जन्म: | 22 जून 1932 नवांशहर, पंजाब, भारत |
मृत्यु: | 12 जनवरी 2005 मुंबई, महाराष्ट्र, भारत |
पिता: | लाला निहाल चंद पुरी |
माता: | वेद कौर |
जीवनसंगी: | उर्मिला दिवेकर |
बच्चे: | राजीव, नम्रता |
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
धर्म : | हिन्दू |
शिक्षा: | बी.एम महाविद्यालय, शिमला, हिमाचल प्रदेश |
अवॉर्ड: | वर्ष 2000: में, सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए |
अमरीश पुरी का जन्म 22 जून 1932 को हुवा था। उनके पिता का नाम निहाल चाँद पूरी था और उनकी माता का नाम वेद कौर था ,अमरीश पूरी अपने परिवार के साथ नवांशहर, पंजाब में रहते थे। अमरीश पूरी के तीन भाई और एक बहन थी अमरीश पूरी व्यायाम के बहुत शौकीन हैं, उन्होंने कभी भी अपने दैनिक अभ्यास को नहीं छोड़ा है। उनके बड़े भाई, चमन पुरी और मदन पुरी दोनों अभिनेता थे। उनकी एक ही बहन भी थी जिसका नाम ‘चंद्रकांता’ है।
बचपन की शिक्षा अमरीश पूरी ने पंजाब में प्राप्त की थी। आगे की पढ़ाई करने अमरीश पूरी शिमला गए थे उन्होंने शिमला में बी एम कॉलेज से पढ़ाई पूरी करके, उन्होंने सर्व प्रथम अभिनय की दुनिया मे कदम रखा था। अमरीश पूरी ने सबसे पहले रंगमंच से जुड़े थे और फिर बादमे उन्हों ने फिल्मो में काम करना चालू किया था। अमरीश पूरी को रंगमंच से बहुत ही लगाव था। और तो और उनके हर एक नाटक को स्व.इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे महान लोग उनके नाटक को देखा करते थे पद्म विभूषण रंगकर्मी अब्राहम अल्काजी से 1961 में हुई ऐतिहासिक मुलाकात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी और वे बाद में भारतीय रंगमंच के प्रख्यात कलाकार बन गए।
अमरीश पुरी चरित्र अभिनेता मदन पुरी के छोटे भाई अमरीश पुरी हिन्दी फिल्मों की दुनिया का एक प्रमुख स्तंभ रहे हैं। अभिनेता के रूप निशांत, मंथन और भूमिका जैसी फ़िल्मों से अपनी पहचान बनाने वाले श्री पुरी ने बाद में खलनायक के रूप में काफी प्रसिद्धी पायी। उन्होंने 1984 मे बनी स्टीवेन स्पीलबर्ग की फ़िल्म "इंडियाना जोन्स एंड द टेम्पल ऑफ़ डूम" (अंग्रेज़ी- Indiana Jones and the Temple of Doom) में मोलाराम की भूमिका निभाई जो काफ़ी चर्चित रही। इस भूमिका का ऐसा असर हुआ कि उन्होंने हमेशा अपना सिर मुँडा कर रहने का फ़ैसला किया। इस कारण खलनायक की भूमिका भी उन्हें काफ़ी मिली। व्यवसायिक फिल्मों में प्रमुखता से काम करने के बावज़ूद समांतर या अलग हट कर बनने वाली फ़िल्मों के प्रति उनका प्रेम बना रहा और वे इस तरह की फ़िल्मों से भी जुड़े रहे। फिर आया खलनायक की भूमिकाओं से हटकर चरित्र अभिनेता की भूमिकाओं वाले अमरीश पुरी का दौर। और इस दौर में भी उन्होंने अपनी अभिनय कला का जादू कम नहीं होने दिया फ़िल्म मिस्टर इंडिया के एक संवाद "मोगैम्बो खुश हुआ" किसी व्यक्ति का खलनायक वाला रूप सामने लाता है तो फ़िल्म DDLJ का संवाद "जा सिमरन जा - जी ले अपनी ज़िन्दगी" व्यक्ति का वह रूप सामने लाता है जो खलनायक के परिवर्तित हृदय का द्योतक है। इस तरह हम पाते हैं कि अमरीश पुरी भारतीय जनमानस के दोनों पक्षों को व्यक्त करते समय याद किये जाते हैं ।
