Shlok Gyan

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Shlok-gyan--437

लोभात्क्रोधः प्रभवति लोभात्कामः प्रजायते ।

लोभान्मोहश्च नाशश्च लोभः पापस्य कारणम् ॥

भावार्थ :-

लोभ से क्रोध का भाव उपजता है, लोभ से कामना या इच्छा जागृत होती है, लोभ से ही व्यक्ति मोहित हो जाता है, यानी विवेक खो बैठता है, और वही व्यक्ति के नाश का कारण बनता है । वस्तुतः लोभ समस्त पाप का कारण है ।

Shlok-gyan--3381

एवं च ते निश्चयमेतु बुद्धिर्दृष्ट्वा विचित्रं जगतः प्रचारम् ।

सन्तापहेतुर्न सुतो न बन्धुरज्ञाननैमित्तिक एष तापः ॥

भावार्थ :-

इस संसार की विचित्र गति को देखकर आपकी बुद्धि यह निश्चित समझे कि मनुष्य के मानसिक कष्ट या संताप के लिए उसका पुत्र अथवा बंधु कारण नहीं है, बल्कि दुःख का असली निमित्त तो अज्ञान है ।

Shlok-gyan--3391

न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति ।

हविषा कृष्णवर्त्मेव भूय एव अभिवर्तते ॥

भावार्थ :-

मनुष्य की इच्छा कामनाओं के अनुरूप सुखभोग से नहीं तृप्त होती है । यानी व्यक्ति की इच्छा फिर भी बनी रहती है । असल में वह तो और बढ़ने लगती है, ठीक वैसे ही जैसे आग में इंधन डालने से वह अधिक प्रज्वलित हो उठती है ।

Shlok-gyan--3401

संसारकटुवृक्षस्य द्वे फले अमृतोपमे ।

सुभाषितरसास्वादः सङ्गतिः सुजने जने ॥

भावार्थ :-

संसार रूपी कड़ुवे पेड़ से अमृत तुल्य दो ही फल उपलब्ध हो सकते हैं, एक है मीठे बोलों का रसास्वादन और दूसरा है सज्जनों की संगति ।

Shlok-gyan--3411

वेदान्तवेद्यं जगतामधीशं देवादिवन्द्यं सुकृतैकगम्यम् ।

स्तम्बेरमास्यं नवचन्द्रचूडं विनायकं तं शरणं प्रपद्ये ॥

भावार्थ :-

मैं उन भगवान् विनायक की शरण ग्रहण करता हूँ, जो वेदान्त में वर्णित परब्रह्म हैं, त्रिभुवन के अधिपति हैं, देवता-सिद्धादि से पूजित हैं, एकमात्र पुण्य से ही प्राप्त होते हैं और जिन गजानन के भालपर द्धितीया की चन्द्ररेखा सुशोभित रहती है ।

Shlok-gyan--3421

नमामि देवं द्धिरदाननं तं यः सर्वविघ्नं हरते जनानाम् ।

धर्मार्थकामांस्तनुतेऽखिलानां तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय ॥

भावार्थ :-

मैं उन गजाननदेव को नमस्कार करता हूँ, जो लोगों के समस्त विघ्नों का अपहरण करते हैं । जो सबके लिए धर्म, अर्थ और कामका विस्तार करते हैं, उन विघ्नविनाशन गणेश को नमस्कार है ।

Shlok-gyan--438

द्धिरदवदन विषमरद वरद जयेशान शान्तवरसदन ।

सदनवसादन सादनमन्तरायस्य रायस्य ॥

भावार्थ :-

हाथी के मुख वाले, एकदन्त, वरदायी, ईशान, परमशान्ति एवं समृद्धि के आश्रय, सज्जनों के क्लेशहर्ता और विघ्नविनाशक हे गणपति ! आपकी जय हो ।

Shlok-gyan--439

सर्वविघ्नहरं देवं सर्वविघ्नविवर्जितमम् सर्वसिद्धिप्रदातारं वन्देऽहं गणनायकम् ॥

भावार्थ :-

सभी प्रकार के विघ्नों का हरण करनेवाले, सभी प्रकार के विघ्नों से रहित तथा सभी प्रकार की सिद्धियों को देनेवाले भगवान् गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।

Shlok-gyan--440

विश्वमूलाय भव्याय विश्वसृष्टिकराय ते ।

नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुण्डिने ॥

भावार्थ :-

जो विश्व के मूल कारण, कल्याणस्वरूप संसार की सृष्टि करनेवाले, सत्यरूप, सत्यपूर्ण तथा शुण्डधारी हैं, उन आप गणेश्वर को बारम्बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--4411

एकदन्ताय शुद्घाय सुमुखाय नमो नमः ।

प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने ॥

भावार्थ :-

जिनके एक दाँत और सुन्दर मुख है, जो शरणागत भक्तजनों के रक्षक तथा प्रणतजनों की पीड़ा का नाश करनेवाले हैं, उन शुद्धस्वरूप आप गणपति को बारम्बार नमस्कार है ।