परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करं |
सेतुबंधे तू रामेशं नागेशं दारुकावने ||
भावार्थ :--
परली में वैद्यनाथ,डाकिनी नामक क्षेत्र में भीमशंकर,
सेतुबंध पर रामेश्वर,दारूकावन में श्री नागेश्वर,
वाराणस्यां तू विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमी तटे |
हिमालये तू केदारं धृष्णेशं तू शिवालये ||
भावार्थ :--
वाराणसी में काशी विश्वनाथ,गोदावरी तट पर(गौतमी) त्र्यंबकेश्वर,
हिमालय में केदारनाथ,शिवालय में धृष्णेश्वर का स्मरण करे,
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः |
सप्तजन्म कृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ||
भावार्थ :--
जो मनुष्य इस स्तोत्र का सायंकाल-प्रातःकाल-स्मरण करता है |
उसके सात जन्मो के पापो का विनाश हो जाता है |
शुभं करोति कल्याणमारोग्यं धनसंपदा ।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥
भावार्थ:-
दीपक के प्रकाश को में नमन करता हूं जो वातावरण में शुभता, स्वास्थ्य और समृद्धि लाता है। जो वातावरण और मन से अनैतिक भावनाओं व नकात्मक शक्ति को नष्ट करता है। इस दीपक को जलाने से सभी शत्रु भाव का नाश हों।
दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ।।
भावार्थ:- दीप का प्रकाश परब्रह्म स्वरूप है । दीप की ज्योति जगत् का दुख दूर करनेवाला परमेश्वर है । दीप मेरे पाप दूर करे । हे दीपज्योति, आपको नमस्कार करता हूं ।
कराग्रे वसते लक्ष्मी:, करमध्ये सरस्वती ।
कर मूले तु गोविन्द:, प्रभाते करदर्शनम ॥
भावार्थ:- हाथ के अग्र भाग में लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती तथा मूल में गोविन्द (परमात्मा ) का वास होता है। प्रातः काल में (पुरुषार्थ के प्रतीक) हाथों का दर्शन करें ।
समुद्रवसने देवि ! पर्वतस्तनमंड्ले ।
विष्णुपत्नि! नमस्तुभ्यं पाद्स्पर्श्म क्षमस्वे ॥
भावार्थ:-
पृथ्वी क्षमा प्रार्थना: भूमि पर चरण रखते समय जरूर स्मरण करें..
समुद्ररूपी वस्त्रोवाली, जिसने पर्वतों को धारण किया हुआ है और विष्णु भगवान की पत्नी हे पृथ्वी देवी ! तुम्हे नमस्कार करता हूँ ! तुम्हे मेरे पैरों का स्पर्श होता है इसलिए क्षमायाचना करता हूँ ॥
ब्रह्मा मुरारीस्त्रिपुरांतकारी
भानु: शाशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्र: शनि-राहु-केतवः
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम ॥
भावार्थ:-
है ब्रह्मा, विष्णु (राक्षस मुरा के दुश्मन, श्रीकृष्ण या विष्णु) , शिव (त्रिपुरासुर का अंत करने वाला, श्री शिव), सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु सभी देवता मेरे दिन को मंगलमय करें ॥
प्रात: स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं
सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम् ।
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड–
माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम् । ।
भावार्थ:- अनाथों के बन्धु, सिन्दूर से शोभायमान दोनों गण्डस्थल वाले, प्रबल विघ्न का नाश करने में समर्थ एवं इन्द्रादि देवों से नमस्कृत श्री गणेश जी का मैं प्रातः काल स्मरण करता हूँ।
प्रातः स्मरामि भवभीति महार्तिनाशम्
नारायणं गरूडवाहनमब्जनाभम्।
ग्राहाभिभूत वरवारणमुक्तिहेतुं
चक्रायुधं तरुणवारिजपत्रनेत्रम् ॥
भावार्थ:- संसार के भय रूपी महान् दुःख को नष्ट करने वाले, ग्राह से गजराज को मुक्त करने वाले, चक्रधारी एवं नवीन कमल दल के समान नेत्र वाले, पद्मनाभ गरुडवाहन भगवान् श्रीनारायण का मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ।