Shlok Gyan

Total Shlokas:- 657

Shlok-gyan--484

लक्ष्मि लज्जे महाविद्ये श्रद्धे पुष्टीस्वधे ध्रुवे ।

महारात्रि महाऽविद्ये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

भावार्थ :-

लक्ष्मी, लज्जा, महाविद्या, श्रद्धा, पुष्टि, स्वधा, ध्रुवा, महारात्रि तथा महा अविद्यारूपा नारायणि ! आपको नमस्कार है ।

Shlok-gyan--485

नमस्ते परमेशानि ब्रह्यरूपे सनातनी ।

सुरासुरजगद्वन्द्ये कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥

भावार्थ :-

ब्रह्यरूपा सनातनी परमेश्वरी ! आपको नमस्कार है । देवताओं, असुरों और सम्पूर्ण विश्व द्धारा वन्दित कामेश्वरी ! आपको नमस्कार है ।

Shlok-gyan--486

रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै नमो नमः ।

ज्योत्स्नायै चेन्दुरुपिण्यै सुखायै सततं नमः ॥

भावार्थ :-

रौद्रा को नमस्कार है । नित्या, गौरी एवं धात्री को बारंबार नमस्कार है । ज्योत्स्नामयी, चन्द्ररूपिणी एवं सुखस्वरूपा देवी को सतत प्रणाम है ।

Shlok-gyan--488

गजाननाय पूर्णाय साङ्ख्यरूपमयाय ते ।

विदेहेन च सर्वत्र संस्थिताय नमो नमः ॥

भावार्थ :-

हे गणेश्वर ! आप गज के समान मुख धारण करने वाले, पूर्ण परमात्मा और ज्ञानस्वरूप हैं । आप निराकार रूप से सर्वत्र विद्यमान हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--489

अमेयाय च हेरम्ब परशुधारकाय ते ।

मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः ॥

भावार्थ :-

हे हेरम्ब ! आपको किन्ही प्रमाणों द्वारा मापा नहीं जा सकता, आप परशु धारण करने वाले हैं, आपका वाहन मूषक है । आप विश्वेश्वर को बारम्बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--490

अनन्तविभायैव परेषां पररुपिणे ।

शिवपुत्राय देवाय गुहाग्रजाय ते नमः ॥

भावार्थ :-

आपका वैभव अनन्त है, आप परात्पर हैं, भगवान् शिव के पुत्र तथा स्कन्द के बड़े भाई हैं, आप देव को नमस्कार है ।

Shlok-gyan--491

पार्वतीनन्दनायैव देवानां पालकाय ते ।

सर्वेषां पूज्यदेहाय गणेशाय नमो नमः ॥

भावार्थ :-

जो देवी पार्वती को आनन्दित करने वाले, देवताओं के रक्षक हैं और जिनका श्रीविग्रह सबके लिए पूजनीय है, उन आप गणेशजी को बारम्बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--492

स्वनन्दवासिने तुभ्यं शिवस्य कुलदैवत ।

विष्णवादीनां विशेषेण कुलदेवताय ते नमः ॥

भावार्थ :-

भगवान शिव के कुलदेवता आप अपने स्वरूपभूत स्वानन्द-धाम मे निवास करनेवाले हैं। विष्णु आदी देवताओं के तो आप विशेषरूप से कुलदेवता हैं । आपको नमस्कार है ।

Shlok-gyan--493

योगाकाराय सर्वेषां योगशान्तिप्रदाय च ।

ब्रह्मेशाय नमस्तुभ्यं ब्रह्मभूतप्रदाय ते ॥

भावार्थ :-

आप योगस्वरूप एवं सबको योगजनित शांति प्रदान करने वाले हैं । ब्रह्म भाव की प्राप्ति करानेवाले आप ब्रह्मेश्वर को नमस्कार है ।

Shlok-gyan--494

छायां ददाति शशिचन्दनशीतलां यः सौगन्धवन्ति सुमनांसि मनोहराणि ।

स्वादूनि सुन्दरफलानि च पादपं तं छिन्दन्ति जाङ्गलजना अकृतज्ञता हा ॥

भावार्थ :-

जो वृक्ष चंद्रकिरणों तथा चंदन के समान शीतल छाया प्रदान करता है, सुन्दर एवं मन को मोहित करने वाले पुष्पों से वातावरण सुगंधमय बना देता है, आकर्षक तथा स्वादिष्ट फलों को मानवजाति पर न्यौछावर करता है, उस वृक्ष को जंगली असभ्य लोग काट डालते हैं । अहो मनुष्य की यह कैसी अकृतज्ञत है ।