मौञ्जीकृष्णाजिनधरं नागयज्ञोपवीतिनम् ।
बालेन्दुशकलं मौलौ वन्देऽहं गणनायकम् ॥
भावार्थ :-
मुंजकी मेखला एवं कृष्णमृगचर्म को धारण करनेवाले तथा नाग का यज्ञोपवीत पहननेवाले और सिरपर बालचन्द्रकला को धारण करनेवाले गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।
चित्ररत्नविचित्राङ्गं चित्रमालाविभूषितम् ।
कायरूपधरं देवं वन्देऽहं गणनायकम् ॥
भावार्थ :-
विचित्ररत्नों से चित्रित अंगोंवाले, विचित्र मालाओं से विभूषित तथा शरीररूप धारण करनेवाले उन भगवान् गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।
मूषिकोत्तममारुह्य देवासुरमहाहवे ।
योद्धुकामं महावीर्यं वन्देऽहं गणनायकम् ॥
भावार्थ :-
श्रेष्ठ मूषक पर सवार होकर देवासुरमहासंग्राम में युद्ध की इच्छा करनेवाले महान् बलशाली गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।
अम्बिकाहृदयानन्दं मातृभिः परिवेष्टितम् ।
भक्तिप्रियं मदोन्मत्तं वन्देऽहं गणनायकम् ॥
भावार्थ :-
भगवती पार्वती के हृदय को आनन्द देनेवाले, मातृकाओं से अनावृत, भक्तों के प्रिय, मद से उन्मत्त की तरह बने हुए गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।
जय सिद्धिपते महामते जय बुद्धीश जडार्तसद्गते ।
जय योगिसमूहसद्गुरो जय सेवारत कल्पनातरो ॥
भावार्थ :-
हे सिद्धिपते ! हे महापते ! आपकी जय हो । हे बुद्धिस्वामिन् ! हे जड़मति तथा दुःखियों के सद्गति-स्वरूप ! आपकी जय हो ! हे योगियों के सद्गुरु ! आपकी जय हो । हे सेवापरायणजनों के लिये कल्पवृक्षस्वरूप ! आपकी जय हो !
जननीजनकसुखप्रदो निखलानिष्ठहरोऽखिलेष्टदः ।
गणनायक एव मामवेद्रदपाशाङ्कुमोदकान् दधत् ॥
भावार्थ :-
माता-पिता को सुख देनेवाले, सम्पूर्ण विघ्न दूर करनेवाले, सम्पूर्ण कामनाएँ पूर्ण करनेवाले एवं दन्त-पाश-अंकुश-मोदक धारण करनेवाले गणनायक मेरी रक्षा करें ।
गजराजमुखाय ते नमो मृगराजोत्तमवाहनाय ते ।
द्विजराजकलाभृते नमो गणराजाय सदा नमोऽस्तु ते ॥
भावार्थ :-
गजराज के समान मुखवाले आपको नमस्कार है, मृगराज से भी उत्तम वहनवाले आपको नमस्कार है, चन्द्रकलाधारी आपको नमस्कार है और गणों के स्वामी आपको सदा नमस्कार है ।
गणनाथ गणेश विघ्नराट् शिवसूनो जगदेकसद्गुरो ।
सुरमानुषगीतमद्यशः प्रणतं मामव संसृतेर्भयात् ॥
भावार्थ :-
हे गणनाथ ! हे गणेश ! हे विघ्नराज ! हे शिवपुत्र ! हे जगत् के एकमात्र सद्गुरु ! देवताओं तथा मनुष्यों के द्धारा किये गये उत्तम यशोगानवाले आप सांसारिक भय से मुझ शरणागत की रक्षा कीजिये ।
सुशीलो मातृ पुण्येन पितृ पुण्येन चातुरः
औदार्यं वंश पुण्येन आत्मा पुण्येन भाग्यवान्
भावार्थ :-
एक व्यक्ति अपनी माता के पुण्यों के कारण सुशील होता है और पिता के पुण्यों से चतुर होता है
उदारता उसे अपनी वंश परम्परा से प्राप्त होती है तथा स्वयं अर्जित पुण्यों से वह् भाग्यवान् होता है |
शिवार्चनं रुद्रजप उपवासः शिवालये ।
वाराणस्यां च मरणं मुक्तिरेषा सनातनी ।।
भावार्थ :-
शिव जी की पूजा , शिवजी के नाम या मंत्र का जप , शिव मंदिर में शिवलिङ्ग के समीप वास और वाराणसी में मरण ये सभी सनातन मुक्ति कही गई हैं ।