शेखर कपूर ने वर्ष 1987 में अपनी पिछली फ़िल्म ‘मासूम’ की सफलता से उत्साहित होकर बच्चों पर केन्द्रित एक और फ़िल्म बनाना तय किया थे जो ‘इनविजबल मैन’ पर आधारित थी।
इस किल्म में नायक के रूप में अनिल कपूर को चुना गया था जबकि कहानी की मांग को देखते हुए खलनायक के रूप में ऐसे कलाकार की मांग थी जो फ़िल्मी पर्दे पर बहुत ही बुरा लगे इस किरदार के लिए निर्देशक ने अमरीश पुरी का चुनाव किया जो फ़िल्म की सफलता के बाद सही साबित हुआ।
अमरीश पूरी का इस फ़िल्म में ‘मोगेम्बो’नाम था और यह मोगेम्बो नाम इस फ़िल्म के बाद अमरीश पूरी की शान ( पहचान )बन गया।इस फ़िल्म के बाद उनकी तुलना फ़िल्म शोले में अमजद खान द्वारा निभाए गए किरदार गब्बर सिंह से की गई।
इस फ़िल्म में उनका संवाद मोगेम्बो खुश हुआ इतना लोकप्रिय हुआ कि सिनेदर्शक उसे शायद ही कभी भूल पाएं।भारतीय मूल के कलाकारों में अमरीश पूरी को ही विदेशी फिल्मो में काम करने का अवसर मिला था। क्योकि विदेशी फिल्मो में भारतीय मुल के कलाकारों को मौका नहीं मिलता है ,
लेकिन अमरीश पुरी ने ‘जुरैसिक पार्क’ जैसी ब्लाकबस्टर फ़िल्म के निर्माता स्टीवन स्पीलबर्ग की मशहूर फ़िल्म ‘इंडियाना जोंस एंड द टेंपल ऑफ़ डूम’ में खलनायक के रूप में माँ काली के भक्त का किरदार निभाया। इस किरदार ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।अमरीश पूरी ने पहली फिल्म इंडियाना जोन्स थी और उसमे उन्होंने स्वयं का सिर मुंडवा लिया था।
निशांत
गांधी
कुली, नगीना, राम लखन, त्रिदेव, फूल और कांटे, विश्वात्मा, दामिनी, करण अर्जुन, कोयला
अमरीश पुरी ने सदी की सबसे बड़ी फिल्मों में कार्य किया। उनके द्वारा शाहरुख खान की हिट फिल्म "दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे" में निभाये गए "बाबूजी" के किरदार की प्रशंसा सर्वत्र की जाती है। उन्होंने मुख्यतः फिल्मो मे विलेन का पात्र निभाते देखा गया है।
1987 में बनी अनिल कपूर की मिस्टर इंडिया में उन्होंने "मोगैम्बो" का किरदार निभाया जो कि फिल्म का मुख्य खलनायक है। इसी फिल्म में अमरीश का डायलॉग "मोगैम्बो खुश हुआ" फिल्म-जगत मेंं प्रसिद्ध है।
पढ़ाई अमरीश पुरी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई पजाब से की। उसके बाद वह शिमला चले गए। शिमला के बी एम कॉलेज(B.M. College) से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा। शुरुआत में वह रंगमंच से जुड़े और बाद में फिल्मों का रुख किया। उन्हें रंगमंच से उनको बहुत लगाव था। एक समय ऐसा था जब अटल बिहारी वाजपेयी और स्व. इंदिरा गांधी जैसी हस्तियां उनके नाटकों को देखा करती थीं। पद्म विभूषण रंगकर्मी अब्राहम अल्काजी से 1961 में हुई ऐतिहासिक मुलाकात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी और वे बाद में भारतीय रंगमंच के प्रख्यात कलाकार बन गए।
करियर अमरीश पुरी ने 1960 के दशक में रंगमंच की दुनिया से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। उन्होंने सत्यदेव दुबे और गिरीश कर्नाड के लिखे नाटकों में प्रस्तुतियां दीं। रंगमंच पर बेहतर प्रस्तुति के लिए उन्हें 1979 में संगीत नाटक अकादमी की तरफ से पुरस्कार दिया गया, जो उनके अभिनय कॅरियर का पहला बड़ा पुरस्कार था।
