकाशन की तैयारी हो गई और उनके निर्देशांकों का सत्यापन हो गया तो जेन पिकार्ड वापस जाने लगे। रोमर ने उनसे स्वीकृति ली और वे भी साथ चले तथा पेरिस पहुँचे। वहाँ पर सन् 1672 में वे फ्रेंच अकादमी के सदस्य बने और वहाँ की वेधशाला में रहने तथा कार्य करने लगे।

अगले वर्ष उन्होंने जी.डी. कैसिनी के सहायक के रूप में कार्य किया और पढ़ाने भी लगे। अब वे अकादमी की पत्रिका में नियमित रूप से लिखने भी लगे। उनके छोटे-छोटे लेखों में महत्त्वपूर्ण विषय होते थे; जैसे—बृहस्पति के चंद्रमा की परिक्रमा में लगनेवाला समय। इससे पूर्व जो समय निकाला जाता था, वह इस आधार पर था कि वह चंद्रमा कितनी बार और कितनी अवधि के लिए बृहस्पति की छाया में जाता है। रोमर ने अलग पद्धति से गणना की और भिन्न परिणाम पाया। रोमर के महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक है उनकी यह परिकल्पना कि प्रकाश तत्काल नहीं पहुँच जाता वरन् यह एक निश्चित वेग से आगे बढ़ता है। उन्होंने यह भी अनुमान लगाया कि प्रकाश एक निश्चित दूरी जैसे पृथ्वी के परिक्रमा कक्ष के व्यास को पार करने में कितना समय लेगा।

रोमर ने ऑप्टिक्स के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण अनुसंधान किए। वे सन् 1681 में कोपेनहेगन वापस आए और गणित के प्रोफेसर नियुक्त हुए। साथ ही उन्हें अनेक सरकारी दायित्व भी मिल गए, जिनके अंतर्गत उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के सदस्य, पुलिस बल के निदेशक व राजा के वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में भी कार्य करना पड़ा। इन दायित्वों को पूरा करने के रूप में उन्होंने डेनमार्क की माप व बाँट प्रणाली में महत्त्वपूर्ण सुधार किए। सन् 1700 में उन्होंने ग्रेगेरियन कैलेंडर भी लागू कराया। इन सब दायित्वों के कारण उनका मौलिक वैज्ञानिक कार्य तो प्रभावित हुआ, पर समाज में व्यापक प्रभाव पड़ा।

उन्होंने डेनमार्क की राजकीय वेधशाला में अच्छे व प्रभावी उपकरण स्थापित करवाए। साथ ही शहर के बाहर एक निजी वेधशाला स्थापित करवाई। इसमें मैरीडियन सर्किल भी स्थापित करवाया, जो उनका अपना आविष्कार था। इसमें खगोलीय उपयोग के लिए माइक्रोमीटर, अनेक प्लानेटेरियम (तारामंडल), लेवलिंग उपकरण, अल्कोहल थर्मामीटर—जो अलग प्रकार का था और उसे उन्होंने जी.डी.फॉरेनहाइट को सन् 1708 में दिखलाया था—भी लगवाए। गियर व्हीलों में दाँतों के उपयोग के क्षेत्र में भी उन्होंने कार्य किया था। उनके कुछ प्रयोग, जैसे निश्चित तारों के पैरेलेक्स की खोज, असफल भी रहे।

दुर्भाग्यवश उनके निधन के बाद सन् 1728 में कोपेनहेगन में भयंकर आग लगी और बहुत कुछ नष्ट हो गया। रोमर की तमाम रचनाएँ व कृतित्व भी अग्नि की भेंट चढ़ गए और उनके कार्य का संकलन अब शेष नहीं है। फिर भी, उन्हें श्रेष्ठ वैज्ञानिक माना जाता है और 19 सितंबर, 1710 को उनका कोपेनहेगन में निधन हो गया।

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