Shlok Gyan

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Shlok-gyan--506

न बाहूत्क्षेपकं कञ्चिच्छब्दयेदल्पसम्भ्रमे ।

अच्छटादि तु कर्तव्यमन्यथा स्यादसंवृतः ॥

भावार्थ :-

उतावली में भी जोर-जोर से हाथ उठाकर तथा ऊंची आवाज देकर किसी को न पुकारे । चुटकी या उसी प्रकार की हल्की आवाज देनी चाहिए । ऐसा न करने पर व्यक्ति का असंयमित होना समझा जाना चाहिए ।

Shlok-gyan--507

सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् ।

वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः ॥

भावार्थ :-

किसी कार्य को बिना सोचे-विचारे अनायास नहीं करना चाहिए । विवेकहीनता आपदाओं का परम या आश्रय स्थान होती है । अच्छी प्रकार से गुणों की लोभी संपदाएं विचार करने वाले का स्वयमेव वरण करती हैं, उसके पास चली आती हैं ।

Shlok-gyan--508

वाच्यावाच्यं प्रकुपितो न विजानाति कर्हिचित् ।

नाकार्यमस्ति क्रुद्धस्य नावाच्यं विद्यते क्वचित् ॥

भावार्थ :-

गुस्से से भरा मनुष्य को किसी भी समय क्या कहना चाहिए और क्या नहीं का ज्ञान नहीं रहता है । ऐसे व्यक्ति के लिए कुछ भी अकार्य नहीं होता है और न ही कहीं अवाच्य रह जाता है ।

Shlok-gyan--509

यः समुत्पतितं क्रोधं क्षमयैव निरस्यति ।

यथोरगस्त्वचं जीर्णां स वै पुरुष उच्यते ॥

भावार्थ :-

जिस प्रकार सांप अपनी जीर्ण-शीर्ण हो चुकी त्वचा को शरीर से उतार फेंकता है, उसी प्रकार अपने सिर पर चढ़े क्रोध को क्षमाभाव के साथ छोड़ देता है वही वास्तव में पुरुष है, यानी गुणों का धनी श्लाघ्य व्यक्ति है ।

Shlok-gyan--510

कल्याण्यै प्रणतां वृद्धयै सिद्धयै कुर्मो नमो नमः ।

नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः ॥

भावार्थ :-

शरणागतों का कल्याण करनेवाली वृद्धि एवं सिद्धि रूपा देवी को हम बारंबार नमस्कार करते हैं । नैर्ऋती राजाओं की लक्ष्मी तथा शर्वाणि-स्वरूपा आप जगदम्बा को बार-बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--511

दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै ।

ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ॥

भावार्थ :-

दुर्गा, दुर्गपारा, सारा, सर्वकारिणी, ख्याति, कृष्णा और धूम्रा देवी को सर्वदा नमस्कार है ।

Shlok-gyan--512

सर्वाधिष्ठानरूपायै कूटस्थायै नमो नमः ।

अर्धमात्रार्थभूतायै हृल्लेखायै नमो नमः ॥

भावार्थ :-

समस्त संसार की एकमात्र अधिष्ठात्री तथा कूटस्थरूपा देवी को बार-बार नमस्कार है । ब्रह्मानन्दमयी अर्धमात्रात्मिका एवं हृल्लेखारूपिणी देवी को बार-बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--513

नमो देव्यै प्रकृत्यै च विधात्र्यै सततं नमः ।

कल्याण्यै कामदायै च वृद्धयै सिद्धयै नमो नमः ॥

भावार्थ :-

प्रकृति एवं विधात्री देवी को मेरा निरन्तर नमस्कार है । कल्याणी, कामदा, वृद्धि तथा सिद्धि देवी को बार-बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--514

सच्चिदानन्दरूपिण्यै संसारारणये नमः ।

पञ्चकृत्यविधात्र्यै ते भुवनेश्यै नमो नमः ॥

भावार्थ :-

सच्चिदानन्दरूपिणी तथा संसार की योनिस्वरूपा देवी को नमस्कार है । आप पंचकृत्यविधात्री तथा श्रीभुवनेश्वरी को बार-बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--515

नमो देवी महाविद्ये नमामि चरणौ तव ।

सदा ज्ञानप्रकाशं में देहि सर्वार्थदे शिवे ॥

भावार्थ :-

हे देवी ! आपको नमस्कार है । हे महाविद्ये ! मैं आपके चरणों में बार-बार नमन करता हूँ । हे सर्वार्थदायिनी शिवे ! आप मुझे सदा ज्ञान रूपी प्रकाश प्रदान कीजिये ।