Shlok Gyan

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Shlok-gyan--558

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।

भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवी नमोऽस्तु ते भावार्थ :

भावार्थ :-

सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवी ! सब भयों से हमारी रक्षा कीजिये ; आपको नमस्कार है

Shlok-gyan--559

लक्ष्मि लज्जे महाविद्ये श्रद्धे पुष्टिस्वधे ध्रुवे।

महारात्रि महाऽविद्ये नारायणि नमोऽस्तु ते॥

भावार्थ :-

लक्ष्मी, लज्जा, महाविद्या, श्रद्धा, पुष्टि, स्वधा, ध्रुवा तथा महारात्रि नारायणि!

तुम्हें नमस्कार है।

Shlok-gyan--560

माता च कमला देवी पिता देवो जनार्दनः।

बान्धवा विष्णुभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्॥

भावार्थ :-

जिस मनुष्य की माँ लक्ष्मी के समान है, पिता विष्णु के समान है और भाइ - बन्धु विष्णु के भक्त है, उसके लिए अपना घर ही तीनों लोकों के समान है ।

Shlok-gyan--561

चला लक्ष्मीश्चलाः प्राणाश्चले जीवितमन्दिरे।

चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः॥

भावार्थ :-

लक्ष्मी चंचल है, प्राण, जीवन, शरीर सब कुछ चंचल और नाशवान है । संसार में केवल धर्म ही निश्चल है ।

Shlok-gyan--562

तत्र पुत्र गया काशी पुष्कर कुरुजाङ्गलम्।

प्रत्यहं मन्दिरे यस्य कृष्ण कृष्णेति कीर्तनं।।

भावार्थ :-

जिसके घर में प्रतिदिन कृष्ण ओर कृष्ण का कीर्तन होता है वहीं गया,काशी,पुष्कर,कुरुजाङ्गलम् (तीर्थ) रहते है ।

Shlok-gyan--563

सूतो वा सूतपुत्रो वा यो वा को वा भवाम्यहम्।

दैवायत्तं कुले जन्म मदायत्तं तु पौरुषम्॥ 

भावार्थ :-

मैं चाहे सूत हूँ या सूतपुत्र, अथवा कोई और। किसी कुल-विशेष में जन्म लेना यह तो दैव के अधीन है, लेकिन मेरे पास जो पौरुष है उसे मैने पैदा किया है। 

Shlok-gyan--564

यथा बीजं विना क्षेत्र मुप्तं भवति निष्फलम् ।

तथा पुरुषकारेण- विना दैवं न सिध्यति ।।

भावार्थ :-

जैसे बीज खेत में बोए बिना निष्फल रहता है, उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना भाग्य भी सिद्ध नहीं होता।

Shlok-gyan--565

सर्वत्र सर्वकालेषु येડपि कुर्वन्ति पातकम् ।

नामसंकीर्तनं कृत्वा यान्ति कृष्णो: परं पदम् ।।

भावार्थ :-

जो सर्वत्र और सर्वदा  पाप आचरण करते हे, वे भी हरिनाम संकीर्तन करके कृष्ण के परमधाम में चले जाते है 

Shlok-gyan--566

ध्यायन् कृते यजन् यज्ञै स्त्रेतयां द्वापरेડर्चयन् ।

यदाप्नोती तदाप्नोती  कलौ संकिर्त्य केशवम् ।।

भावार्थ :-

सतयुग में भगवान का ध्यान, त्रेतायुगमें यज्ञों द्वारा यजन और द्वापर में उसका पूजन कर के मनुष्य जिस फल को पता है, उसे वह कलियुग में केशव का कीर्तन मात्र करके प्राप्त कर लेता है ।

Shlok-gyan--567

ॐ सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्री शैले मल्लिकार्जुनं |

उज्जयिन्यां महाकालं ओमकारं ममलेश्वरं ||

भावार्थ :--

सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्री शैलम में मल्लिकार्जुन |

उज्जैन में महाकाल, ओंकारेश्वर में ममलेश्वर(अमलेश्वर),