अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते |
अविश्वस्ते विश्वसति मूढचेता नराधमः ||
भावार्थ :-
जो व्यक्ति बिना बुलाये आ धमके और कुछ कहने की आज्ञा न दिये जाने पर भी बहुत अनर्गल बातें करता हो , और अविश्वसनीय व्यक्तियों के ऊपर पर विश्वास करता हो. ऐसा व्यक्ति मूर्ख और दुष्ट प्रकृति का व्यक्ति कहलाता है |
अमित्रं कुरुते मित्रं मित्रं द्वेष्टि हिनस्ति च |
कर्म चारभते दुष्टं तमाहुर्मूढचेतसम् ||
भावार्थ :-
जो व्यक्ति मित्र बनाने के लिये अयोग्य व्यक्ति को अपना मित्र बनाता है तथा मित्र बनाने के के योग्य व्यक्तियों से द्वेष करता है और ऐसे कर्म करता है जिस से उन की हानि हो या उन का नाश हो जाय, ऐसे व्यक्ति को मूर्ख कहा जाता है |
आकाशात् पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम् |
सर्वदेवनमस्कार: केशवं प्रति गच्छति ||
भावार्थ :-
आकाश से गिरा हुआ पानी जैसे समुद्र में जाता है, उसी प्रकार किसी भी देवता को किया गया नमस्कार श्रीहरि (श्रीकृष्ण) को जाता है॥
न कश्चित् कस्यचिन्मित्रं न कश्चित् कस्यचित् रिपु:।
अर्थतस्तु निबध्यन्ते मित्राणि रिपवस्तथा॥
भावार्थ :-
न कोई किसी का मित्र है और न शत्रु, कार्यवश ही लोग मित्र और शत्रु बनते हैं॥
स हि भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला।
मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान् को दरिद्रा:॥
भावार्थ :-
जिसकी कामनाएँ विशाल हैं, वह ही दरिद्र है। मन से संतुष्ट रहने वाले के लिए कौन धनी है और कौन निर्धन॥
मातृवत् परदारेषु परद्रव्याणि लोष्ठवत्।
आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति सः पण्डितः॥
भावार्थ :-
दूसरे की पत्नी को अपनी माँ की तरह, दूसरे के धन को मिट्टी के समान, सभी को अपने जैसा जो देखता है वो ही पंडित (ज्ञानी) है।
पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः।
पितरि प्रीतिमापन्ने सर्वाः प्रीयन्ति देवता।।
भावार्थ :-
पिता ही धर्म है, पिता ही स्वर्ग है और पिता ही सबसे श्रेष्ठ तपस्या है। पिता के प्रसन्न हो जाने पर सारे देवता प्रसन्न हो जाते हैं।
क्रोधमूलो मनस्तापः क्रोधः संसारबन्धनम्।
धर्मक्षयकरः क्रोधः तस्मात्क्रोधं परित्यज॥
भावार्थ :-
क्रोध मन के दुःख का प्राथमिक कारण है, क्रोध संसार बंधन का कारण है, क्रोध धर्म का नाश करने वाला है, इसलिए क्रोध को त्याग दें।
आहारनिद्राभय मैथुनानि समानि चैतानि नृणां पशूनाम् |
ज्ञानं नराणामधिको विशेषो ज्ञानेन हीनाः पशुभिः समाना ||
भावार्थ :-
जीवित रहने के लिये आहार की आवश्यकता ,
निद्रा , भय की भावना तथा कामवासना, ये प्रवृत्तियां मनुष्यों और पशुओं में एक समान ही होती हैं | परन्तु मनुष्यों में ज्ञान (अनेक विषयों की जानकारी) होना एक अतिरिक्त विशेषता है | अतः जो व्यक्ति ज्ञान हीन होते हैं वे पशुओं के समान ही जीवन व्यतीत करते हैं
परोपकरणं येषां जागर्ति हृद्ये सताम् |
नश्यन्ति विपदस्तेषां संपदः स्यु पदे पदे ||
भावार्थ :-
जिन सज्जन व्यक्तियों के हृदय में परोपकार की भावना जागृत होती है और वे अपना जीवन निर्बल लोगों की सहायता के लिये समर्पित कर देते हैं , उनके ऊपर आई हुई सभी विपदायें नष्ट हो जाती हैं तथा उन्हें कदम कदम पर प्रसन्नता और संपत्ति की प्राप्ति होती है |