हेमू कालाणी

हेमू कालाणी

हेमू कालाणी

जन्म: 23 मार्च 1923 सुक्कूर, सिन्ध
मृत्यु: 21 जनवरी 1943 (उम्र 19) सुक्कूर, सिन्ध
पिता: पेसूमल कालाणी
माता: जेठी बाई
राष्ट्रीयता: भारतीय
धर्म : हिन्दू

आरम्भिक जीवन :--

हेमू कालाणी (23 मार्च, 1923) भारत के एक क्रान्तिकारी एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। अंग्रेजी शासन ने उन्हें फांसी पर लटका दिया था।

हेमू कालाणी सिन्ध के सख्खर (Sukkur) में 23 मार्च सन् 1923 को जन्मे थे। उनके पिताजी का नाम पेसूमल कालाणी एवं उनकी माँ का नाम जेठी बाई था।


स्वतन्त्रता संग्राम :--

जब वे किशोर वयस्‍क अवस्‍था के थे तब उन्होंने अपने साथियों के साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और लोगों से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने का आग्रह किया। सन् 1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया तो हेमू इसमें कूद पड़े। 1942 में उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी. हेमू कालाणी अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना बनाई। वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से कर रहे थे पर फिर भी वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उनपर पड़ी और उन्होंने हेमू कालाणी को गिरफ्तार कर लिया और उनके बाकी साथी फरार हो गए। हेमू कालाणी को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई. उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने एक पेटीशन दायर की और वायसराय से उनको फांसी की सजा ना देने की अपील की। वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि हेमू कालाणी अपने साथियों का नाम और पता बताये पर हेमू कालाणी ने यह शर्त अस्वीकार कर दी। 21 जनवरी 1943 को उन्हें फांसी की सजा दी गई। जब फांसी से पहले उनसे आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की। इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय की घोषणा के साथ उन्होंने फांसी को स्वीकार किया

कौमी झंडा फहराए फर फर,

दुश्मन का सीना कांपे थर थर!!

आया विजय का ज़माना, चलो शेर जवानों!!


उपरोक्त ये पक्तियां एक ऐसे क्रांतिवीर की है, जो अपने बचपन में हाथों में तिरंगा लिए अपने गांव की गलियों में देश प्रेम के गीत गुनगुनाया करते थे. जब इस बच्चे ने थोड़े होश संभाले. तो फांसी के फंदे को अपने गले में डालकर क्रांतिकारियों को याद किया करता.

जब कोई उनसे पूछता कि ऐसा क्यूँ करते हो, तो जवाब था. “मैं भी भगत सिंह की तरह देश की खातिर हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर लटक जाना चाहता हूँ.”

यह बच्चा कोई और नहीं भारत के महान क्रांतिकारी हेमू कलानी थे, जिन्होंने देश को आज़ाद कराने के लिए अंग्रेजों के कई बार दांत खट्टे किए. अपने क्रांतिकारी गतिविधियों के चलते हेमू अंग्रेजों के निशाने पर आ गए थे.  


जब बन्दूक लेकर पिता को रिहा कराने निकल पड़े  :--

हेमू बचपन से ही निडर थे. गांव में जब अंग्रेज़ अधिकारी अपने लश्कर के साथ निकलते थे. तो लोग डर के मारे घरों व दुकानों की दरवाजे व खिड़कियाँ बंद कर लेते थे, मगर हेमू अधिकारियों के सामने उन पर तंज कसते हुए खुलेआम घूमा करते थे. अपने सहपाठियों व दोस्तों के साथ गीत गाते हुए कहते कि

जान देना देश पर, यह वीर का काम है!

मौत की परवाह न कर, जिसका हकीकत नाम है!!

देशभक्ति से लिपटी उनके गीत लोगों में स्वतंत्रता संग्राम के लिए जागरूकता पैदा करती थी. इनकी निडरता का हर कोई कायल था. एक बार का वाक्या है कि इनके पिता को किसी बात पर अंग्रेजी सिपाही पकड़ ले जाते हैं. जब ये घर आये तो इनकी माता रो रही थीं. इन्होंने उनसे पूरा माजरा पूछा.


हकीकत जानने के बाद हेमू ने अपनी मां से पिता को छुड़ाकर वापस लाने की कसम खाई :--

इसके बाद बंदूक खोसे अपने एक साथी के साथ पिता को छुड़ाने निकल पड़े थे. खैर, उनके टीचर ने जब उनको समझाया कि अकेले जाना ठीक नहीं है. जब तक हमारे पास एक मजबूत संगठन नहीं होगा. तब तक हम कुछ नहीं कर सकते.

