Shlok Gyan

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Shlok-gyan--536

अतितॄष्णा न कर्तव्या तॄष्णां नैव परित्यजेत्।

शनै: शनैश्च भोक्तव्यं स्वयं वित्तमुपार्जितम् ॥

भावार्थ :-

अधिक इच्छाएं नहीं करनी चाहिए पर इच्छाओं का सर्वथा त्याग भी नहीं करना चाहिए। अपने कमाये हुए धन का धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिये ।

Shlok-gyan--537

पातितोऽपि कराघातै-रुत्पतत्येव कन्दुकः।

प्रायेण साधुवृत्तानाम-स्थायिन्यो विपत्तयः॥

भावार्थ :-

हाथ से पटकी हुई गेंद भी भूमि पर गिरने के बाद ऊपर की ओर उठती है, सज्जनों का बुरा समय अधिकतर थोड़े समय के लिए ही होता है ।

Shlok-gyan--538

न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति।

अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्॥

भावार्थ :-

कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता है इसलिए कल के करने योग्य कार्य को आज कर लेने वाला ही बुद्धिमान है ।

Shlok-gyan--539

नारिकेलसमाकारा दृश्यन्तेऽपि हि सज्जनाः।

अन्ये बदरिकाकारा बहिरेव मनोहराः॥

भावार्थ :-

सज्जन व्यक्ति नारियल के समान होते हैं, अन्य तो बदरी फल के समान केवल बाहर से ही अच्छे लगते हैं ।

Shlok-gyan--540

एकदन्तं महाकायं तप्तकाञ्चनसन्निभम् लम्बोदरं विशालाक्षं वन्देऽहं गणनायकम् ॥

भावार्थ :-

एक दाँतवाले, महान् शरीरवाले, तपाये गये सुवर्ण के समान कान्तिवाले, लम्बे पेटवाले और बड़ी-बड़ी आँखोंवाले गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।

Shlok-gyan--541

मात्रे पित्रे च सर्वेषां हेरम्बाय नमो नमः ।

अनादये च विघ्नेश विघ्नकर्त्रे नमो नमः ॥

भावार्थ :-

सबके माता और पिता हेरम्ब को बारम्बार नमस्कार है । हे विघ्नेश्वर ! आप अनादि और विघ्नों के भी जनक हैं , आपको बार-बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--542

लम्बोदरं महावीर्यं नागयज्ञोपशोभितम् ।

अर्धचन्द्रधरं देवं विघ्नव्यूहविनाशनम् ॥

भावार्थ :-

जो महापराक्रमी, लम्बोदर, सर्पमय यज्ञोपवीत से सुशोभित, अर्धचन्द्रधारी और विघ्न-समूह का विनाश करनेवाले हैं, उन गणपतिदेव की मैं वन्दना करता हूँ ।

Shlok-gyan--543

गुरुदराय गुरवे गोप्त्रे गुह्यासिताय ।

गोप्याय गोपिताशेषभुवनाय चिदात्मने ॥

भावार्थ :-

जो भारी पेटवाले, गुरु, गोप्ता (रक्षक), गूढ़स्वरुप तथा सब ओर से गौर हैं, जिनका स्वरूप और तत्त्व गोपनीय हैं तथा जो समस्त भुवनों के रक्षक हैं, उन चिदात्मा आप गणपति को नमस्कार है ।

Shlok-gyan--544

विश्वमूलाय भव्याय विश्वसृष्टिकराय ते ।

नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुणिडने ॥

भावार्थ :-

जो विश्व के मूल कारण, कल्याणस्वरूप, संसार की सृष्टि करनेवाले, सत्यरूप, सत्यपूर्ण तथा शुण्डधारी हैं, उन आप गणेश को बारम्बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--545

अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः ।

उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम्॥

भावार्थ :-

निम्न कोटि के लोग केवल धन की इच्छा रखते हैं, उन्हें सम्मान से कोई मतलब नहीं होता है । जबकि एक मध्यम कोटि का व्यक्ति धन और मान दोनों की इच्छा रखता है । और उत्तम कोटि के लोगों के लिए सम्मान हीं सर्वोपरी होता है सम्मान धन से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है ।