Shlok Gyan

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Shlok-gyan--6141

शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम्

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।

नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम:शिवाय।।1।।

मंदाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथ महेश्वराय।

मण्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम:शिवाय।।2।।

शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।

श्रीनीलकण्ठाय बृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम:शिवाय।।3।।

वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।

चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम:शिवाय।।4।।

यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।

दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम:शिवाय।।5।।

पञ्चाक्षरिमदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।6।।

Shlok-gyan--6151

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।

करमूले स्थिते गौरी प्रभाते करदर्शनम्।।

भावार्थः--

हथेली के सबसे आगे के भाग में लक्ष्मी जी, बीच के भाग में सरस्वती जी और मूल बाग में ब्रह्माजी निवास करते हैं, इसलिए सुबह दोनों हथेलियों के दर्शन करना चाहिए।

Shlok-gyan--6161

सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्।

एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः।।

भावार्थः--

जो सब अन्यों के वश में होता है, वह दुःख है। जो सब अपने वश में होता है, वह सुख है। यही संक्षेप में सुख एवं दुःख का लक्षण है।

Shlok-gyan--6171

मा कुरु धनजनयौवनगर्वं हरति निमेषात्कालः सर्वम्।

मायामयमिदमखिलं हित्वा ब्रह्मपदं त्वं प्रविश विदित्वा।।

भावार्थः--

धन, जन, और यौवन पर घमण्ड मत करो; काल इन्हें पल में छीन लेता है। इस माया को छोड़ कर इस ज्ञान से ब्रह्मपद में प्रवेश करो !

Shlok-gyan--6181

विवादो धनसम्बन्धो याचनं चातिभाषणम्।

आदानमग्रतः स्थानं मैत्रीभङ्गस्य हेतवः।।

भावार्थः--

वाद-विवाद, धन के लिये सम्बन्ध बनाना, माँगना, अधिक बोलना, ऋण लेना, आगे निकलने की चाह रखना – यह सब मित्रता के टूटने में कारण बनते हैं।

Shlok-gyan--6191

यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुष्णं भयं रति।

समृध्दिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते।।

भावार्थः--

जिसका कार्य कभी ठंढ, ताप, भय, प्रेम, समृद्धि, या उसका अभाव से बाधित नहीं होता, केवल वही वास्तव में श्रेष्ठ है।

Shlok-gyan--6201

भद्रं भद्रं कृतं मौनं कोकिलैर्जलदागमे।

दर्दूराः यत्र वक्तारः तत्र मौनं हि शोभते।।

भावार्थः--

वर्षा ऋतु के प्रारंभ में कोयलें चुप हो जाती है, क्योंकि बोलने वाले जहाँ मेंढक हो वहाँ चुप रहना ही शोभा देता है !

Shlok-gyan--6211

धनानि भूमौ पशवश्च गोष्ठे भार्या गृहद्वारि जनः श्मशाने।

देहश्चितायां परलोकमार्गे कर्मोनुगो गच्छति जीव एकः।।

भावार्थः--

धन भूमि पर, पशु गोष्ठ में, पत्नी घर में, संबन्धी श्मशान में और शरीर चिता पर रह जाता है। केवल कर्म ही है जो परलोक के मार्ग पर साथ-साथ आता है !

Shlok-gyan--6221

कल्पयति येन वृत्तिं येन च लोके प्रशस्यते सद्भिः।

स गुणस्तेन च गुणिना रक्ष्यः संवर्धनीयश्च।।

भावार्थः--

जिस गुण से आजीविका का निर्वाह हो और जिसकी सभी प्रशंसा करते हैं, अपने स्वयं के विकास के लिए उस गुण को बचाना और बढ़ावा देना चाहिए !


Shlok-gyan--6231

वाणी रसवती यस्य, यस्य श्रमवती क्रिया।

लक्ष्मी: दानवती यस्य, सफलं तस्य जीवितं।।

भावार्थः--

जिस मनुष्य की वाणी मीठी है, जिसका कार्य परिश्रम से परिपूर्ण है, जिसका धन दान करने में प्रयोग होता है, उसका जीवन सफ़ल है !