उनकी बातों को गंभीरता से लेते हुए हेमू स्वराज्य सेना मंडल दल का हिस्सा बने. बाद में वे इस दल के रीढ़ की हड्डी बनकर उभरे थे. हेमू अपने साथियों के साथ विदेशी कपड़ों का बायकाट करने के लिए लोगों में चेतना जगाने का कार्य करते. वे विदेशी कपड़ो को इकट्ठा करने के बाद उसे जला देते.


इस निडर आज़ादी के सिपाही का बस एक ही सपना था कि वे क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह की तरह देश खातिर फांसी के फंदे पर झूल जाएँ. इसके लिए वे अपने गले में फांसी का फंदा भी डालते और शहीदों को याद करते थे. वे कहते थे कि ऐसा करने पर उनके अंदर देश के लिए मर मिटने का जज्बा पैदा होता है.


कई बार ब्रिटिश सिपाहियों से हुई मुठभेड़ :--

हेमू लोगों को अंग्रेजों के जुल्म व सितम से बचाने के लिए जान हथेली पर लेकर घूमा करते थे. उनके बुलंद आवाज़ से लगाये गए ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे से लोगों को बल मिलता था.

एक बार जब उनके कुछ दोस्तों को गिरफ्तार कर लिया गया तो उन्होंने भारी संख्या में लोगों को एकत्र किया. अंग्रजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किये. देखते ही देखते पूरे शहर में जन सैलाब उमड़ पड़ा था.

बेगुनाहों को आज़ाद किया जाये, अधिकारी माफ़ी मांगें, जिन्होंने रक्तपात किया है उनको निलंबित किया जाये, अंग्रेज़ सरकार मुर्दाबाद-मुर्दाबाद, नहीं चलेगा नहीं चलेगा अंग्रेजों का अत्याचार नहीं चलेगा जैसे नारों की आवाज़ की सदा बुलंद की जा रही थी.

अंग्रेज़ अधिकारियों के पसीने छूट चुके थे. अंत में अंग्रेजों ने गोलियों की बन्दूक से लोगों को भूनना शुरू कर दिया. ऐसे में हेमू किसी तरह वहां से निकल पाने में कामयाब हो पाए थे. उनके अंदर इस घटना को लेकर बहुत गुस्सा था. काफी लोगों की जान जा चुकी थी.

इसके कुछ दिनों के बाद हेमू ने जेल पर बमबारी करके दोस्तों को छुड़ाने का प्रयत्न किया था. वे इस घटना को अंजाम देने के बाद अंग्रेजों की नज़र से बच निकले थे.

एक बार ब्रिटिश सिपाहियों के साथ हुए मुठभेड़ में लगभग 40 अंग्रेज़ सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया था. उस घटना में इनके भी कुछ साथी शहीद हो गए थे.


भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान हुए गिरफ्तार :--

हेमू को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ छापामार गतिविधियों, वाहनों को जलाने व क्रांतिकारी जुलूसों जैसे क्रांतिकारी के तौर पर पहचाना जाने लगा था.

1942 में जब महात्मा गाँधी ने भारत छोड़ो आंदोलन चलाया तो हेमू अपने साथियों के साथ बड़े जोश व खरोश के साथ उसमें कूद पड़े. आगे जब इस आंदोलन से जुड़े महात्मा गाँधी, खान अब्दुल गफ्फार जैसे क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया. तो इस आंदोलन की ज्वाला और भड़क उठी.

हेमू ने सिंध में तो तहलका मचा दिया था. इनके जोश को देखते हुए लोग जगह-जगह पर अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने लगे. हेमू ने अंग्रेजी सरकार को भारत से उखाड़ फेंकने का दमखम दिखाया. उन्होंने कई घटनाओं को अंजाम दिया. ब्रिटिश उनकी निडरता से भरे कार्यों को देखने के बाद खौफ खाने लगे थे.

अक्टूबर 1942 में जब हेमू को पता चला की अंग्रेजों का एक दस्ता हथियारों से भरी ट्रेन को उनके नगर से लेकर गुजरने वाले हैं. तब उन्होंने अपने साथियों के साथ पटरी की फिश प्लेट खोलकर रेल को पटरी से उतारने का एक प्लान बनाया.

वो अपने साथियों के साथ इस काम को अंजाम दे ही रहे थे कि अंग्रेजों ने उन्हें देख लिया. हेमू ने जब अंग्रेज़ अधिकारियों को पास आते देखा तो उन्होंने अपने सभी साथियों को भागने को कहा और वे खुद वहीं खड़े रहे. उनके सभी साथी भाग चुके थे. उनको अंग्रेज सिपाहियों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया.

