श्रीपति

श्रीपति

श्रीपति

जन्म: रोहिणी खंड, महाराष्ट्र - 1019 ईस्वी.
मृत्यु: 1066 ईस्वी.
पिता: नागदेव
किताबें | रचनाएँ : ध्रुवमानस

ग्यारहवीं शताब्दी के प्रमुख गणितज्ञ श्रीपति, जो लल्लाचार्य के अनुयायी थे, का जन्म सन् 1019 के आस-पास रोहिणी खंड, महाराष्ट्र में हुआ था।

उन्होंने अपनी प्रमुख रचना ‘धिकोटि दिकर्ण’, जो सन् 1039 में पूरी हुई थी, में सूर्य ग्रहण व चंद्रग्रहण पर 20 छंद लिखे। इसके अतिरिक्त उनकी रचना ‘ध्रुवमानस’ सन् 1056 में तैयार हुई थी। यह भी ग्रहों से संबंधित जानकारियों, ग्रहणों आदि पर केंद्रित है। इसमें 105 छंद हैं।

उनकी रचना ‘सिद्धांत शेखर’ में उन्नीस अध्याय हैं तथा इनमें खगोल विद्या का वर्णन है। अर्थमिति पर उन्होंने ‘गणित तिलक’ नामक रचना तैयार की थी, जिसमें 125 छंद हैं। ‘सिद्धांत शेखर’ एक विस्तृत ग्रंथ है, जिसमें श्रीपति ने तेरहवें अध्याय में अर्थमिति, क्षेत्रमिति तथा छाया गणना पर 55 छंद हैं। चौदहवें अध्याय में बीजगणित पर 37 छंद हैं, जो बीजगणित के विभिन्न नियमों का वर्णन करते हैं। पंद्रहवाँ अध्याय गोलों पर है। ‘सिद्धांत शेखर’ में ही तीसरे, चौथे व पाँचवें अध्याय में जोड़ने, घटाने, गुणा करने, भाग करने, वर्ग करने, वर्गमूल निकालने, धनात्मक व ऋणात्मक मात्राओं के घनमूल के चिह्नों आदि के भी नियम दिए हैं।

उन्होंने चातुर्थिक समीकरण को हल करने का भी नियम बताया है। ज्योतिष-विज्ञान के क्षेत्र में श्रीपति ने असाधारण योगदान किया है। उनकी रचना ‘ज्योतिष रत्नमाला’ 20 अध्यायों वाली एक पुस्तक है। इस रचना का आधार लल्लाचार्य का ‘ज्योतिष रत्नकोष’ है। श्रीपति ने मराठी में भी अपनी रचनाएँ लिखीं, ताकि आम आदमी उन्हें समझ सके।

श्रीपति ने ज्योतिष-शास्त्र पर जातक पद्धति की भी रचना की, जो श्रीपति पद्धति भी कहलाती है। इसमें आठ अध्याय हैं और इनमें ग्रहों की शक्ति, खगोलीय स्थानों का आकलन प्रभावी रूप से दरशाया है। श्रीपति ने जन्म-निर्धारण के विज्ञान व ज्योतिष पर वंशावली-शास्त्र की रचना की। इसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया था कि किसी व्यक्ति के जन्म के समय उसके ग्रहों की स्थितियों के आधार पर उसका भविष्य तय किया जा सकता है। ज्योतिष-शास्त्र की एक प्रमुख रचना ‘दैवजन वल्लभ’ के रचनाकार के बारे में भ्रम है। कोई इसे वराह मिहिर की रचना मानता है तो कोई श्रीपति की और किसी अन्य की। इससे श्रीपति के स्तर का अनुमान लगाया जा सकता है। अनुमान के अनुसार, सन् 1066 में श्रीपति का निधन हो गया था।

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