दलाई लामा

दलाई लामा

दलाई लामा

(तेनजिन ग्यात्सो)

जन्म: 6 जुलाई 1935
पिता: छोइकयोंग टेरसिंग
माता: डिकी टेरसिंग
राष्ट्रीयता: तिब्बती
धर्म : बौद्ध
अवॉर्ड: नोबेल शांति पुरस्कार

परमपावन चौदहवें दलाई लामा का जन्म पूर्वी तिब्बत के एक गाँव ताकस्तेर में 6 जुलाई, 1935 को हुआ। उनका बचपन का नाम ल्हामो थोंडुप था। विभिन्न परीक्षाओं में खरे उतरने के बाद उन्हें चौदहवें दलाई लामा की पदवी मिली और तेनजिन ग्यात्सो नाम।

छह वर्ष की आयु में उनकी बौद्ध-भिक्षु के रूप में शिक्षा आरंभ हुई और अठारह वर्ष के गहन अध्ययन के बाद उन्होंने बौद्ध-दर्शन में पी-एच.डी. हासिल की। इसी बीच वर्ष 1949 में तिब्बत पर कब्जा करने की नीयत से चीन ने उस पर हमला कर दिया, इस घटना से दलाई लामा पर दबाव पड़ा कि वे पूर्ण राजनीतिक अधिकार अपने नियंत्रण में ले लें। उन्हें मजबूरन बातचीत के लिए बीजिंग भी जाना पड़ा।

वहाँ वे चेयरमैन माओ, चाऊ एन लाई. तथा अन्य चीनी राजनेताओं से मिले और उन्हें बताया कि वे चीनी दखल से मुक्त तिब्बत चाहते हैं। समर्थन जुटाने के लिए दलाई लामा वर्ष 1956 में भारत भी आए और तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू से मिले, लेकिन यहाँ उन्हें आशातीत सहयोग नहीं मिला। चीन के बढ़ते हस्तक्षेप से बौखलाकर सन् 1959 में तिब्बतियों ने विद्रोह कर दिया, जिसे चीनी सेना ने बेरहमी से कुचल दिया और मजबूरन दलाई लामा को हिमालय पार करके भारत में शरण लेनी पड़ी। यहाँ उन्होंने हिमाचल प्रदेश के मैकलॉडगंज में अपना मुख्यालय बनाया और तिब्बती शरणार्थियों के कल्याण और तिब्बत की आजादी के लिए अपनी एक निर्वासित लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना की।

अपने देश की आजादी केलिए समर्थन जुटाने की खातिर वे देशों का दौरा करते हैं और अपनी बात रखते हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से भी मदद माँगी है। दलाई लामा छह महाद्वीपों में 62 से ज्यादा देशों की यात्रा कर चुके हैं। वे राष्ट्राध्यक्षों, प्रधानमंत्रियों, शासकों, धर्मगुरुओं, वैज्ञानिकों और जनता के सामने अपनी बात रखते हैं। तिब्बत की समस्या के समाधान के लिए उन्होंने पाँच बिंदुओंवाली एक शांतियोजना बना रखी है— 

(1) पूरे तिब्बत को ‘शांति क्षेत्र’ में बदला जाए।

(2) तिब्बत में मूल चीनियों को बसना बंद किया जाए, जिससे तिब्बती लोगों के अस्तित्व पर खतरा मँडरा रहा है।

(3) तिब्बतियों के बुनियादी मानवाधिकार और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का आदर किया जाए।

(4) चीन उनके देश को नाभिकीय हथियारों के निर्माण और नाभिकीय कचरे के निस्तारण स्थल के रूप में इस्तेमाल कर रहा है, जिससे तिब्बत का प्राकृतिक पर्यावरण खतरे में है। इस पर रोक लगे।

(5) तिब्बतियों और चीनियों के संबंधों और भावी तिब्बत के हालातों पर गंभीर वार्त्ता आरंभ हो।

हर स्थिति में अहिंसा और शांति के समर्थन के चलते वर्ष 1989 में उन्हें नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें 80 से ज्यादा मानव उपाधियाँ, पुरस्कार और सम्मान हासिल हुए हैं। उनके उपदेशों और विचारों पर उनकी 72 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। एक गरीब किसान परिवार में जनमे दलाई लामा को भगवान् बुद्ध का अवलोकेतेश्वर अवतार माना जाता है, जो मानव कल्याण के लिए मोक्ष नहीं लेते और बार-बार अवतार लेकर मानव सेवा में लगे रहते हैं। ‘लिटिल ल्हासा’ के नाम से चर्चित मैकलॉडगंज में शरणार्थी बने 80 वर्षीय दलाई लामा आज भी आशान्वित हैं कि उनका प्यारा देश जल्दी ही आजाद होगा और उनके पीछे आए 80,000 से ज्यादा शरणार्थियों को वापस उनकी मातृभूमि लौटने का अवसर मिलेगा।

दलाई लामा स्वयं को चमत्कारी नहीं, एक साधारण भिक्षु मानते हैं और उन्होंने सार्वजनिक रूप में कह दिया है कि आजाद तिब्बत में वे कोई राजनीतिक पद नहीं लेंगे।

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