19 साल की उम्र में हुई फांसी :--आरम्भिक जीवन :--

हेमू कालाणी (23 मार्च, 1923) भारत के एक क्रान्तिकारी एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। अंग्रेजी शासन ने उन्हें फांसी पर लटका दिया था।

हेमू कालाणी सिन्ध के सख्खर (Sukkur) में 23 मार्च सन् 1923 को जन्मे थे। उनके पिताजी का नाम पेसूमल कालाणी एवं उनकी माँ का नाम जेठी बाई था।


19 साल की उम्र में हुई फांसी :--

यह पहली बार था, जब हेमू अंग्रेजों के हाथ आये थे. पहले से ही ब्रिटिश सरकार उनके कार्यों से परेशान थी. उन पर इस घटना को लेकर मुकद्दमा चलाया गया. अंग्रेजीं सिपाहियों ने हेमू को जेल के अंदर बहुत प्रताड़ित किया. वे उनसे उनके साथियों के नाम उगलवाना चाहते थे.

मगर, कई सारी यातनाएं झेलने के बाद भी हेमू ने मुंह नहीं खोला. अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें कई सारे प्रलोभन भी दिए. इसके बावजूद उन्होंने अपने दोस्तों का नाम नहीं बताया.

अंत में उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई. जब उन्हें सजा का फरमान सुनाया गया तो एक तरफ जहां उनके लोगों की आँखे नाम थीं. वहीं हेमू कलानी की आँखों में एक चमक दिख रही थी.

ऐसा होता भी क्यूँ न उनके बचपन का जो  यह सपना था कि शहीद भगत सिंह की तरह वो भी देश की आज़ादी में ख़ुशी-ख़ुशी फांसी के फंदे पर झूल जाएं.

बहरहाल, ब्रिटिश शासन के इस फैसले से सिंध में जगह-जगह पर विरोध प्रदर्शन होने लगा. कई बड़े राजनेताओं व क्रांतिकारियों ने भी इसका विरोध किया था. इसके बावजूद इस नौजवान क्रांतिकारी को 19 साल की उम्र में 23 जनवरी 1943 को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया.

शहीद हेमू कालानी की दुखद मृत्यु की खबर सुनते ही सिंध ही नहीं पूरे भारत के लोग दुखी थे. इनकी अंतिम यात्रा में कई बड़े क्रांतिकारियों के साथ हजारों की तादाद में लोगों का हुजूम उमड़ गया था.

तो ये थी भारत के वीर युवा क्रांतिकारी शहीद हेमू कलानी से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए ख़ुशी-ख़ुशी मौत को गले लगा लिया.

यह पहली बार था, जब हेमू अंग्रेजों के हाथ आये थे. पहले से ही ब्रिटिश सरकार उनके कार्यों से परेशान थी. उन पर इस घटना को लेकर मुकद्दमा चलाया गया. अंग्रेजीं सिपाहियों ने हेमू को जेल के अंदर बहुत प्रताड़ित किया. वे उनसे उनके साथियों के नाम उगलवाना चाहते थे.

मगर, कई सारी यातनाएं झेलने के बाद भी हेमू ने मुंह नहीं खोला. अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें कई सारे प्रलोभन भी दिए. इसके बावजूद उन्होंने अपने दोस्तों का नाम नहीं बताया.

अंत में उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई. जब उन्हें सजा का फरमान सुनाया गया तो एक तरफ जहां उनके लोगों की आँखे नाम थीं. वहीं हेमू कलानी की आँखों में एक चमक दिख रही थी.

ऐसा होता भी क्यूँ न उनके बचपन का जो  यह सपना था कि शहीद भगत सिंह की तरह वो भी देश की आज़ादी में ख़ुशी-ख़ुशी फांसी के फंदे पर झूल जाएं.

बहरहाल, ब्रिटिश शासन के इस फैसले से सिंध में जगह-जगह पर विरोध प्रदर्शन होने लगा. कई बड़े राजनेताओं व क्रांतिकारियों ने भी इसका विरोध किया था. इसके बावजूद इस नौजवान क्रांतिकारी को 19 साल की उम्र में 23 जनवरी 1943 को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया.

शहीद हेमू कालानी की दुखद मृत्यु की खबर सुनते ही सिंध ही नहीं पूरे भारत के लोग दुखी थे. इनकी अंतिम यात्रा में कई बड़े क्रांतिकारियों के साथ हजारों की तादाद में लोगों का हुजूम उमड़ गया था.

तो ये थी भारत के वीर युवा क्रांतिकारी शहीद हेमू कलानी से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए ख़ुशी-ख़ुशी मौत को गले लगा लिया.

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