जन्म: | 7 अप्रैल, 1920 |
मृत्यु: | 11 दिसंबर, 2012 |
पिता: | श्याम शंकर चौधरी |
माता: | विसालक्षी रत्नम |
जीवनसंगी: | अन्नपूर्णा देवी और सुकन्या रंजन |
बच्चे: | शुभेन्द्र शंकर, नोराह जोन्स और अनुष्का शंकर |
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
धर्म : | हिन्दू |
अवॉर्ड: | भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण, रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार |
प्रारंभिक जीवन :--
रवि शंकर का जन्म 7 अप्रैल, 1920 को बनारस में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता श्याम शंकर चौधरी शुरुआत में अंग्रेजों के अधीन एक स्थानीय बैरिस्टर के रूप में सेवा करते थे, उसके बाद वे एक वकील के तौर पर लंदन में काम करने चले गए. युवा रविशंकर का लालन-पालन उनकी मां विसालक्षी रत्नम ने ही किया. रविशंकर 8 साल की उम्र तक अपने पिता से नहीं मिले थे और फिर वे अपने बड़े भाई के साथ रहने लगे. उनके बड़े भाई उदय शंकर उस समय के एक प्रसिद्ध नर्तक थे, शंकर ने संगीत का अध्ययन किया और 1930 में, अपने भाई के नृत्य मंडली के सदस्य के रूप में शामिल हो गये. उन्होंने 10 साल की उम्र से इस नृत्य मंडली के साथ अमरीका और यूरोप के कई दौरे किए और एक नर्तक के रूप में कई यादगार प्रदर्शन दिए.
रवि शंकर को अपने जीवन में सितार से काफी सालो बाद परिचित हुए थे, जब वह 18 वर्ष के थे. यह सब कोलकाता में एक संगीत कार्यक्रम में शुरू हुआ जहां उन्होंने अमिया कांति भट्टाचार्य को शास्त्रीय वाद्य यंत्र बजाते हुए सुना. उनके प्रदर्शन से शंकर इतने प्रभावित हुए कि, उन्होंने ने फैसला किया कि उन्हें भी भट्टाचार्य के गुरु, उस्ताद इनायत खान से कैसे भी सितार सीखना ही होगा और यही वो पल था जब उनके जीवन में सितार आया और शंकर के साथ तब तक रहा जब तक उन्होंने अंतिम सांस नहीं ली.
पंडित रविशंकर एक भारतीय संगीतकार और कंपोजर थे, जिन्हें पूरी दुनिया में भारतीय शास्त्रीय वाद्ययंत्र सितार को लोकप्रिय बनाने के लिए जाना जाता है. पश्चिम में ये और भी लोकप्रिय थे. ऐसा कहा जाता है कि रविशंकर के संगीत में आध्यात्मिक शांति छिपी थी, जो सुनाने वाले के दिल में उतरती थी. 90 साल की उम्र में भी उनमें संगीत का जुनून जरा भी कम नहीं हुआ था. एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि आप 91 साल की उम्र में भी जवान व्यक्ति जैसा जोश कहा से लाते है तो उन्होंने कहा, ‘ भले ही मेरा शरीर 91 साल का हो गया है पर मेरा मन अभी भी जवान है ‘.
अपने गुरु, उस्ताद इनायत खान के नेतृत्व में सितार बजाना सीखने के बाद, वह मुंबई चले गए, जहाँ उन्होंने इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन के लिए काम किया. वहाँ शंकर ने 1946 तक बैले के लिए संगीत की रचना की, उसके बाद 1950 में, रविशंकर को नई दिल्ली रेडियो स्टेशन ऑल-इंडिया रेडियो (AIR) के निर्देशक बनने का मौका मिला, और इस पद को उन्होंने 1956 तक संभाला. AIR में अपने समय के दौरान, शंकर ने ऑर्केस्ट्रा के लिए मिश्रित सितार, पश्चिमी शास्त्रीय वाद्ययंत्र और भारतीय वाद्ययंत्रो के साथ कई धुनों की रचना की. इसके अलावा, इस अवधि के दौरान, उन्होंने अमेरिकी मूल के वायलिन वादक येहुदी मेनुहिन के साथ भी संगीत का प्रदर्शन और लेखन शुरू किया.
