Shlok Gyan

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Shlok-gyan--516

ऊँ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्यप्रदायिने ।

दुष्टारिष्टविनाशाय पराय परमात्मने ॥

भावार्थ :-

सम्पूर्ण सौख्य प्रदान करनेवाले सच्चिदानन्दस्वरूप विघ्नराज गणेशको नमस्कार है । जो दुष्ट अरिष्ट ग्रहोंका नाश करनेवाले परात्परा परमात्मा हैं, उन गणपति को नमस्कार है ।

Shlok-gyan--517

सिद्धिबुद्धि पते नाथ सिद्धिबुद्धिप्रदायिने ।

मायिन मायिकेभ्यश्च मोहदाय नमो नमः ॥

भावार्थ :-

नाथ ! आप सिद्धि और बुद्धि के पति हैं तथा सिद्धि और बुद्धि प्रदान करने वाले हैं । माया के अधिपति तथा मायावियों को मोह मे डालने वाले हैं । आपको बारम्बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--518

लम्बोदराय वै तुभ्यं सर्वोदरगताय च ।

अमायिने च मायाया आधाराय नमो नमः ॥

भावार्थ :-

आप लंबोदर हैं, जठरानल रूप मे सबके उदर मे निवास करते हैं, आप पर किसी की माया नही चलती और आप ही माया के आधार हैं । आपको बार-बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--519

त्रिलोकेश गुणातीत गुणक्षोम नमो नमः त्रैलोक्यपालन विभो विश्वव्यापिन् नमो नमः ॥

भावार्थ :-

हे त्रैलोक्य के स्वामी ! हे गुणातीत ! हे गुणक्षोभक ! आपको बार-बार नमस्कार है । हे त्रिभुवनपालक ! हे विश्वव्यापिन् विभो ! आपको बार-बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--520

मायातीताय भक्तानां कामपूराय ते नमः ।

सोमसूर्याग्निनेत्राय नमो विश्वम्भराय ते ॥

भावार्थ :-

मायातीत और भक्तों की कामना-पूर्ति करनेवाले आपको नमस्कार है । चन्द्र, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं और जो विश्व का भरण करनेवाले हैं, उन आपको नमस्कार है ।

Shlok-gyan--521

जय विघ्नकृतामाद्या भक्तनिर्विघ्नकारक ।

अविघ्न विघ्नशमन महाविध्नैकविघ्नकृत् ॥

भावार्थ :-

हे विघ्नकर्ताओं के कारण ! हे भक्तों के निर्विघ्न-कारक, विघ्नहीन, विघ्नविनाशन, महाविघ्नों के मुख्य विघ्न करनेवाले ! आपकी जय हो ।

Shlok-gyan--522

बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे ।

मूढत्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥

भावार्थ :-

हे देवि ! आप मुझे बुद्धि दें, कीर्ति दें, कवित्वशक्ति दें और मेरी मूढता का नाश करें । आप मुझ शरणागत की रक्षा करें ।

Shlok-gyan--523

जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला ।

मूढ़ता हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥

भावार्थ :-

आप मूर्खों की मूर्खता का नाश करती हैं और भक्तों के लिये भक्तवत्सला हैं । हे देवि ! आप मेरी मूढ़ता को हरें और मुझ शरणागत की रक्षा करें ।

Shlok-gyan--524

सौम्यक्रोधधरे रुपे चण्डरूपे नमोऽस्तु ते ।

सृष्टिरुपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम् ॥

भावार्थ :-

सौम्य क्रोध धारण करनेवाली, उत्तम विग्रहवाली, प्रचण्ड स्वरूपवाली हे देवि ! आपको नमस्कार है । हे सृष्टिस्वरूपिणि आपको नमस्कार है । आप मुझ शरणागत की रक्षा करें ।

Shlok-gyan--525

घोररुपे महारावे सर्वशत्रुभयङ्करि ।

भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥

भावार्थ :-

भयानक रूपवाली, घोर निनाद करनेवाली, सभी शत्रुओं को भयभीत करनेवाली तथा भक्तों को वर प्रदान करनेवाली है देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें ।