( डॉक्टर मिराबिलिस)
जन्म: | 1214 ईस्वी. |
मृत्यु: | 1 जून 1292 ईस्वी. |
राष्ट्रीयता: | ब्रिटिश |
धर्म : | रोमन कैथोलिक |
शिक्षा: | University of Oxford |
प्रख्यात दार्शनिक, चिकित्सक, शिक्षा-सुधारक, वैज्ञानिक तथा क्रांतिकारी विचारों के लिए जेल की हवा तक खानेवाले रोजर बेकन का जन्म सन् 1214 में इंग्लैंड के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। उनके जन्म-स्थान के बारे में पुष्ट जानकारी नहीं है।
रोजर बेकन को प्रारंभ से पढ़ने-लिखने की अच्छी सुविधाएँ मिलीं, जिनका लाभ उठाते हुए उन्होंने ज्यामिति, अंकगणित, संगीत व खगोल-शास्त्र आदि का अध्ययन किया। साथ ही उन्होंने अरस्तू की रचनाओं का भी गहन अध्ययन किया। आगे की पढ़ाई के लिए वे ऑक्सफोर्ड गए, जहाँ उन्हें रॉबर्ट ग्रोसेटेस्टे के साथ कार्य करने का अवसर मिला। फिर वे पेरिस गए, जहाँ पर उन्हें पीटर पेरेग्रिनस की देखरेख में कार्य करने का अवसर मिला।
सन् 1247 के आस-पास उन्हें वापस आने का अवसर मिला। उन्होंने ऑक्सफोर्ड में अरस्तू के सिद्धांतों पर व्याख्यान दिए। घटनाओं के विवरण से ज्ञात होता है कि वे अकसर विवादों में घिर जाते थे। पर जल्दी ही उन्होंने अपने अंदर स्थित अथाह ऊर्जा को समेटकर सृजनात्मक कार्यों में लगाना प्रारंभ कर दिया। वे प्रायोगिक कार्यों में समय व धन दोनों लगाने लगे।
उन्होंने तमाम पुस्तकें एकत्रित कीं और तरह-तरह के उपकरणों व सारणियों का निर्माण किया। उन्होंने अपने सहायकों को अच्छा प्रशिक्षण दिया भी और दिलाया भी। उस काल में रॉबर्ट ग्रोसेटेस्टे व उनके शिष्य नए ज्ञान की विभिन्न शाखाओं की स्थापना में लगे थे। वे पुराने यूनानी ज्ञान को पश्चिमी जगत् तक पहुँचाने का बीड़ा भी उठाए हुए थे। इस क्रम में रोजर बेकन ने भी भाषाओं, ऑप्टिक्स, कीमियागीरी (अल्कैमी) का अध्ययन किया।
उन्होंने गणित व खगोलशास्त्र का भी आगे अध्ययन किया। उस परिवर्तन के काल में लोग बहुत जल्दी अपनी नई अवधारणा प्रस्तुत कर डालते थे। बेकन को इससे चिढ़ थी और वे अपने प्रयोगों द्वारा उनका सत्यापन या खंडन करने पर बल देते थे। उनकी यह शुरुआत 300 वर्षों बाद में एक आम प्रक्रिया बन गई। उन्होंने प्रयोग करने हेतु अनेक विधियाँ विकसित कीं। उन्होंने अपनी प्रयोगशाला भी तैयार की, जिसमें कीमियागीरी के लिए प्रयोगों की व्यवस्था थी। साथ ही लेंसों व दर्पणों के प्रयोग द्वारा विभिन्न अवलोकनों की भी व्यवस्था थी।
उन्होंने प्रकाश की प्रकृति व इंद्रधनुष-निर्माण को समझने के लिए अनेक प्रयोग किए। उन्होंने अनेक प्रयोगों की योजना बनाई। उनमें से अनेक हो ही नहीं पाए। उदाहरण के तौर पर, उन्होंने ताँबे की चादर का बना एक गुब्बारा हवा में उड़ाने की योजना तैयार की, जिसमें अंदर तरल पदार्थ जल रहा हो। उन्हें लगा कि यह ऐसे ही हवा में उड़ेगा जैसे कि हलकी वस्तुएँ पानी में तैरती हैं। उन्होंने हवा में उड़ने-उड़ाने के संबंध में अनेक कल्पनाएँ कीं।
गन पाउडर -
सन् 1242 में ही रोजर बेकन ने बारूद बनाने की दिशा में उपयोगी ज्ञान दिया। उनका मानना था कि भविष्य में यह शक्ति का स्रोत होगा। यह युद्धों में अति उपयोगी सिद्ध होगा।
ऑप्टिक्स -