वर्ष 1953 में, उन्होंने सोवियत संघ में प्रदर्शन किया उसके बाद 1956 में, उन्हें प्रदर्शन के लिए पश्चिम में जाना पड़ा. पश्चिम के एडिनबर्ग फेस्टिवल और रॉयल फेस्टिवल हॉल जैसे प्रमुख कार्यक्रमों में उन्होंने बेहतरीन संगीत का प्रदर्शन दिया जिसके फलस्वरूप भारत के बाहर भी प्रशंसा होने लगी और वह दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गये.
1954 में, रविशंकर ने सोवियत संघ में अपना गायन दिया दिया. 1956 में, उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में अपने संगीत की मधुरता का पदार्पण किया. साथ ही उनकी लोकप्रियता में मदद करने के वाला वह अंक भी था जो, प्रसिद्ध भारतीय फिल्म निर्देशक, सत्यजीत रे के लिए रविशंकर ने लिखा था. पहले से ही पश्चिमी दुनिया में भारतीय संगीत के एक राजदूत रहे, शंकर ने 1960 के दशक में इस भूमिका को बखूभी निभाया. उस दशक में लोगो ने मोंटेरे पॉप फेस्टिवल में शंकर के प्रदर्शन को देखा, जिसने उनकी प्रसिद्धि को और अधिक बढ़ा दिया.
1986 में, भारतीय संगीत में उनके महान योगदान के लिए, उन्हें तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा राज्यसभा के लिए नामित किया गया था. उन्होंने 12 मई 1986 से 11 मई 1992 तक भारतीय संसद के उच्च सदन के सदस्य के रूप में कार्य किया
जॉर्ज हैरिसन के साथ एसोसिएशन :--
जून 1966 में,लंदन में एक कार्यक्रम के चलते प्रसिद्ध बैंड बीटल्स के सदस्य जॉर्ज हैरिसन से रविशंकर की मुलाकात हुई. हैरिसन शंकर से खूब प्रभावित हुए और उससे मित्रता की, फिर हैरिसन खुद ने रविशंकर से सितार का पाठ लेना शुरू किया. इस मित्रता ने तुरंत शंकर और भारतीय संगीत को पश्चिम में अभूतपूर्व लोकप्रियता दिलाई. हैरिसन ने अपने प्रसिद्ध बैंड बीटल्स में सितार की शुरुआत की, जिसने राग ‘ रॉक ‘ के रूप में जाने जाने वाले संगीत की एक नई शैली को जन्म दिया. बाद में हैरिसन ने रविशंकर के निर्माता के रूप में काम करना शुरू दिया. वह हैरिसन ही थे जिन्होंने खुद पंडित रविशंकर को “द गॉडफादर ऑफ वर्ल्ड म्यूजिक” के रूप में संबोधित किया था. हैरिसन से 23 साल बड़े शंकर ने अपने रिश्ते को पिता और एक बेटे के रिश्ते की तरह बताया था.
रविशंकर का 11 दिसंबर, 2012 को सैन डिएगो, कैलिफोर्निया में 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया. संगीतकार कथित तौर पर ऊपरी श्वास और हृदय रोगों से पीड़ित थे और इसी वजह से उन दिनों में उनके हृदय वाल्व को बदलने के लिए सर्जरी की गई थी. उनका आखिरी प्रदर्शन कैलिफोर्निया के टैरेस थिएटर में उनकी बेटी के साथ संपन्न हुआ था. उनकी बेटी अनुष्का शंकर एक सितार वादक के साथ-साथ संगीतकार भी हैं. रविशंकर की विरासत को अब इसी प्रतिभाशाली संगीतकार ने आगे बढ़ाया है.