Shlok Gyan

Total Shlokas:- 657

Shlok-gyan--239

चिन्तया जायते दुःखं नान्यथेहेति निश्चयी।

तया हीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गलितस्पृहः॥

-भावार्थ :

चिंता से ही दुःख उत्पन्न होते हैं किसी अन्य कारण से नहीं, ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला, चिंता से रहित होकर सुखी, शांत और सभी इच्छाओं से मुक्त हो जाता है ।

Shlok-gyan--240

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।

 -भावार्थ :

यह आत्मा न तो कभी शस्त्र द्वारा खण्ड खण्ड की जा सकती है, न अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है, न जल द्वारा भिगोया या वायु द्वारा सुखाया जा सकता है।

Shlok-gyan--241

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।

तस्मादपरिहार्येथे न त्वं शोचितुमर्हसि।।

 -भावार्थ :

जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के बाद पुनर्जन्म भी निश्चित है। अतः अपने अपरिहार्य कर्तव्यपालन में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए।

Shlok-gyan--242

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।

सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

-भावार्थ :

विषयों (वस्तुओं) के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे आसक्ति हो जाती है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है।

Shlok-gyan--243

शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्‌ ।

कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः ॥

-भावार्थ :

जो साधक इस मनुष्य शरीर में, शरीर का नाश होने से पहले-पहले ही काम-क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वही पुरुष योगी है और वही सुखी है ।

Shlok-gyan--244

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।

अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥

-भावार्थ :

सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो।

Shlok-gyan--2451

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

भावार्थ :-

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, कर्म करना तुम्हारा अधिकार है परन्तु फल की इच्छा करना तुम्हारा अधिकार नहीं है| कर्म करो और फल की इच्छा मत करो अर्थात फल की इच्छा किये बिना कर्म करो क्यूंकि फल देना मेरा काम है |

Shlok-gyan--246

त्रिभिर्गुण मयै र्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत।

मोहितं नाभि जानाति मामेभ्य परमव्ययम् ॥

भावार्थ :-

श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे पार्थ! सत्व गुण, रजोगुण और तमोगुण, सारा संसार इन तीन गुणों पर ही मोहित रहता है| सभी इन गुणों की इच्छा करते हैं लेकिन मैं (परमात्मा) इन सभी गुणों से अलग, श्रेष्ठ, और विकार रहित हूँ |

Shlok-gyan--247

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय |

सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ||

भावार्थ :-

श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन सफलता और असफलता की आसक्ति को त्यागकर सम्पूर्ण भाव से समभाव होकर अपने कर्म को करो| यही समता की भावना योग कहलाती है |

Shlok-gyan--248

यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति |

श्रुभाश्रुभपरित्यागी भक्तिमानयः स मे प्रियः ||

भावार्थ :-

जो न कभी हर्षित होता है, न शोक करता है, जो न पछताता है, न इच्छा करता है, तथा शुभ तथा अशुभ दोनों प्रकार की वस्तुओं का परित्याग कर देता है, ऐसा भक्त मुझे अत्यन्त प्रिय है |