रोजर बेकन ने न केवल लेंसों व दर्पणों द्वारा प्रकाश के परावर्तन, अपवर्तन आदि का अध्ययन किया बल्कि चश्मे की भी रूपरेखा तैयार की, जो बाद में आम उपयोग की चीज बन गया। उन्होंने पिन होल कैमरा भी तैयार किया, जिसका उपयोग वे सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य को निहारने में किया करते थे।
नया मोड़ -
आज उपर्युक्त बातें आम लगती हैं, पर उस काल में तात्कालिक मान्यताओं का खंडन, नए विचारों से लोगों को सहमत कराना, अपनी रुचियों के अनुसार लोगों को ढालना एक अत्यंत कठिन कार्य था। इस कारण उन्हें घोर अपमान व निराशा का भी सामना करना पड़ा।
उन्होंने इसका उपाय भी किया और विश्वविद्यालय की गतिविधियों से पूरी तरह कटकर अपने घर पर एकांत चिंतन व अध्ययन करते रहे। उनका मानना था कि एकांत चिंतन से दैवी ज्ञान प्राप्त होता है। दूसरी ओर, बाहरी निरीक्षणों व प्रयोग से जो ज्ञान प्राप्त होता है वह व्यावहारिक ज्ञान होता है तथा पहले का पूरक होता है। सतत साधना से रोजर बेकन में असाधारण गुण उत्पन्न हो गए थे और इस कारण अनेक समकालीन विद्वानों ने उनके करिश्माई व्यक्तित्व का भी उल्लेख अपने लेखन में किया था। निश्चय ही उनके नए विचार व नए-नए प्रयोग इस काल मे अजूबे रहे होंगे। साथ ही उन्होंने कीमियागीरी में भी महारत प्राप्त की थी। वे इसे श्रेष्ठ विज्ञान बताते थे, क्योंकि इससे उस काल में उपयोगी वस्तुएँ तैयार करने का प्रयास किया जाता था।
उनकी कल्पना-शक्ति अथाह थी। उन्होंने उस काल में ही यांत्रिक शक्ति द्वारा स्थल, जल व वायु यातायात की कल्पना कर ली थी। पनडुब्बी भी उनकी कल्पना-शक्ति के दायरे से बाहर नहीं थी। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया था कि दहन के लिए वायु अनिवार्य है और लेंसों के माध्यम से व्यक्ति बेहतर तरीके से देख सकता है। इस संबंध में उन्होंने असंख्य प्रयोग कर डाले। वे प्रयोगों पर अधिक जोर देते थे और कोरे अनुमानों को समय की बरबादी मानते थे।
सामाजिक बहिष्कार व कैद -
इतने कर्मठ व महान् वैज्ञानिक को उस समय के यूरोपीय समाज में भारी प्रतारणा का सामना करना पड़ा था। उनके अनेक प्रयोगों के परिणाम तमाम ईसाई मान्यताओं पर चोट पहुँचाते थे।
उपर्युक्त परिस्थितियों के परिणामस्वरूप उन्होंने अपना बहुत सारा अनुसंधान कार्य गोपनीय तरीके से किया था। उन्होंने स्कूलों के पाठ्यक्रमों में विज्ञान विषय शामिल करने के लिए भी बहुत जोर लगाया। बीच में एक पोप, जिनका नाम क्लेमेंट चतुर्थ था, ने उनके कार्यों से सहानुभूति दिखाई; पर यह अनुकूल परिस्थिति अधिक दिनों नहीं रह पाई। शीघ्र ही उनके नए विचारों से तत्कालीन ईसाई समाज घायल होने लगा और सन् 1277 से 1279 के मध्य उन्हें कैद में डाल दिया गया।
उन्हें कुल कितनी अवधि तक बंदीगृह में रहना पड़ा; यह ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है। सन् 1277 से 1291 के मध्य उन्हें विश्वविद्यालय के मामलों से दूर ही रहना पड़ा। पर वे लगातार लिखते रहे। उनकी तीन रचनाएँ ‘ओपस मेजर्स’ (बड़ा कार्य), ‘ओपस माइनर्स’ (छोटा कार्य) तथा ‘ओपस टर्शियम’ (तृतीयक कार्य) अति लोकप्रिय हुईं। वे एक विश्वकोश भी तैयार करना चाहते थे, पर नहीं कर पाए। रोजर बेकन को पहला आधुनिक वैज्ञानिक भी माना जाता है। 1 जून, 1292 को ऑक्सफोर्ड में उनका निधन हो गया।