जन्म: | बंगाल(भारत) |
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
रेवण(कृषि विशारद)
प्राचीन भारतीय कृषि विशारद रेवण के जन्म के बारे में ज्ञात तो नहीं है, पर उनकी रचनाओं में वराहमिहिर का उल्लेख तथा वराहमिहिर की रचनाओं में रेवण के सिद्धांत के उल्लेख से यह स्पष्ट होता है कि वे वराहमिहिर के समकालीन थे।
बंगाल की भूमि के अनुरूप कृषि सिद्धांतों के वर्णन के कारण यह माना जाता है कि वे बंगाल के निवासी थे।
रेवण कृषि-विज्ञानी होने के साथ-साथ समाज-विज्ञानी व मनोविज्ञानी भी थे।
वे कृषि को एक पारिवारिक या सामाजिक व्यवसाय मानते थे और खुद बैठकर दूसरों से खेती करवाने के स्थान पर परिवार जनों के साथ मिल-जुलकर खेती करने पर बल देते थे।
उस समय कृषि वर्षा पर आधारित थी। रेवण समय पर वर्षा के कृषि पर प्रभाव की व्याख्या करते थे। उन्होंने अगहन (नवंबर-दिसंबर) में वर्षा को हानिकारक और पूस (दिसंबर-जनवरी) में वर्षा को लाभदायक बताया है। माघ (जनवरी-फरवरी) में वर्षा को अत्यधिक लाभदायक बताया और कहा कि उससे पूरे देश को लाभ होता है। महीने ही नहीं, निश्चित दिन पर मूसलधार वर्षा या कम वर्षा के साल भर के परिणामों का भी आकलन किया और कहा कि आषाढ़ की पूर्णमासी के नौवें दिन यदि मूसलाधार वर्षा होगी तो पूरे वर्ष में सूखा पड़ेगा। यदि इस दिन कम वर्षा होगी तो पूरे साल पानी-ही-पानी होगा। इसी तरह उन्होंने साल भर रुक-रुककर वर्षा को कृषि के लिए लाभदायक बताया और कहा कि यदि सूर्यास्त के समय बादल न दिखाई दे तो किसान को अपने बैल तक बेचने पड़ सकते हैं। इसी तरह वर्षा और हवा के बहाव की दिशा का भी उन्होंने आकलन किया तथा कहा कि ज्येष्ठ (मई-जून) का सूखा और आषाढ़ की बारिश भरपूर पैदावार देती है।
वर्ष के प्रारंभ में उत्तर से पूर्व की ओर हवा का बहाव लाभदायक होता है। कार्तिक में पूर्णमासी के आस-पास हवा बादलों को उड़ा ले जाए तो लाभदायक सिद्ध होता है। किस फसल के लिए कितनी बार जुताई की जाए,
यह भी उन्होंने बतलाया। जुताई की दिशा के महत्त्व को भी उन्होंने समझाया। रोपाई-बुवाई के लिए उपयुक्त समय की भी उन्होंने व्याख्या की। कीड़े लगने पर राख के प्रयोग की सलाह दी।
कुल मिलाकर कृषि आचार्य रेवण ने विभिन्न फसलों के बोने, रोपने, गोड़ने, सींचने, उनमें लगनेवाले रोगों तथा उनके उपचार आदि सभी विषयों पर प्रकाश डाला। उनके अनेक सिद्धांत आज भी मान्य हैं।
जन्म की ही भाँति उनकी मृत्यु-तिथि की जानकारी भी उपलब्ध नहीं है।