कृष्णदेव राय

कृष्णदेव राय

कृष्णदेव राय

(आंध्रभोज )

जन्म: 16 फरवरी 1471 हम्पी (कर्नाटक)
मृत्यु: 1529
पिता: सालुव नरसिंह
माता: नागला देवी
राष्ट्रीयता: भारतीय
धर्म : हिन्दू
किताबें | रचनाएँ : नाटक ‘जाम्बवती कल्याण’, परिणय’, ‘सकलकथासार– संग्रहम’, ‘मदारसाचरित्र’, ‘सत्यवधु– परिणय’

कृष्णदेवराय (1509-1529 ई. ; राज्यकाल 1509-1529 ई) विजयनगर के सर्वाधिक कीर्तिवान राजा थे। वे स्वयं कवि और कवियों के संरक्षक थे। तेलुगु भाषा में उनका काव्य अमुक्तमाल्यद साहित्य का एक रत्न है। इनकी भारत के प्राचीन इतिहास पर आधारित पुस्तक वंशचरितावली तेलुगू  के साथ—साथ संस्कृत में भी मिलती है। संभवत तेलुगू का अनुवाद ही संस्कृत में हुआ है। प्रख्यात इतिहासकार तेजपाल सिंह धामा ने हिन्दी में इनके जीवन पर प्रामाणिक उपन्यास आंध्रभोज लिखा है। तेलुगु भाषा के आठ प्रसिद्ध कवि इनके दरबार में थे जो अष्टदिग्गज के नाम से प्रसिद्ध थे। स्वयं कृष्णदेवराय भी आंध्रभोज के नाम से विख्यात थे।

जिन दिनों वे सिंहासन पर बैठे उस समय दक्षिण भारत की राजनीतिक स्थिति डाँवाडोल थी। पुर्तगाली पश्चिमी तट पर आ चुके थे। कांची के आसपास का प्रदेश उत्तमत्तूर के राजा के हाथ में था। उड़ीसा के गजपति नरेश ने उदयगिरि से नेल्लोर तक के प्रांत को अधिकृत कर लिया था। बहमनी राज्य अवसर मिलते ही विजयनगर पर आक्रमण करने की ताक में था। कृष्णदेवराय ने इस स्थिति का अच्छी तरह सामना किया। दक्षिण की राजनीति के प्रत्येक पक्ष को समझनेवाले और राज्यप्रबंध में अत्यंत कुशल श्री अप्पाजी को उन्होंने अपना प्रधान मंत्री बनाया। उत्तमत्तूर के राजा ने हारकर शिवसमुद्रम के दुर्ग में शरण ली। किंतु कावेरी नदी उसके द्वीपदुर्ग की रक्षा न कर सकी। कृष्णदेवराय ने नदी का बहाव बदलकर दुर्ग को जीत लिया। बहमनी सुल्तान महमूदशाह को उन्होंने बुरी तरह परास्त किया। रायचूड़, गुलबर्ग और बीदर आदि दुर्गों पर विजयनगर की ध्वजा फहराने लगी। किंतु प्राचीन हिंदु राजाओं के आदर्श के अनुसार महमूदशाह को फिर से उसका राज लौटा दिया और इस प्रकार यवन राज्य स्थापनाचार्य की उपाधि धारण की। 1513 ई. में उन्होंने उड़ीसा पर आक्रमण किया और उदयगिरि के प्रसिद्ध दुर्ग को जीता। कोंडविडु के दुर्ग से राजकुमर वीरभद्र ने कृष्णदेवराय का प्रतिरोध करने की चेष्टा की पर सफल न हो सका। उक्त दुर्ग के पतन के साथ कृष्ण तक का तटीय प्रदेश विजयनगर राज्य में सम्मिलित हो गया। उन्होंने कृष्णा के उत्तर का भी बहुत सा प्रदेश जीता। 1519 ई. में विवश होकर गजपति नरेश को कृष्णदेवराय से अपनी कन्या का विवाह करना पड़ा। कृष्णदेवराय ने कृष्णा से उत्तर का प्रदेश गजपति को वापस कर दिया। जीवन के अंतिम दिनों में कृष्णदेवराय को अनेक विद्रोहों का सामना करना पड़ा। उसके पुत्र तिरुमल की विष द्वारा मृत्यु हुई।

कृष्णदेवराय ने अनेक प्रासादों, मंदिरों, मंडपों और गोपुरों का निर्माण करवाया। रामस्वामीमंदिर के शिलाफलकों पर प्रस्तुत रामायण के दृश्य दर्शनीय हैं।

कृष्ण देवराय का इतिहास :--

कृष्ण देवराय का जन्म 16 फरवरी 1471 ईस्वी को कर्नाटक के हम्पी में हुआ. उनके पिता ‘सालुव नरसिंह’ के सेनापति नरसा नायक और माता नागला देवी थी. राजा कृष्ण देवराय के पूर्व उनके बड़े भाई वीर नरसिंह (1505-1509 ई.) राज सिंहासन पर विराजमान थे. नरसिंह का पूरा शासनकाल आन्तरिक विद्रोह एवं आक्रमणों से प्रभावित रहा. वीर नरसिंह के देहांत के बाद 8 अगस्त 1509 ई. को कृष्ण देवराय का विजयनगर साम्राज्य के सिंहासन पर राजतिलक किया गया.

कुछ लोग यह भी मानते हैं कि वे 1510 ई. में विजयनगर की गद्दी पर बैठे थे. कृष्णदेव राय की मृत्यु 1529 में जहर दिए जाने के बाद बीमार पड़ने के कारण हुई. मृत्यु से पहले कृष्णदेव राय बेलगाम पर हमले की तैयारी कर रहे थे, जो उस वक्त आदिल शाह के कब्जे में था. मृत्यु से पूर्व कृष्ण देव राय ने अपने सौतेले भाई अच्युत देव राय को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था.

कृष्णदेव राय के दरबारी :--

अवंतिका जनपद के महान राजा विक्रमादित्य ने नवरत्न रखने की परम्परा की शुरूआत की थी. इस परम्परा का अनुसरण कई राजाओं ने किया. कृष्णदेवराय के दरबार में तेलुगु साहित्य के आठ सर्वश्रेष्ठ कवि रहते थे जिन्हें अष्ट दिग्गज कहा जाता था. कृष्णदेव राय के दरबारी के नाम इस प्रकार हैं. – अल्लसीन पेड्डना, तेनालीराम रामकृष्ण, नंदितिम्मन, यादय्यगी मल्लन, घूर्जर्टि, भट्टमूर्ति, जिंग्लीरन्न और अच्युलराजु रामचंद्र.

कृष्णदेव राय का साहित्य में योगदान :--

कृष्णदेवराय कन्नड भाषी क्षेत्र में जन्मे ऐसे महान राजा थे, जिनकी मुख्य साहित्यिक रचना तेलुगु भाषा में रचित थी. कृष्ण देवराय तेलुगु साहित्य के महान विद्वान थे उन्होंने तेलुगु के प्रसिद्ध ग्रन्थ अमुक्त माल्यद की रचना की. उनकी यह रचना तेलुगु के पांच महाकाव्यों में से एक है. कृष्णदेवराय ने संस्कृत भाषा में नाटक जाम्बवती कल्याणम् और ऊषा परिणय की रचना की थी.

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