अमरीश पुरी के फ़िल्मी करियर शुरुआत साल 1971 की ‘प्रेम पुजारी’ से हुई। पुरी को हिंदी सिनेमा में स्थापित होने में थोड़ा वक्त जरूर लगा, लेकिन फिर कामयाबी उनके कदम चूमती गयी। 1980 के दशक में उन्होंने बतौर खलनायक कई बड़ी फिल्मों में अपनी छाप छोड़ी। 1987 में शेखर कपूर की फिल्म ‘मिस्टर इंडिया में मोगैंबो की भूमिका के जरिए वे सभी के जेहन में छा गए। 1990 के दशक में उन्होंने ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे ‘घायल’ और ‘विरासत’ में अपनी सकारात्मक भूमिका के जरिए सभी का दिल जीता।
अमरीश पुरी ने हिंदी के अलावा कन्नड़, पंजाबी, मलयालम, तेलुगू और तमिल फिल्मों तथा हॉलीवुड फिल्म में भी काम किया। उन्होंने अपने पूरे कॅरियर में 400 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया। अमरीश पुरी के अभिनय से सजी कुछ मशहूर फिल्मों में 'निशांत', 'गांधी', 'कुली', 'नगीना', 'राम लखन', 'त्रिदेव', 'फूल और कांटे', 'विश्वात्मा', 'दामिनी', 'करण अर्जुन', 'कोयला' आदि शामिल हैं। दर्शक उनकी खलनायक वाली भूमिकाओं को देखने के लिए बेहद उत्साहित होते थे।
उनके जीवन की अंतिम फिल्म 'किसना' थी जो उनके निधन के बाद वर्ष 2005 में रिलीज हुई। उन्होंने कई विदेशी फिल्मों में भी काम किया। उन्होंने इंटरनेशनल फिल्म 'गांधी' में 'खान' की भूमिका निभाई था जिसके लिए उनकी खूब तारीफ हुई थी। अमरीश पुरी का 12 जनवरी 2005 को 72 वर्ष के उम्र में ब्रेन ट्यूमर की वजह से उनका निधन हो गया। उनके अचानक हुये इस निधन से बॉलवुड जगत के साथ-साथ पूरा देश शोक में डूब गया था। आज अमरीश पुरी इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी यादें आज भी फिल्मों के माध्यम से हमारे दिल में बसी हैं।
बॉलीवुड की फिल्मो में जब भी विलन की बाद आती हे तो सबसे पहले अमरीश पूरी का नाम लिया जाता है। और तो और अमरीश पूरी ने वजनदार शख्सियत और उनकी दमदार आवाज़ ने कितने ही बॉलीवुड हीरोज़ को, विलेन के आगे बच्चा बना दिया। उन्होंने एक विलेन के तौर पर बॉलीवुड में एक बहुत ही लम्बा दौर जिया, जिसमें उनके सामने अमिताभ बच्चन से लेकर शाहरुख़ खान तक हीरो रहे।
डायलॉग बोलते वक़्त उनका लहजा और बड़ी-बड़ी खौफनाक आंखें थिएटर में बैठी ऑडियंस को कांपने पर मजबूर कर देती थी। अमरीश पुरी की कई सारी फिल्मो के डायलॉग्स इतने फेमस हुए है कि लोग हीरो से ज़्यादा अमरीश पूरी के विलेन अवतार को ज्यादा देख ते है । बाद में उनके कई डायलॉग सोशल मीडिया पर बहुत ही वायरल होंने लगे और उनपर खूब सारे मजेदार मीम बने। आइए आपको बताते हैं
मोगैम्बो खुश हुआ
आओ कभी हवेली पर
जवानी में अक्सर ब्रेक फ़ेल हो जाया करते हैं
डोंग कभी रॉंग नहीं होता
जा सिमरन जा, जी ले अपनी जिंदगी
जब भी मैं किसी गोरी हसीना को देखता हूं, मेरे दिल में सैकड़ों काले कुत्ते दौड़ने लगते हैं… तब मैं ब्लैक डॉग व्हिस्की पीता हूं।
12 जनवरी 2005 को हुए थी। मुत्यु के समय उनकी बभी उम्र 72 वर्ष थी। अमरीश पूरी की मुत्यु का कारण ब्रेन ट्यूमर की बीमारी की वजह से हुए थी उनके अचानक हुये इस निधन से बॉलवुड जगत के साथ-साथ पूरा देश शोक में डूब गया था। आज अमरीश पुरी इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी यादें आज भी फिल्मों के माध्यम से हमारे दिल में बसी हैं।